लखनऊ। लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने जब अपनी सूची जारी की, उसके बाद पार्टी के कुछ नेताओं में असंतोष है। अभी तक कथित तौर पर सपा ने तीन बाहरी नेताओं को टिकट दिया है। पार्टी के नेताओं के अनुसार ऐसे लोगों को टिकट मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी। शुक्रवार को सपा ने अपनी तीसरी सूची में मेरठ सीट से अधिवक्ता भानु प्रताप सिंह और बिजनौर जिले की नगीना सीट से रिटायर्ड अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (बिजनौर) मनोज कुमार को मैदान में उतारकर अपने कार्यकर्ताओं को हैरान कर दिया।
भदोही सीट TMC को देने से नाराज सपा कार्यकर्ता
इसके अलावा सपा ने भदोही सीट भी तृणमूल कांग्रेस को दे दी, जो इंडिया गठबंधन की सहयोगी है। टीएमसी इस सीट के लिए पूर्व कांग्रेस विधायक ललितेश पति त्रिपाठी को उम्मीदवार बना सकती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के पोते हैं।
सपा नेता हाकिम लाल बिंद की नजर अपनी पत्नी आशा देवी के लिए भदोही से टिकट पर थी। वहीं बसपा से सपा में शामिल हुए महेंद्र बिंद को भी टिकट की उम्मीद थी। 2019 में बीजेपी के रमेशचंद बिंद ने बीएसपी के रंगनाथ मिश्रा को 43,615 वोटों से हराकर सीट जीती थी। भदोही में एक नेता ने कहा, “पार्टी वफादार कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रही है। बाहर से लोगों को लाया जा रहा है। इससे पार्टी के वास्तविक कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं।”
सरधना से सपा विधायक अतुल प्रधान मेरठ से टिकट मांग रहे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने जीती थी। उन्होंने सपा के साथ चुनाव लड़ने वाले बसपा के हाजी याक़ूब क़ुरैशी को 4,729 वोटों के मामूली अंतर से हराया था। शुक्रवार को लिस्ट की घोषणा के बाद अतुल प्रधान ने अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए X पर पोस्ट करते हुए लिखा, “मेरठ लोकसभा की जनता ने संघर्ष करने के लिये दुआएं की, मौका ना मिलने पर आप सभी से माफ़ी चाहता हूं। सरधना की जनता ने जनसेवक के रूप में चुनकर संघर्ष करने का जो मौका दिया है, उनका आभार। ग़रीब-मज़दूर किसान के हक़ एव न्याय के लिये संघर्ष जारी रहेगा।”
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अतुल प्रधान ने दावा किया कि सपा ने भानु प्रताप सिंह की उम्मीदवारी को रोक दिया है और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपनी पसंद पर पुनर्विचार कर रहा है। एसपी के सूत्रों ने अतुल प्रधान के दावों को खारिज कर दिया।
हाल ही में सपा में शामिल हुए मनोज कुमार को नगीना से टिकट दिए जाने से भी पार्टी में नाराजगी है। नगीना विधायक मनोज कुमार पारस अपनी पत्नी नीलम पारस के लिए इस सीट से टिकट मांग रहे थे। नगीना एक आरक्षित सीट है, जहां 2019 में एसपी-बीएसपी गठबंधन के तहत बीएसपी के गिरीश चंद्र ने चुनाव लड़ा था। गिरीश ने बीजेपी के यशवंत सिंह को 1.66 लाख वोटों से हराकर सीट जीती थी।
बिजनौर में एक अन्य नेता ने भी इसी तरह की बात कही। बिजनौर में एक वरिष्ठ सपा नेता ने कहा, “जिन लोगों ने पार्टी के लिए काम नहीं किया उन्हें टिकट क्यों मिलना चाहिए? यह हमारे संगठन को कमजोर करता है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही 17 लोकसभा सीट कांग्रेस को देकर पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश किया है।”
स्थानीय पार्टी नेताओं का कहना है कि वे कांग्रेस की सीटों की हिस्सेदारी से निराश हैं। एक नेता ने कहा कि कांग्रेस को राज्य की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलने से सभी को आश्चर्य हुआ है। राज्य में कांग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड के बारे में बात हुए नेता ने कहा कि अखिलेश यादव का निर्णय कांग्रेस के लिए बहुत अनुकूल रहा है।
कैडर कमजोर होने का है डर
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने सिर्फ रायबरेली सीट जीती थी। यहां तक कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी अमेठी से हार गए थे। चुनाव में कांग्रेस का कुल वोट शेयर 6.36% था। 2014 में कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली में जीत हासिल की थी, जबकि उसका वोट शेयर 7.5 फीसदी था। कुछ सपा नेताओं का यह भी कहना है कि पिछले चार चुनावों में पार्टियों के साथ गठबंधन करने से राज्य में उसका कैडर कमजोर हो गया है।
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। उसके बावजूद सपा 403 सीटों में से केवल 47 सीटें ही जीत पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल पांच सीटें जीतीं। बसपा ने 10 सीटें जीतीं थीं।
2022 के विधानसभा चुनावों में एसपी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP), राष्ट्रीय लोक दल और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन किया। आरएलडी और एसबीएसपी अब एनडीए के साथ हैं। तब सपा ने 347 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और बाकी सीटें अपने सहयोगियों को दे दी थीं। एक एसपी नेता का कहना है कि पार्टी ने कांग्रेस को 17 सीटें इसलिए दीं क्योंकि उसे मुस्लिम वोटों के बंटने का डर था।