महीनों की तैयारी, सुपर सीक्रेट प्लान और हार्ड ट्रेनिंग… हमास ने यूं नाकाम किया आयरन डोम सिस्टम और मोसाद नेटवर्क

हमास के हमले ने इजरायल समेत पूरी दुनिया को चौंका दियाइजरायल का जिक्र चलते ही जो दो नाम जेहन में सबसे पहले आते हैं, वो हैं इजरायल का ‘आयरन डोम सिस्टम’ और उसकी सुरक्षा एजेंसी ‘मोसाद.’ आयरन डोम यानी आसमान में मौजूद इजरायल का वो लौह कवच जो उसे हर हमले से बचाता है, जबकि मोसाद यानी इजरायल की वो आंख, नाक और कान जो उसे हर हमले की ख़बर पहले ही दे देती है. लेकिन इस बार जिस तरह से आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर हमला बोल कर उसकी चूलें हिला दीं, उसने आयरन डोम सिस्टम के साथ-साथ इजराइली सुरक्षा एजेंसी मोसाद की सवाल खड़े कर दिए.

आयरन डोम और मोसाद पर सवाल
पूरी दुनिया जिस आयरन डोम और मोसाद की सिक्योरिटी की तारीफ करते नहीं थकती थी, इस हमले ने मानों उसका सारा का सारा तिलिस्म ही उधेड़ कर रख दिया. अब सवाल है कि आखिर क्यों फेल हुआ इजरायल का आयरन डोम सिस्टम? क्यों फिलिस्तीन की तरफ से दागे गए रॉकेट हवा में भस्म होने की जगह इजरायली जमीन पर बेगुनाहों की मौत की वजह बन गए? क्यों हमास के हवाई हमले में इजरायल को संभलने का मौका ही नहीं मिला? और क्यों इतनी बड़ी साजिश की मोसाद को कानों-कान खबर तक नहीं लगी? तो आज वारदात में इजरायल के आयरन डोम सिस्टम से लेकर मोसाद तक के फेल होने की एक-एक वजह आपको बताएंगे. लेकिन आइए इन वजहों को समझने से पहले आपको मैदान-ए-जंग के पहले मोर्चे यानी इजरायल की सरजमीं से आई कुछ तस्वीरें दिखाते हैं.

ग्लाइडर्स को हमास ने बनाया हथियार 
उस दौर में जब ज्यादातर देश जंग में सबसे ज्यादा अपनी तोप और फाइटर जेट्स पर भरोसा करते हैं, ऐसे में दुनिया भर में आम तौर पर एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए इस्तेमाल होने वाले ग्लाइडर्स को हमास ने अपना हथियार बना लिया. बेहद कम ऊंचाई से उड़ते हुए हमास के आतंकी शनिवार को अचानक इजरायल के इलाके में दाखिल हो गए और फिर उन्होंने जो कुछ किया, वो इतिहास बन गया. अंधाधुंध फायरिंग, बेगुनाहों से ज्यादती और खून खराबा. हमास ने कुछ ही घंटों में मानों इजरायल को खून के आंसू रुला दिए.

ग्लाइडर के साथ ड्रोन का इस्तेमाल
लेकिन ग्लाइडर से इजरायल की जमीन पर घुसपैठ करते आतंकियों को इस बार जो कवर फायर मिल रहा था, वो सबसे हट कर था. ये कवर फायर असल में इजरायल पर होती रॉकेट्स की वो बारिश थी, जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ. वैसे तो हमास पहले भी कई बार इजरायल पर रॉकेट अटैक कर चुका है, लेकिन इस बार उसने महज 20 मिनट में पांच हजार से ज्यादा रॉकेट्स की बारिश कर मानों सारे रिकार्ड्स की तोड़ डाले. नतीजा ये हुआ कि इजरायल को संभलने का मौका ही नहीं मिला. ऊपर से रही रही-सही कसर इन ड्रोंस ने पूरी कर दी, जिसका इस बार हमास ने बड़े ही टैक्टफुल तरीके से इस्तेमाल किया. और हमास के हमले का यही वो तरीका था, जिसने इजरायल के आयरन डोम सिस्टम को फेल कर दिया.

इसलिए फेल हुआ ‘आयरन डोम सिस्टम’
असल में इजरायल का आयरन डोम सिस्टम रॉकेट्स, तोप के गोलों, मानव रहित विमानों और मोटार्र के हमलों को नाकाम करने के लिए डिजाइन किया गया है. लेकिन ये सिस्टम आम तौर पर बेहद नीचे उड़ान भरने वाले ग्लाइडर्स और छोटे ड्रोन को डिटेक्ट नहीं कर पाता. जिसका फायदा हमास ने उठाया और उसने हमले में ग्लाइडर्स और ऐसे ही ड्रोन का इस्तेमाल किया. शेहाब नाम के इस ड्रोन ने इस बार इजरायल में खासी तबाही मचाई. बेहद हल्के और मीडियम साइज के ये ड्रोन आम तौर पर पांच किलोग्राम तक के विस्फोटक अपने साथ ले जाने में कारगर हैं और हमास ने इसी शेहाब का इस बार जम कर इस्तेमाल किया.

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20 मिनट में दागे गए 5000 रॉकेट्स
ऊपर से आयरन डोम सिस्टम को फेल करने के लिए हमास ने सिर्फ 20 मिनट में पांच हजार से ज्यादा रॉकेट्स दाग दिए. क्योंकि आम तौर पर इजरायल का आयरन डोम सिस्टम रुक-रुक कर दागे जाते रॉकेट्स को इंटसेप्ट कर उन्हें हवा में ही खत्म करने काम कामयाब हो जाता है और हमास ने इस बार उसके आयरन डोम सिस्टम की इसी कमजोरी का पता लगा लिया था.

आयरन डोम सिस्टम बनाने पर एक अरब डॉलर का खर्च
वैसे हमास के गुरिल्ला अटैक से इस बार बेशक इजरायल के आयरन डोम सिस्टम की कमजोरी उजागर हो गई हो, लेकिन इस सिस्टम की खूबियों को अनदेखा नहीं किया जा सका. करीब एक अरब डॉलर की रकम से डेवलप किए गए इस सिस्टम के जरिए टारगेट को 90 फीसदी तक तबाह करना मुमकिन है. ये हवा में मिसाइलों को भी ट्रैक और ध्वस्त कर सकता है. आयरन डोम की हरेक बैटरी में एक रडार डिटेक्शन और ट्रैकिंग सिस्टम, एक फायरिंग कंट्रोल सिस्टम और 20 इंटरसेप्टर मिसाइलों के लिए 3 लॉन्चर होते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो इसे अब तक एक फुलपूफ सिस्टम माना जा रहा था.

हमास ने तलाश ली आयरन डोम सिस्टम की कमजोरी

लेकिन सूत्रों की मानें तो हमास पिछले काफी समय से आयरन डोम सिस्टम की कमियों का पता लगाने की कोशिश कर रहा था. और इसी कड़ी में जब उसे पता चला कि ये सिस्टम एक सीमा तक ही रॉकेट्स के हमलों को रोक सकता है, तो हमास ने एक ही साथ रॉकेट्स की झड़ी लगा कर इसे भेद दिया. करीब चालीस टन अमोनियम क्लोराइड का भंडार इकट्ठा कर चुके हमास ने इस बार हमले में जीपीएस गाइडेड ड्रोन्स का इस्तेमाल कर भी इजरायल को चौंका दिया.

धरे रह गए सारे सुरक्षा इंतजाम
अब बाद इजरायल के सबसे मशहूर खुफिया एजेंसी मोसाद के फेल होने की. वैसे इजरायल के पास अकेले मोसाद ही नहीं, बल्कि और भी कई खुफिया एजेंसियां हैं, जो वक्त-वक्त पर उसे अलग-अलग खतरों से बचाती रही हैं. मसलन, शिन-बेट, इजरायल की घरेलू खुफिया सर्विस, इजरायली मिलिट्री इंटेलिजेंस और मोसाद. इन एजेंसियों और तकनीक की बदौलत इजायल के पास ना सिर्फ युद्ध की बल्कि युद्ध से पहले दुश्मन की रणनीति और हर छोटी-बड़ी हलचल की खबर होती है. उसके पास बॉर्डर में लगे सर्विलांस कैमरे हैं, लेटेस्ट थर्मर इमेजिंग सिस्टम के साथ-साथ मोशन सेंसर लगे हैं. और यहां तक कि बॉर्डर में फेंसिंग भी है. लेकिन इसके बावजूद इजरायल घिर गया.

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ईरान के चक्कर में हमास को भूला इजरायल
इतनी एजेंसियों के होने के बावजूद इस बार जिस तरह से इजरायल पर हमला हुआ, उसने सिर्फ इजरायल ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को चौंका दिया. तो विशेषज्ञों की मानें तो इजरायल अपने दूसरे बड़े दुश्मन ईरान की टोह लेने के चक्कर में शायद हमास की खबर लेना भूल गया. दरअसल, ईरान और इजरायल के बीच शुरू से छत्तीस का आंकडा रहा है. ईरान ही पिछले दरवाजे से हमास को सपोर्ट भी करता रहा है. ऐसे में इजरायल की नजर हमेशा ईरान पर रहती है. वो ईरान के परमाणु कार्यकम को भी नाकाम करने की कोशिश में लगा रहता है. ऐसे में शायद उसका ध्यान इस बार हमास से हट गया और ये हमास ने पिछले 50 सालों में किए गए अपने इस सबसे बड़े हमले से इजरायल को हिला कर रख दिया.

गलत निकला IDF का अनुमान
इस हमले के बाद टाइम्स ऑफ इजरायल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा, हाल के वर्षों में इजरायल के डिफेंस फोर्स यानी IDF ने यह मान लिया था कि हमास  इजरायल पर बड़े हमले नहीं कर सकता है, क्योंकि उसे इजरायल की ताकत का अंदाजा है और प्रतिक्रिया डर से वह ऐसा नहीं करेगा. लेकिन हुआ इसके उलट, जिससे आईडीएफ का अनुमान एकदम गलत निकला.

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इजराइली सेना का संचार सिस्टम नेस्तोनाबूद
एजेंसियों के मुताबिक एक कमांडो यूनिट ने इजरायली सेना के साउथ गाजा हेडक्वार्टर पर हमला किया और उसके संचार सिस्टम को नेस्तोनाबूद कर दिया. इसका असर ये हुआ कि इजरायली फौजी और कमांडर एक दूसरे के साथ संपर्क नहीं साध सके. हमास के आतंकियों ने जिन्हें काबू कर लिया, उनके लिए तो खैर कहीं बात करने का मौका ही नहीं था.

हमास के कई नेता भी नहीं जानते थे हमले का प्लान
दरअसल, हमास जानता था कि दक्षिण हिस्से में इजरायली सैनिकों की तादाद कम है तो उसने वहां से बड़ा हमला किया. वैसे मोसाद तो क्या, हमास ने इस बार अपने इस ऑपरेशन को इतना सीक्रेट रखा था कि खुद हमास के कई लीडर तक इस बात से बेखबर थे कि जिन एक हजार लड़ाकों को हमले का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उनका असल मकसद क्या है? इसकी भनक तब लगी जब इजरायल पर हमले के लिए ऑपरेशन बनाया गया और उसे अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया.

हमले की लंबी तैयारी और बेख़बर मोसाद!
पहले हिस्से में गाजा से ताबड़तोड़ रॉकेट दागे गए. दूसरे हिस्से में सीमा पर हैंग ग्लाइडर उड़ाने वाले लड़ाकों ने घुसपैठ की, जिन्होंने उन इलाकों को सुरक्षित कर लिया जहां सबसे ज्यादा खतरा था. तीसरे हिस्से में कमांडो ट्रेनिंग ले चुके लड़ाकों ने इजरायल की उस मजबूत इलेक्ट्रॉनिक और सीमेंट की दीवार पर धावा बोला जो गाजा को बस्तियों से विभाजित करती है और जिसे घुसपैठ को रोकने के लिए इज़राइल ने बनाया था. यानी ये हमला इतना वेल प्लैंड था जिसे देख कर साफ है कि इसकी तैयारी लंबे वक्त से की जा रही थी.

किसी छलावे से कम नहीं हमास का ये कमांडर
इजरायल पर हुए हमास के जिस हमले ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया, उस हमले के पीछे एक ऐसा शख्स है, जो एक हाथ, एक पैर और एक आंख से लाचार है. यानी एक ऐसा आदमी जिसकी ना तो एक हाथ है और ना ही एक पैर है और उसे दिखता भी एक ही आंख से है. लेकिन इतना होने के बावजूद वो इतना खतरनाक है कि इजरायल ने उसे ना सिर्फ अपने मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में सबसे ऊपर शामिल कर रखा है, बल्कि उसे हर हाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहती है. और खेल देखिए कि इस बार हमास के जिस हमले ने इजरायल को बुरी तरह से रुला दिया है, उस हमले के पीछे भी कोई और नहीं बल्कि वही शख्स है, जिसकी तलाश इजरायल सालों से कर रहा है. मोहम्मद डेफ. जी हां, यानी हमास के मिलिट्री विंग का वो कमांडर जो आज की तारीख में किसी छलावे से कम नहीं है.

हमास कमांडर मोहम्मद डेफ

कौन है मोहम्मद डेफ? 
बेशक मोसाद समेत कई एजेंसियों की मोस्ट वान्टेड लिस्ट में उसका नाम शामिल हो, ये भी सच है कि उसके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है. यानी सार्वजनिक तौर पर उसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. हालांकि अक्सर अलग-अलग जगहों पर आने-जाने और अलग-अलग ठिकानों पर रात बिताने की अपनी आदत के चलते उसे द गेस्ट के नाम से भी जाना जाता है. शनिवार को इजरायल पर हुए हमले के बाद मोहम्मद डेफ का नाम बेशक एक बार फिर से सुर्खियों में हो, लेकिन सच्चाई यही है कि आखिरी बार उसे दो साल पहले 2021 में तब सुना गया था, जब हमास ने इजरायल को उसकी मांगें न मानने पर हमले की चेतावनी दी थी.

पांच बार की गई कमांडर डेफ को मारने की कोशिश
फिलहाल, मोहम्मद डेफ की एक इकलौती तस्वीर पब्लिक डोमेन में मौजूद हैं, जिसके सहारे एजेंसियां उस तक पहुंचने की कोशिश करती हैं. सूत्रों की मानें तो चूंकि मोहम्मद डेफ इजरायल समेत कई देशों के लिए एक बड़ा खतरा है, तो उसे मार गिराने की कोशिश भी कई बार हो चुकी है. कम से कम पांच बार उस पर जानलेवा हमला हुआ है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि हर बार वो ऐसे हमलों से बच निकलने में कामयाब रहा है. हालांकि इन हमलों में उसकी पत्नी और बच्चों की मौत हो चुकी है और इन्हीं हमलों की वजह से उसकी एक हाथ, एक पांव और एक आंख भी खराब हो चुकी है, लेकिन वो अपने आतंकी इरादों से बाज नहीं आ रहा.

डेफ को दूसरा ओसामा मनाता है अमेरिका 
मोहम्मद डेफ को लेकर चर्चाओं का बाजार भी अक्सर काफी गर्म रहता है. चूंकि कई बार बेहद घातक हमलों के बावजूद उसकी जान बची रही है, उसे एक बुलेटप्रूफ टाइप इंसान के तौर पर देखा जाता है. हमास और ऐसे ही दूसरे आतंकी संगठनों के बीच उसकी इज्जत और पकड़ दोनों काफी ज्यादा है. 2009 में उसे अमेरिका ने भी एक घोषित आतंकवादी करार दिया था और बताया था कि वो एक मझे हुए कमांडर केस साथ-साथ हमास के लिए रणनीति यानी एक्शन प्लान बनाने का भी मास्टरमाइंड है. अमेरिका उसे काफी हद तक ओसामा बिन लादेन की मानता है. जिसे डामाई जिंदगी जीने और अजीबोगरीब फैसले लेने के लिए जाना जाता है.

हमले का मास्टरमाइंड है डेफ
सूत्रों की मानें तो ये डेफ की ही प्लानिंग थी जिसने आखिरकार एक हजार से हमास के आतंकियों को इज़राइल में घुसपैठ करा दी, जिन्होंने इजरायल में भारी तबाही मचाई और बंधकों को उठा ले गए. डेफ की वजह से ही अरब से आए आतंकियों ने भी इस हमले में हमास का साथ दिया. और इजरायल की सरहद पर मौजूद अरबों को हमले में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया.