लखनऊ। मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन करावास की सजा काट रहे पूर्व मंत्री और बाहुबली अमर मणि त्रिपाठी जेल से छूटे तो राजनीतिक गलियारे में चर्चा तैरने लगी थी कि योगी सरकार के नरम रुख से ऐसा संभव हुआ है। इसी का नतीजा है कि जेल से छूटने के बाद अमरमणि ने न तो रोड शो कर अपनी ताकत का अहसास कराया, न फिर कोई राजनीतिक कार्यक्रम में ही शिरकत किया। उल्टे बस्ती में व्यापारी के बेटे के अपहण मामले में कोर्ट की सख्ती से नींद उड़ी है। अब अमर मणि के बेटे और पूर्व विधायक अमन मणि त्रिपाठी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद मणि परिवार के कदम को लेकर चर्चाएं हो रही हैं।
सभी इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं कि महराजगंज से पिछली लोकसभा में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस की तेजतर्रार प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत इस बार चुनाव में नहीं उतरेंगी? या फिर कांग्रेस ने बिना उनके सलाह के ही मणि परिवार के चर्चित चिराग को हाथ का साथ दे दिया? इतना ही नहीं मणि परिवार की केन्द्र सरकार में राज्यमंत्री और महराजगंज के वर्तमान सांसद पंकज चौधरी की सातवीं बार लोकसभा पहुंचने के सफर में कोई बाधा तो नहीं आएगी? या फिर इसमें पंकज की ही कोई सियासी चाल है। लोग कयास लगा रहे हैं कि अमन मणि के इस कदम के बाद अमरमणि की मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं। अभी तक प्रदेश सरकार का नरम रूख अमर मणि परिवार की तरफ रहा है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष शरद कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह का कहना है कि अमन त्रिपाठी के कांग्रेस में शामिल होने की आधिकारिक सूचना नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से भी इस संदर्भ में बात नहीं हो सकी है।
चचेरे भाई के बहुभोज के दिन क्यो कांग्रेस का थामा हाथ?
अमनमणि के चचेरे भाई और अजीत मणि त्रिपाठी के छोटे भाई अजीत मणि त्रिपाठी के बेटे का गोरखपुर के एक मैरेज हाल से बहुभोज था। अमन ने आखिर इस तारीख को ही कांग्रेस की सदस्यता के लिए क्यों चुना? आमतौर पर अमर मणि का परिवार राजनीतिक पार्टी बदलता है तो इसका जोरशोर से प्रचार भी करता है। महराजगंज के नौतनवा स्थित आवास से लेकर गोरखपुर में दुर्गावाड़ी स्थित आवास पर ढोल नगाड़े के साथ समर्थकों द्वारा मिठाई खिलाई जाती है। लेकिन होली के चंद दिन पहले पाला बदली पर खामोशी को लेकर भी राजनीतिक जानकर कयास लगा रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि मणि परिवार इस कदम से सियासी मिजाज भांप रहा है। जिसके बाद वह कोई बड़ा निर्णय ले सके।
पूर्व विधायक अमन मणि त्रिपाठी शनिवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं यूपी के प्रभारी अविनाश पांडेय के सामने उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। बहुचर्चित पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के पुत्र अमन मणि नौतनवां (महराजगंज) से 2017 में निर्दलीय विधायक चुने गए थे। अमन ने 2022 का विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था। नौतनवां से वर्तमान में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) के ऋषि त्रिपाठी विधायक हैं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में ऋषि ने सपा प्रत्याशी कौशल सिंह को हराया था। इस चुनाव में अमन मणि त्रिपाठी बसपा प्रत्याशी के रूप में तीसरे स्थान पर थे।
सपा-कांग्रेस के गठबंधन से उम्मीदवार अमन होंगे या तनुश्री?
भाजपा ने सांसद व केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी पर लगातार नौवीं बार भरोसा जताते हुए प्रत्याशी घोषित कर दिया है। वहीं कांग्रेस व सपा के बीच सीटों का बंटवारा साफ होने के साथ महराजगंज लोकसभा की सीट कांग्रेस के खाते में आई है। कांग्रेसी प्रत्याशी के नाम पर जिन नामों पर विशेष चर्चा है, उनमें राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के अलावा कांग्रेस जिलाध्यक्ष शरद कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह, पूर्व सांसद जितेन्द्र सिंह व फरेंदा विधायक विरेन्द्र चौधरी प्रमुख रूप से शामिल हैं। अभी तक अमन पूरे परिदृश्य से बाहर थे। लेकिन उनके कांग्रेस में शामिल होने के बाद कयासबाजी तेज हो गई है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि अमरमणि अमन के बजाए लोकसभा में बेटी तनुश्री को मैदान में उतार सकते हैं। पिछली बार कांग्रेस ने उनको टिकट दिया था। बाद में टिकट काट कर सुप्रिया श्रीनेत को दिया गया था। हालांकि इसको लेकर मणि परिवार चुप्पी साधे है।
महराजगंज लोकसभा के पिछले तीन दशक के चुनावी परिणामों पर गौर करें तो यहां के सियासी समर में बैकवर्ड व फारवर्ड के बीच ही लड़ाई रही है। पिछड़ी जाति से आने वाले पंकज चौधरी छह बार जीत हासिल कर चुके हैं। हर्षवर्धन सिंह दो बार व कुंवर अखिलेश सिंह के सिर भी एक बार जीत का सेहरा बंध चुका है। यह दोनों फारवर्ड वर्ग से आते हैं। ब्राह्मण बिरादरी का प्रत्याशी कभी इस सीट से नहीं जीत सका है। पं. हरिशंकर तिवारी, काशीनाथ शुक्ल, गणेश शंकर पाडेय व अजीत मणि लोकसभा के चुनाव में उतरे, लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हो पाई। महराजगंज लोकसभा सीट पर करीब 12 लाख ओबीसी वोटर हैं। इसमें साढ़े तीन लाख अल्पसंख्यक, सवा दो लाख यादव व करीब तीन लाख कुर्मी मतदाता हैं।
सुप्रिया श्रीनेत के पिता हर्षवर्धन थे अंतिम कांग्रेसी सांसद
महराजगंज में 2009 में कांग्रेस आखिरी बार जीत दर्ज की थी और पूर्व सांसद हर्षवर्धन निर्वाचित हुए थे। इसके बाद लगातार दो चुनावों में कांग्रेस को जीत का स्वाद नहीं मिला और इस बार पार्टी को जीत का इंतजार है। महराजगंज में हुए 17 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को पांच बार सफलता मिली है। पार्टी ने 1962, 1967, 1980, 1984 व 2009 में जीत मिली थी। 1962 व 1967 में महादेव प्रसाद, 1980 में कांग्रेस इंदिरा से अशफाक हुसैन, 1984 में जितेन्द्र सिंह व 2009 में हर्षवर्धन कांग्रेस से विजयी हुए थे। इसके अलावा छह बार भाजपा, एक बार सपा व एक बार जनता दल के खाते में महराजगंज की सीट गई है। पिछले दो चुनावों से यह सीट लगातार भाजपा के खाते में जा रही है। 2014 व 2019 में पंकज चौधरी ने लगातार कमल खिलाया है। 2019 में भाजपा के पंकज चौधरी 726349 वोट पाकर विजयी हुए तो सपा के अखिलेश सिंह 385925 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत तीसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 72516 वोट मिले थे।
पूर्व सांसद हर्षवर्धन की बेटी सुप्रिया श्रीनेत पिछली बार लोकसभा चुनाव में टीवी पत्रकारिता छोड़कर उतरी थीं तो उनके पास पिता के विरासत को बताने के सिवा कुछ नहीं था। लेकिन वर्तमान में वह उन चुनिंदा कांग्रेस प्रवक्ता में शुमार हैं, जिन्हें भाजपा भी इग्नोर नहीं कर पाती है। लेकिन कांग्रेस सुप्रिया को टिकट देती है तो सवाल उनकी लोकसभा में पकड़ और जातिगत समीकरण को लेकर है। पिछले लोकसभा चुनाव में वह 72516 वोटों पर सिमट गई थीं। वही सपा के अखिलेश सिंह 3 लाख 85 हजार से अधिक वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा के पंकज चौधरी 726349 वोट पाकर लंबे अंतर से छठवीं बार संसद पहुंचे थे। हालांकि कांग्रेस का एक खेमा पंकज चौधरी के विरोध में जातिगत समीकरण को देखते हुए वीरेन्द्र चौधरी को मैदान में देखना चाहता है।
महराजगंज में निवाचित सांसद
2019-पंकज चौधरी भाजपा
2014-पंकज चौधरी भाजपा
2009-हर्ष वर्धन कांग्रेस
2004-पंकज चौधरी भाजपा
1999-अखिलेश सिंह सपा
1998-पंकज चौधरी भाजपा
1996-पंकज चौधरी भाजपा
1991-पंकज चौधरी भाजपा
1989-हर्ष वर्धन सिंह जनता दल
1984-जितेन्द्र सिंह कांग्रेस
1980-अशफाक हुसैन कांग्रेस इन्दिरा
1977-शिब्बन लाल सक्सेना जनता पार्टी
1971-शिब्बन लाल सक्सेना निर्दल
1967-महादेव प्रसाद कांग्रेस
1962-महादेव प्रसाद कांग्रेस
1957-शिब्बन लाल सक्सेना निर्दल
1952-शिब्बन लाल सक्सेना निर्दल