वेटरन एक्ट्रेस वहीदा रहमान को इस साल दादासाहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। वहीदा ने अपने करियर में गाइड, रेश्मा और शेरा, प्यासा और रंग दे बसंती जैसी हिट फिल्मों में काम किया है।
इस बात की जानकारी मंगलवार को इंफॉर्मेशन और ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्टर अनुराग ठाकुर ने दी। सोशल मीडिया पर एक ट्वीट शेयर करते हुए ठाकुर ने लिखा, ‘मुझे यह जानकारी देते हुए बहुत खुशी और गर्व महसूस हो रहा है कि वहीदा रहमान जी को भारतीय सिनेमा में उनके श्रेष्ठ योगदान के लिए इस साल प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा है।’
अनुराग ने आगे लिखा, ‘ऐसे समय में जब ऐतिहासिक नारी शक्ति वंदन अधिनियम को संसद द्वारा पारित किया गया है, वहीदा जी को इस लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया जाना भारतीय सिनेमा की लीडिंग लेडीज के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि है। मैं उन्हें बधाई देता हूं और विनम्रतापूर्वक उनके काम के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हूं जो हमारे फिल्म इतिहास का हिस्सा है।’
अब तक सिर्फ 7 महिला कलाकारों को ही मिला यह अवॉर्ड
54 साल के इतिहास में अब तक यह अवॉर्ड सिर्फ 7 ही महिलाओं को दिया गया है। सबसे पहला दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड 1969 में एक्ट्रेस देविका रानी को दिया गया था। इसके बाद रूबी मेयर्स (सुलोचना), कानन देवी, दुर्गा खोटे, लता मंगेशकर और आशा भोंसले को इस अवॉर्ड से नवाजा गया। 2020 में यह अवॉर्ड वेटरन एक्ट्रेस आशा पारेख को दिया गया था।
1955 में किया था एक्टिंग डेब्यू
वहीदा रहमान अपने 57 साल के करियर में करीब 90 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उन्होंने 1955 में तेलुगु फिल्म ‘रोजुलु माराई’ से डेब्यू किया था। इसके बाद बॉलीवुड में प्यासा, गाइड, कागज के फूल, चौदहवीं का चांद, साहेब बीवी और गुलाम, खामोशी, कभी कभी, लम्हे, रंग दे बसंत और दिल्ली 6 जैसी फिल्में दीं।
रेशमा और शेरा के लिए मिला नेशनल अवॉर्ड
अपने करियर में वहीदा को गाइड (1965) और नील कमल (1968) के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किया। वहीं रेश्मा और शेरा (1971) के लिए उन्होंने बेस्ट एक्ट्रेस के नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके अलावा एक्ट्रेस को पद्मश्री और पद्मभूषण से भी नवाजा जा चुका है।
1969 में शुरु हुआ था दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड
दादासाहेब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा उद्योग में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। इसका नाम ‘भारतीय सिनेमा के जनक’ कहे जाने वाले धुंडीराज गोविंद फाल्के के नाम पर रखा गया है, जिन्हें प्यार से दादासाहेब फाल्के बुलाया जाता था। दादासाहेब ने ही वर्ष 1913 में भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ प्रस्तुत की थी।
इस पुरस्कार की शुरुआत 1969 में हुई थी। यह भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार के तहत एक ‘स्वर्ण कमल’, 10 लाख रुपए नकद, एक प्रमाण पत्र, रेशम की एक पट्टिका और एक शॉल दिया जाता है।