नई दिल्ली। शीत युद्ध के दौरान एंटी-कम्यूनिस्ट खेमे का पक्षधर और फारस की खाड़ी में अमेरिका को मदद करने वाला देश सऊदी अरब वर्तमान में अपनी विदेश नीति में बदला-बदला सा नजर आ रहा है. पिछले कुछ महीनों के भीतर चीन, ईरान और रूस के साथ समझौते सऊदी अरब की विदेश नीति में बदलाव की पुष्टि करते हैं. सऊदी अरब अब गुटनिरपेक्ष रुख अपना रहा है. ईरान और चीन से नजदीकियां भी यह दर्शाती हैं कि सऊदी अरब अपने हितों का ध्यान रखते हुए ‘सऊदी फर्स्ट’ नीति अपना रहा है.
अरब-चीन व्यापार सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय संबंधों की आलोचना पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए अब्दुलअजीज बिन सलमान ने कहा, “वास्तव में मैं इसे इग्नोर करता हूं क्योंकि… एक बिजनेसपर्सन के रूप में… आप वहां जाएंगे जहां अवसर मिलेगा.
सऊदी अरब की बदलती विदेश नीति पर जानकारों का मानना है कि ईरान और चीन के साथ सऊदी अरब की बढ़ती नजदीकियों के कई मायने हैं. पिछले एक दशक के दौरान सऊदी अरब की बदला हुआ रुख विदेश नीति को व्यापक बनाने की कोशिश का हिस्सा है. इस विविधीकरण को सफल बनाने में सऊदी अरब के लिए चीन एक परफेक्ट सहयोगी है.
सऊदी-अमेरिका के संबंध (Saudi-US partnership)
अमेरिका और सऊदी अरब के बीच संबंध के बारे में यह कहा जाता है कि दोनों देशों के बीच संबंध अक्सर तेल और सुरक्षा के इर्द-गिर्द घूमता है. अमेरिका कच्चे तेल के लिए काफी हद तक सऊदी पर निर्भर है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अक्टूबर 2022 में जब सऊदी अरब ने तेल कटौती की घोषणा की थी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तेल उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सऊदी अरब से बात की थी. हालांकि, सऊदी अरब तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए राजी नहीं हुआ था. जिस पर अमेरिका ने परिणाम भुगतने तक की चेतावनी दी थी.
इस सबके परे भी दोनों देशों के बीच संबंध काफी तनाव भरा रहा है. चाहे तेल उत्पादन में कटौती में सऊदी की भागीदारी हो या 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले में सऊदी अरब के नागरिकों की शामिल होने की घटना. कई बार दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव चरम पर रहा.
सऊदी अरब और अमेरिका के बीच खराब होते रिश्ते
2010 की शुरुआत में अरब स्प्रिंग प्रोटेस्ट के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते और खराब हो गए. खाड़ी देशों के नेताओं के बीच यह धारणा बन गई कि 2011 में मिस्र की क्रांति के दौरान तत्कालीन ओबामा प्रशासन ने मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक की मदद नहीं की.
इससे गल्फ देशों के बीच यह डर बन गया कि अमेरिका उन्हें भी वैसे ही छोड़ सकता है जैसे उसने 30 साल से भी ज्यादा पुराने दोस्त होस्नी मुबारक को उसी हालात में छोड़ दिया. इसके अलावा, ईरान के साथ बातचीत में गल्फ देशों को शामिल नहीं करना भी इन्हें नागवार गुजरा.
इसके बाद 2019 में सऊदी अरब के ऑयल इंफ्रास्ट्रक्चर पर मिसाइल और ड्रोन से हमला हुआ. इससे सऊदी अरब का तेल उत्पादन आधा हो गया. इस हमले के पीछे ईरान का हाथ बताया गया, लेकिन कभी भी औपचारिक रूप से ईरान को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया.
सऊदी अरब को तकलीफ तब हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के साथ अपने हित को साधते हुए यह कहा था कि यह हमला सऊदी अरब पर था, न कि अमेरिका पर. ट्रम्प के इस बयान से सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों को गहरा झटका लगा. इसके बाद गल्फ कंट्री ने एक विश्वसनीय क्षेत्रीय भागीदार के रूप में अमेरिकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया.
इसके अलावा 2021 में अमेरिका ने अफगानिस्तान को उसी हालात में छोड़कर सत्ता की चाबी तालिबान के हाथों में सौंप दी. इस घटना ने गल्फ देशों के बीच अमेरिका को लेकर बनी धारणा को और बल दिया.
चीन से सऊदी अरब की बढ़ती नजदीकियां
बढ़ते क्षेत्रीय और वैश्विक तनाव के बीच अमेरिकी फैसले ने सऊदी अरब को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि क्या अमेरिका सऊदी अरब का एक विश्वसनीय क्षेत्रीय भागीदार है? लॉन्ग टाइम पार्टनर के रूप में अमेरिका की भूमिका को लेकर अनिश्चितता के कारण सऊदी अरब ने चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विस्तार देना शुरू कर दिया.
खाड़ी देशों का मानना है कि चीन 21वीं सदी में प्रमुख आर्थिक और ऊर्जा महाशक्ति के रूप में अमेरिका की जगह ले सकता है. यही कारण है कि पिछले एक दशक से प्रमुख गल्फ देश, अमेरिका और यूरोप की जगह एशिया क्षेत्र में ज्यादा तेल निर्यात कर रहे हैं.
सऊदी अरब और चीन की बढ़ती दोस्ती का ही नतीजा है कि सऊदी ने दशकों पुरानी दुश्मनी भुलाकर ईरान से राजनयिक रिश्ता फिर से बहाल किया है. सऊदी प्रिंस सलमान ने जिनपिंग को ईरान से दोस्ती करवाने के लिए धन्यवाद भी दिया था.
सऊदी अरब और चीन के बीच बढ़ता व्यापार
वहीं, हाल के वर्षों में चीन ने भी सऊदी अरब में काफी निवेश किया है. सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दिसंबर में सऊदी अरब का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने सऊदी अरब में ग्रीन एनर्जी और सूचना प्रौद्योगिकी समेत कुल 34 क्षेत्रों में निवेश समझौतों पर दस्तखत किया.
चीन ने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए 20 अरब देशों से समझौता किया है. इसके तहत ऊर्जा और विनिर्माण के क्षेत्र में 200 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं. सऊदी ने भी घोषणा की है कि वह चीन की तेल रिफाइन कंपनी Rongsheng Petrochemical में 3.6 अरब डॉलर में 10% हिस्सेदारी खरीदेगी.
Saudi investment ministry on Monday announced that a modern "Silk Road" will be opened between China and Arab countries to help Saudi Arabia diversify its economy and improve the skills of its youth at the 10th Arab-China Business Conference.https://t.co/iGCkytFdbh pic.twitter.com/gzYaaIxAUL
— Chinese Embassy in Switzerland (@ChinaEmbinCH) June 14, 2023
रूस के साथ अरब देशों की बढ़ती नजदीकियां
सऊदी अरब के अलावा एक और अरब देश यूएई भी स्वतंत्र विदेश नीति अपना रहा है. अमेरिका और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद यूएई ने हथियार मेले में रूस का स्वागत किया था.
फरवरी में यूएई की राजधानी अबूधाबी में आयोजित हुए हथियार मेले में रूस ने भी बिक्री के लिए हथियारों की पेशकश की थी. रूस इस मेले में कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल से लेकर मिसाइल प्रणाली तक बेच रहा था.
अमेरिका के लिए झटका
चीन की मदद से ईरान और सऊदी अरब के बीच हुई सुलह अमेरिका के लिए झटका माना जा रहा है. ईरान के साथ सऊदी अरब का राजनयिक संबंध अमेरिका की ओर से ईरान को दुनिया से अलग-थलग करने की कोशिशों को कमजोर करेगा.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2016 में विजन-2030 के नाम से एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट लॉन्च किया था. इस योजना से प्रिंस सलमान का मकसद है तेल से हो रही कमाई पर निर्भरता कम कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना.
यह भी कहा जा सकता है कि मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के भविष्य को देखते हुए भू-राजनीतिक शक्ति का व्यापक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. विजन-2030 के लिए सऊदी अरब ने रणनीतिक भागीदारी के तौर पर आठ देशों को चुना है. इसमें चीन भी शामिल है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सऊदी अरब अपने विदेशी और आर्थिक संबंधों में जिस तरह से विविधिता लाने की कोशिश कर रहा है और अपना फोकस अमेरिका से हटाकर चीन, रूस और अन्य देशों पर केंद्रित कर रहा है. क्या इसके कोई राजनीतिक मायने भी हैं?
इस सवाल पर बर्लिन स्थित एक थिंक टैंक में सऊदी अरब पर रिसर्च करने करने वाले स्टीफन रोल (Stephan Roll) का कहना है कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते काफी खराब हुए हैं. दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब होने का एक कारण 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खगोशी की हत्या हो सकती है. ऐसा आरोप है कि खगोशी की हत्या की साजिश सऊदी अरब से रची गई थी.
स्टीफन का मानना है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि पश्चिम के लगभग सभी देशों के साथ सऊदी अरब के रिश्ते खराब हुए हैं. जर्मन ब्रॉडकास्टर डीडब्लयू से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों को सऊदी अरब में घमंडी, अविश्वसनीय और हमेशा मांग करने वाले के रूप में देखा जाता है.