शंभूनाथ शुक्ल
एक बार राजकुमारी डायना ने अपने पति प्रिन्स चार्ल्स से कहा कि वे किसी सूमो पहलवान से मिलना चाहती हैं. यह बात जब जापान को पता चली तो वहां की सरकार ने इस शाही मेहमान को आमंत्रित किया और देश के टॉप सूमो पहलवान से उनकी मुलाक़ात कराई. डायना अति प्रसन्न हुईं और पूछ बैठीं कि आप लोग इतने मोटे कैसे हो जाते हो? सूमो पहलवान ने कहा, तुम हमारे अखाड़े में आओ. पहले तुम्हें पौष्टिक खाना खिला कर फुला देंगे, फिर बताना कैसे मोटे होते हैं. निश्चित ही पहलवान मोटे होते हैं और हठी भी. वे हठ पर आ जाएं तो किसी की नहीं सुनने वाले. यही आजकल अपने देश के पहलवान कर रहे हैं. एक ने पद्म पुरस्कार लौटाया तो दूसरी ने कुश्ती वाले बूट उतार कर टांग दिए.
कोई खिलाड़ी दिन-रात मेहनत कर किसी खेल में अपना नाम स्थापित करता है और अचानक वह पाता है कि खेल संघ के पदाधिकारी उसके साथ खेल कर रहे हैं, तो खेलों में पदक पाने की ललक समाप्त होती जाएगी. यह सब देख कर लगता है, कि अपने देश में खेल सिर्फ राजनीतिक दलों तक ही सीमित है. उन्हीं के योद्धा परस्पर लड़ते हैं, मिलते हैं और पूरे राजनीतिक जीवन में बस खेल ही किया करते हैं. ऐसे माहौल में क्यों कोई खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय खेलों में अपने शौर्य का प्रदर्शन करेगा!
ब्रजभूषण शरण अब पिछले दरवाजे से
लगता है, लड़ाई अब पहलवानों और भारतीय कुश्ती महासंघ के बीच नहीं बल्कि भाजपा और कांग्रेस के बीच शुरू हो गई है. पहलवानों की रुचि अब कुश्ती में नहीं रह गई है. सच बात तो यह है भारत में कुश्ती फिर से राजनीतिक दांव-पेच की शिकार हो गई है. कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह की छवि एक महाबली की रही है. उनके बयान भी इसी तरह के रहे हैं. उन पर महिला पहलवानों के आरोप हैं, कि वे उनके साथ बदसलूकी करते रहे हैं. कुछ ने तो यौन दुष्कर्म के भी आरोप लगाये. किंतु किसी के भी आरोपों की पुष्टि नहीं हुई. अलबत्ता WFI के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण को हटा दिया गया और दोबारा चुनाव हुए. किंतु ब्रजभूषण का दबदबा ऐसा कि दूसरी बार के चुनाव में भी उनके करीबी संजय सिंह अध्यक्ष चुन लिए गए.
पूनिया अपना पद्म परस्कर फुटपाथ पर रख आए
संजय कुमार सिंह न सिर्फ ब्रजभूषण शरण सिंह के करीबी हैं, बल्कि उनके बिजनेस पार्टनर भी हैं. इसलिए पहलवानों को लगता है कि WFI में फिर वही मनमानी चलेगी. इसी से आहत होकर बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने का ऐलान कर दिया और साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने का. पूनिया ने ऐलान ही नहीं किया, बल्कि दिल्ली में लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री के आवास पर गये तथा प्रधानमंत्री से मिलने की कोशिश की. लेकिन बिना प्री-एप्वाइंटमेंट के उन्हें PM से मिलने से रोक दिया गया. सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें अंदर जाने से रोका तो पद्मश्री पुरस्कार का पदक वे वहीं फुटपाथ पर छोड़ कर आ गए. देश के इस चौथे राष्ट्रीय सम्मान को इस तरह फेंकना उचित नहीं कहा जा सकता. यह एक तरह से राष्ट्रीय पदक का अपमान है.
लड़ाई राजनीति निरपेक्ष नहीं
बजरंग पूनिया देश के सम्मानित खिलाड़ी हैं और 2020 में उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक भी जीता था. वे विश्व के नम्बर एक पहलवान माने जाते हैं. फ़्री स्टाइल कुश्ती में उनका जोड़ नहीं. कुश्ती चाहे 65 किलो भार की कुश्ती हो या 61 किलो की, पदक वे झटक ही लाते रहे हैं. इतने वरिष्ठ और सम्मानित खिलाड़ी को इस तरह पद्मश्री पुरस्कार का अपमान नहीं करना चाहिए था. यह पुरस्कार किसी सरकार का नहीं होता, राष्ट्र की जनता की भावनाएं भी इससे जुड़ी होती हैं. उन्होंने जब पद्म पुरस्कार लौटने की घोषणा की थी, तो उतना ही पर्याप्त था. इस तरह से पुरस्कार फुटपाथ पर रख देना तो घोर निंदनीय है. ठीक है कि ये सभी पदक प्राप्त खिलाड़ी पिछले एक वर्ष से ब्रजभूषण शरण सिंह को हटाने की मांग कर रहे थे. मगर हर एक को पता है,कि पहलवानों की यह लड़ाई कोई रजनीति-निरपेक्ष नहीं थी. इसके भीतर WFI पर क़ब्ज़े की कोशिश भी थी.
क्या यह सिर्फ़ दो प्रदेशों की लड़ाई है?
WFI में जीत के मद में चूर संजय कुमार सिंह मालाएं लादे मुस्कुरा रहे थे. उनके साथ ही पूर्व अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह भी. तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी ने पहलवानों की पीड़ा को भूल दिया है. प्रश्न यह भी उठता है कि कुश्ती महासंघ में इन महिला पहलवानों की व्यथा को समझा क्यों नहीं जा रहा? इसकी एक वजह तो इस कुश्ती के पीछे दो राज्यों की लड़ाई को अधिक प्रचारित किया जा रहा है. हरियाणा और उत्तर प्रदेश इस कुश्ती में भिड़े हैं. मजे की बात ये है कि पदक तो जीत कर ला रहे हरियाणा के खिलाड़ी किंतु WFI में क़ाबिज़ हैं उत्तर प्रदेश के महाबली. ब्रजभूषण शरण सिंह बड़बोले हैं. वे अक्सर कहते रहते हैं, हां, मेरा दबदबा है तो रहेगा ही क्योंकि दबदबा तो मुझे भगवान ने दे रखा है. भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) में वे अपनी मनमानी चलाते थे.
ब्रजभूषण सिंह का दबदबा
ब्रजभूषण शरण सिंह के दबदबे का यह हाल है कि वे छह बार लगातार लोकसभा के लिए चुने जा रहे हैं. पांच बार भाजपा से और एक बार सपा के टिकट पर. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पहली गिरफ़्तारी उनकी हुई थी और जेल गए थे. माफिया दाऊद से संबंधों को लेकर उनके ऊपर टाडा (TADA) भी लग चुका है, फिर भी गोंडा ज़िले की किसी सीट से वे लोकसभा में पहुँच ही जाते हैं. इस समय वे केसर गंज सीट से सांसद हैं. ज़ाहिर है, भाजपा उनके प्रति बहुत कठोर नहीं हो सकती. क्योंकि ब्रजभूषण शरण सिंह गोंडा के आसपास की कई सीटों पर असर रखते हैं. गोंडा, बलराम पुर, केसर गंज तीनों सीटों पर से तो वे स्वयं जीत चुके हैं. WFI में 2011 से 2023 तक अध्यक्ष रहे. इसलिए उनके प्रति कठोर होने का मतलब अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मारना. उन्हें यदि भाजपा हटा दे तो फ़ौरन दूसरी पार्टियाँ लपक लेंगी.
“हां, मैंने मर्डर किया!”
एक बार इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये अपने एक साक्षात्कार में ब्रजभूषण शरण ने कहा था कि पहलवानों को मैनेज करना आसान नहीं होता. वे शारीरिक रूप से बहुत मज़बूत होते हैं इसलिए उन्हें अनुशासन में बनाये रखने के लिए एक मजबूत आदमी की दरकार होती है. यूं भी वे खुद एक चैनल पर कह चुके हैं, कि अपने दोस्त रवींद्र सिंह की हत्या करने वाले की हत्या उन्होंने खुद की थी. उनकी इस स्वीकारोक्ति से उनके जलवे का अंदाज़ लगाया जा सकता है. शायद इसीलिए साक्षी मलिक समेत छह अन्य पहलवानों द्वारा उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा, किंतु कोई भी उनका कुछ न कर सका. इस पूरे प्रकरण को उन्होंने उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा और राजपूत बनाम जाट कर दिया. इसीलिए WFI के नये अध्यक्ष संजय कुमार सिंह अब फूले-फूले घूम रहे हैं.
एक-दूसरे पर प्रत्यारोप
ब्रजभूषण शरण सिंह को हटाए जाने के बाद दोबारा चुनाव हुए तो उनके करीबी संजय कुमार सिंह 40 वोट पाकर जीत गए. उनकी प्रतिद्वंदी अनीता श्योराण मात्र 7 वोटों पर सिमट गईं. संजय कुमार सिंह के पैनल ने 15 में से 12 सीटें जीती हैं. फिर भी कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पद उनके विरोधियों को जरूर मिल गए हैं. पहलवानों का आग्रह है कि जब तक ब्रजभूषण सिंह का दबदबा WFI पर रहेगा, कोई भी खिलाड़ी स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर सकता. लेकिन ब्रजभूषण सिंह की लॉबी कह रही है, कि बग़ावत करने वाले पहलवानों को कांग्रेस भड़का रही है. उनके अनुसार यह विशुद्ध तौर पर राजनीति है.
सोशल मीडिया पर इस विवाद को लेकर कांग्रेस पार्टी ने खुल्लमखुल्ला मोर्चा खोल रखा है, उससे भी लगता है कि बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक अब एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. साक्षी मलिक ने तो चुनाव लड़ने का भी एलान किया है.