नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हिंसा की साजिश के आरोप में आतंकवाद निरोधक कानून के तहत जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की जमानत याचिका पर एक बार फिर से सुनवाई 4 सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है। शीर्ष न्यायालय कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। अदालत ने आरोपी खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि हमें इस मामले में एक-एक दस्तावेज देखना होगा, ऐसे में आप आरोपों के संबंध में उपलब्ध साक्ष्यों से जुड़ी सामग्री पेश करें।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी। साथ ही कहा कि जहां तक मामले में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के अध्याय 4 और 6 के तहत अपराधों का संबंध है, तो हम (कोर्ट) देखना चाहते हैं कि उपलब्ध साक्ष्य क्या हैं और आपके अनुसार, यह कैसे मेल नहीं खा रहा है।
साक्ष्यों का आरोपों से करना होगा मिलान
पीठ ने कहा कि मामले में अब आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया है। हमें साक्ष्यों का आरोपों से मिलान करना होगा। इस पर खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि मामले की सुनवाई 4 सप्ताह बाद रखा जाए। पीठ ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए सुनवाई 4 सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने 18 मई को इस मामले में दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था।
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में फरवरी, 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस ने खालिद सहित कई लोगों को हिंसा की साजिश रचने के जुर्म में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया। इस मामले में विशेष अदालत और उच्च न्यायालय ने खालिद को जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर जमानत की मांग की है। फरवरी 2020 में हुई हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 700 से अधिक घायल हुए थे।