उत्तर प्रदेश की अस्सी लोकसभा सीटों में 2019 में जिस पार्टी ने समाजवादी पार्टी से दोगुना सीट हासिल की है जाहिर है कि उसका उत्साह भी अखिलेश यादव से दोगुना होना चाहिए था. पर हकीकत कुछ और ही है. बहुजन समाज पार्टी ने 2019 में समाजवादी पार्टी के 5 सीटों के मुकाबले 10 सीटें जीतकर भी 2024 के लिए रहस्यमय चुप्पी का आवरण ओढे हुए दिखाई दे रही है.
ऐसा क्या हो सकता है जिसके चलते बीएसपी ने अभी तक न रैलियां- सभाएं भी शुरू नहीं की हैं. न ही बीएसपी ने अपने कैंडिडेट्स की कोई लिस्ट ही जारी की है. तो क्या इस रहस्यमय शांति के पीछे कुछ खास है? जिसके पत्ते चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद ही पार्टी खोलने वाली है? तो क्या मान लिया जाए कि मायावती की बातचीत इंडिया गठबंधन से हो रही है, मामला पीएम कैंडिडेट्स बनने को लेकर फंसा हुआ है. आइये देखते हैं कि ऐसी संभावना के पीछे कौन से आधार काम कर रहे हैं.
1-बीएसपी के सामने अपने अस्तित्व का संकट, पीएम कैंडिडेट बनने से मिलेगा जीवनदान
अगर बहुजन समाज पार्टी इंडिया एलायंस की ओर से पीएम कैंडिडेट्स बन जाती हैं तो कम से कम 5 साल के लिए पार्टी को एक जीवनदान मिल सकता है. पहली बात तो ये है कि उनके पीएम कैंडिडेट बनने से वो देश की राजनीति में हाइलाइटेड हो जाएंगी. इस कारण उनके बिछड़े कोर वोटर्स एक बार उनके साथ आ सकते हैं. उनके जो कोर वोटर्स पिछले चुनावों में बीएसपी को खत्म मानकर दूसरी पार्टियों को वोटिंग करना शुरू कर रहे थे वे एक बार फिर से उनके साथ आ सकते हैं. हो सकता है कि देश का पहला दलित पीएम बनाने के नाम पर उनका समुदाय एक जुट होकर मायावती के लिए वोटिंग करे. पार्टी में जो भगदड़ की स्थिति बनी हुई है उस पर लगाम लग सकती है.
2-बीएसपी का घटता वोट शेयर
2019 के आम चुनावों में पार्टी को लगभग 22% वोट मिले. पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 2022 के विधानसभा चुनावों में, बसपा के वोट शेयर में 10% की भारी गिरावट देखी गई. सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए केवल 12.8% वोटों को पाने में बसपा कामयाब हो सकी. यह पार्टी के 1993 में अपने गठन के बाद अपने पहले चुनाव में मिले वोटों से थोड़ा ही अधिक वोट था. 1993 से 2022 के बीच बीएसपी को यूपी में कभी भी 19% से कम वोट नहीं मिले. मतलब साफ है कि 2022 के बाद पार्टी में गिरावट का दौर जारी है. 2007 के विधानसभा चुनावों में, जब वह दलितों और ऊंची जातियों के व्यापक गठबंधन के साथ तीन-चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में आई, तो पार्टी ने 30.7% वोट हासिल किए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा को यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी, तब भी उसका वोट शेयर 19.77% था. 2017 के विधानसभा चुनावों में, जब उसने 19 सीटें जीतीं, तो उसका वोट शेयर 22.23% था. जाहिर पार्टी को अपने घटते वोट शेयर की चिंता है. इसके लिए इंडिया गठबंधन की ओर से आने वाले पीएम कैंडिडेट के अवसर को मायावती कतई छोड़ना नहीं चाहेंगी. भले ही उनको पीएम बनने की उम्मीद न हो , पर उनके लिए बेहद फायदेमंद सौदा साबित होगा.
3-अखिलेश यादव ने भी संकेत दिए थे मायावती के पीएम कैंडीडेट बनने की
मायावती ने कुछ दिनों पहले अखिलेश को भला-बुरा कहते हुए साफ कर दिया था कि वह अकेले ही चुनावी मैदान में उतरेंगी. उसके बाद अखिलेश का जो बयान आया था उससे इस बात के संकेत मिले थे कि कहीं न कहीं अंदरखाने में इस बात की चर्चा हो रही है कि मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल करने के लिए उनको पीएम कैंडिडेट पद का ऑफर दिया जा सकता है. मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के साथ ही अखिलेश यादव को गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला करार दिया था. इसके बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव का बयान सामने आया था. अखिलेश यादव ने कहा था कि उनकी पार्टी तो बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रही थी.अखिलेश यादव ने बिना मायावती का नाम लिए बिना ही कहा था कि एक समय पर सपा ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए संकल्प लिया था. अखिलेश ने कहा था कि प्रधानमंत्री उस वर्ग से हो जिन्होंने समाज की तमाम बुराइयों का हजारों साल सामना किया है.
बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की ओर से कई बार उन्हें पीएम पद का दावेदार बनाने की मांग होती रही है. बीएसपी में किसी भी नेता की इतनी हिम्मत नहीं होती कि बिना सुप्रीमो की रजामंदी के वे उनसे संबंधित कोई बयान दे सके. आजतक/इंडिया टुडे के सहयोगी चैनल गुड न्यूज टुडे से बात करते हुए बीएसपी सांसद मलूक नागर ने ये डिमांड रखी थी कि उन्हें आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाए. नागर की इस बात को मायावती की पार्टी द्वारा विपक्षी इंडिया गुट में शामिल होने की शर्त के रूप में देखा जा गया था.अमरोहा से सांसद और मायावती के करीबी माने जाने वाले मलूक नागर की बातों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. नागर ने कहा था कि अगर इंडिया गठबंधन सचमुच बीजेपी को हराना चाहता है तो उसे मायावती को इंडिया गठबंधन का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाना होगा अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर मोदी को रोकना किसी गठबंधन के बूते का नहीं है.
इंडिया गठबंधन को यह पता है कि राम मंदिर लहर को ध्यान में ऱखते हुए यूपी में बीजेपी से मुकाबला आसान नहीं है. 2019 के चुनाव में जब बीएसपी , आरएलडी, सुभासपा, सपा और अन्य पिछड़े नेता भी साथ थे तो बीजेपी की आंधी को रोका नहीं जा सका. बीएसपी सांसद मलूक नागर कहते हैं कि 13 फीसदी मायावती का वोट और विपक्ष का 37-38 फीसदी वोट इंडिया एलायंस को निर्णायक बढ़त दे सकता है. क्योंकि बीएसपी और विपक्ष का वोट मिलकर यूपी में बीजेपी को मिलने वाले 44 फीसदी वोट से काफी ज्यादा है. मलूक नागर की बातों से इनकार नहीं किया जा सकता है.यदि मायावती को प्रधानमंत्री का चेहरा इंडिया गठबंधन द्वारा घोषित किया जाता है तो यह तय है कि बीएसपी के कोर वोटर्स के हंड्रेड परसेंट वोट इडिया एलायंस को जाएंगे.
लोकसभा चुनाव सर पर हैं पर बीएसपी ने अभी तक प्रत्याशियों की सूची नहीं जारी की है.बीजेपी ने राज्य में 51 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का एलान पहले ही कर दिया है. जबकि समाजवादी पार्टी भी 31 सीटों पर उम्मीदवार का एलान कर चुकी है. समाजवादी पार्टी भी अपनी बची हुई सीटों पर कैंडिडेट्स की अभी तक घोषणा नहीं कर सकी है. इन दोनों पार्टियों की उम्मीदवारों की घोषणा में हो रही देरी इस बात की आशंका को बल दे रहा है कि इंडिया गठबंधन में तो कुछ तो चल रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बीएसपी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की सूची लगभग फाइनल कर ली है. अब इंतजार किस बात की है यही सोचने वाली बात है.
7-मायावती के लिए गठबंधन फलदायी रहा है
8-मायावती और प्रियंका की बातचीत
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया कि मायावती को गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के लिए मनाया जा रहा है. काफी हद तक बातचीत सफलता की ओर है. कहा जा रहा है कि मायावती को पीएम कैंडिडेट बनाने के पीछे सोनिया गांधी का दिमाग काम कर रहा है. उन्हीं की पहल पर प्रियंका गांधी ने इस बातचीत को आगे बढ़ाया है. बहुजन समाज पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि गठबंधन के तहत मायावती को 25 सीटें मिल सकती हैं. कहा जा रहा है कि सब कुछ ठीक रहा तो चुनाव अधिसूचना जारी होते ही बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में शामिल हो सकती है. फिर भी इस सबंध में जब तक मायावती की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई फैसला नहीं लिया जाता, तब तक कुछ भी कहना मुश्किल ही है.