चुनावी बॉन्ड स्कीम के रद्द होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पार्टियों से इसका डेटा सार्वजनिक करने को कहा था। ऐसे में कई पार्टियाँ असमंजस में पड़ गईं तभी, तृणमूल कॉन्ग्रेस और जेडीयू ने अपने दानदाताओं का नाम छिपाए रखने के लिए नई तरकीब निकाली। इन पार्टियों ने बताया है कि इन्हें नहीं पता इनकी पार्टियों को करोड़ों किसने डोनेट किए। किसी ने कहा कि उनके कार्यालय के बाहर कोई लिफाफे में छोड़ गया तो कोई कह रहा है कि उनके दानपेटी में कोई चुपके से करोड़ों चंदा डाल गया जिसका उन्हें पता नहीं चला।
एक रिपोर्ट के अनुसार, तृणमूल कॉन्ग्रेस ने तो कहा कि कुछ अज्ञात लोगों ने कोलकाता स्थित उन्हें कार्यालयों में सीलबंद लिफाफे छोड़े थे इसलिए उन्हें नहीं पता कि उन्हें डोनेशन देने वालों का नाम क्या है। टीएमसी ने ये वजह देकर अपने दानदाताओं की पहचान का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने 16 जुलाई, 2018 और 22 मई, 2019 के बीच चुनावी बॉन्ड के जरिए सामूहिक रूप से लगभग 75 करोड़ रुपए का योगदान दिया।
पार्टी का कहना है कि कुछ अज्ञात लोगों ने उनके कोलकाता स्थित कार्यालयों में ये बॉन्ड भेजे थे और कुछ ने सीलबंद लिफाफे ड्रॉप बॉक्स में छोड़े थे इसलिए उन्हें नहीं पता कि उन्हें डोनेशन देने वालों का नाम क्या है। टीएमसी ने ये वजह देकर अपने दानदाताओं की पहचान का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने बताया कि 16 जुलाई, 2018 और 22 मई, 2019 के बीच चुनावी बांड के जरिए सामूहिक रूप से लगभग 75 करोड़ रुपए का योगदान दिया।
इसी तरह से जदयू ने भी जवाब दिया। उन्होंने अपने 30 मई 2019 को जमा कराए हलफनामे कहा था 3 अप्रैल 2019 को पटना में कोई आया और उन्हें सील लिफाफा देकर चला गया जब उसे खोला तो उसमें 1-1 करोड़ रुपए वाले 10 इलेक्ट्रॉल बॉन्ड थे। जेडीयू ने कहाउन्हें नहीं पता कि ये दानदाता कौन थे।
उन्होंने कहा, “न हमें पता है कि दान किसने दिया और न हमने जानने की कोशिश की। उस समय सुप्रीम कोर्ट का आदेश अस्तित्व में नहीं था। सिर्फ भारत सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना चलती थी।” पार्टी ने इस बयान के साथ ही दो दानदाताओं के नाम भी उजागर किए। एक का नाम अजमेर की श्री सीमेंट लिमेटेड है जिन्होंने 2 करोड़ दान दिए, और दूसरी हरियाणा के भारतीय एयरटेल लिमिटेड है जिन्होंने 1 करोड़ रुपए दान किए।
वहीं टीएमसी ने अपने एक भी दानदाता का नाम नहीं बताया है। उन्होंने बस कहा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के यूनिक नंबर से शायद दानदाताओं का पता चले, उन्हें तो जानकारी नहीं है।