उत्तराखंड की विधानसभा में समान नागरिक संहिता बिल पेश कर दिया गया है। इस बिल को मंजूरी मिलने के बाद राज्य के सभी लोगों के लिए सिविल कानून एक समान होंगे। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को यह नागवार गुजरा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि ऐसा कानून बनाना गलत है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए 1937 का शरियत ऐक्ट है। इसके अलावा हिंदुओं के लिए भी हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और हिंदू एडॉप्शन ऐक्ट उपलब्ध हैं। इस तरह सभी को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला है और अपने सिविल लॉ के तहत नियमों को तय करने का अधिकार है।
फरंगी महली ने कहा,’हमारा मानना है कि सभी कानूनों में समानता नहीं लाई जा सकती है। यदि आप किसी एक समाज को कानून से बाहर रखते हैं तो फिर यह कैसी समान नागरिक संहिता है। संविधान के मूल अधिकारों में से एक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी है। हमारी राय है कि ऐसे किसी UCC की जरूरत नहीं है। विधानसभा में ड्राफ्ट पेश किया गया है और अब हमारी लीगल टीम इसका अध्ययन करेगी। इसके बाद हम आगे इस पर फैसला लेंगे।’ इस तरह राशिद फरंगी महली ने साफ किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड UCC को अदालत में चैलेंज देने की तैयारी कर रहा है।
बता दें कि असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने भी उत्तराखंड जैसे ही समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही है। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि हम इसका अध्ययन करेंगे और फिर असम में भी इसे लागू किया जाएगा।
इस बीच कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि भाजपा की राज्य सरकारों के पास गिनाने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए UCC का प्रोपेगेंडा खड़ा किया जा रहा है। भाजपा जैसे विविधता वाले देश में अलग-अलग फूलों का गुलदस्ता है, लेकिन यह सरकार एक ही रंग में पूरे देश को रंगना चाहती है। हर तरीका आजमा लें, लेकिन भाजपा उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारेगी।