क्या अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते योगी के सामने मुश्किल खड़ी कर रहे बृजेश पाठक?

यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ थे जो अपने कर्तव्य और ईमानदारी के प्रति इतने निष्ठावान हो गए थे कि अपने पिता के निधन पर भी उत्तराखंड स्थित पंचूर अपने गांव ना जा सके। लेकिन यदि वह चाहते तो चार्टर्ड प्लेन से अपने घर जा सकते थे लेकिन उन्होंने राजधर्म को आगे माना, क्योंकि एक राजा के लिए सबसे बड़ा धर्म राज धर्म होता है। यह कोरोना का पहला चरण चल रहा था।
सौरभ सोमवंशी
करीब 3 वर्ष पहले जब कोरोना अपने चरम पर था पूरा देश त्राहि त्राहि कर रहा था तब 20 अप्रैल 2020 को कालिदास मार्ग स्थित अपने आवास पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोविड-11 की टीम के साथ मीटिंग कर रहे थे, माथे पर चिंता की लकीरें थी ,10 बजकर 44 मिनट पर उनके सहयोगी बल्लू राय आते हैं और एक चिट उनके हाथ में देते हैं एक मिनट से भी कम समय में मुख्यमंत्री किसी से बात करते हैं उसके बाद फोन कट कर देते हैं आंखों में आंसू आ जाते हैं और रुमाल से आंख पोंछते हैं।एक बार फिर से मीटिंग चलने लगती है।
मीटिंग में मुख्यमंत्री अधिकारियों को फिर से निर्देश देने लगते हैं और बाहर टीवी चैनलों पर एम्स में मुख्यमंत्री के पिता आनंद सिंह बिष्ट के निधन की खबर चलने लगती है। मुख्यमंत्री मीटिंग समाप्त करते हैं और शाम को मुख्यमंत्री अपनी मां को एक पत्र लिखते हैं जिसमें वह लिखते हैं की “मां मैं आना तो चाहता हूं लेकिन मेरे पैरों में राज धर्म की बेड़ियां बंधी हुई है, मां मैं इस समय बहुत बड़ी जिम्मेदारी से गुजर रहा हूं पूरे प्रदेश में कोरोना की भयंकर लहर है मैं आ ना पाऊंगा लेकिन मैं यह चाहता हूं कि पिताजी का अंतिम संस्कार कोरोना की गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए हो “
यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ थे जो अपने कर्तव्य और ईमानदारी के प्रति इतने निष्ठावान हो गए थे कि अपने पिता के निधन पर भी उत्तराखंड स्थित पंचूर अपने गांव ना जा सके। लेकिन यदि वह चाहते तो चार्टर्ड प्लेन से अपने घर जा सकते थे लेकिन उन्होंने राजधर्म को आगे माना, क्योंकि एक राजा के लिए सबसे बड़ा धर्म राज धर्म होता है। यह कोरोना का पहला चरण चल रहा था ।
अब हम बात करते हैं दूसरे चरण की जो अत्यंत भयावह था लगातार मौतें हो रही थी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर संभव प्रयास कर रहे थे लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ फूहड़ कोशिशें भी हो रही थी 12अप्रैल 2021 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन कानून मंत्री बृजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को एक पत्र लिखा उसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त बताया और कहा कि उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था जिस तरह से चल रही है उस तरह से लॉकडाउन अपरिहार्य हो सकता है। यह बात बृजेश पाठक अपने पत्र में उस दिन कह रहे थे जिसके दो दिन पहले योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन के बारे में कहा था कि वह किसी चीज का विकल्प नहीं है
एक कैबिनेट मंत्री का उस संवेदनशील समय में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठाना निश्चित रूप से एक सामान्य घटना नहीं थी वह भी तब जब बृजेश पाठक का पत्र अपर मुख्य सचिव के पास पहुंचने के पहले मीडिया में लीक हो गया एसीएस के पास पत्र पहुंचा भी नहीं था तभी विपक्ष की ओर से बयान बाजी का दौर चालू हो गया क्योंकि बृजेश पाठक ने विपक्ष को सवाल उठाने का मौका दे दिया था। इस तरह से उस समय इसे जानबूझकर बृजेश पाठक द्वारा योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करने का एक तरीका गया। दो बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्राप्त कर चुके और देश के प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े पत्रकार श्याम लाल यादव की किताब “एट द हर्ट आफ पावर” द चीफ मिनिस्टर ऑफ़ उत्तर प्रदेश किताब के अनुसार यह वही समय था जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को हटाने की पूरी तैयारी कर ली गई थी बृजेश पाठक का यह पत्र इसीलिए एक सामान्य घटना नहीं थी, क्योंकि श्याम लाल यादव ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मई महीने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन नई दिल्ली में बैठे हुए लोगों को ये समझ में आ गया की उत्तर प्रदेश में यदि योगी आदित्यनाथ के साथ छेड़खानी की गई तो लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी को वनवास झेलना पड़ सकता है।
अभी तीन दिन पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बृजेश पाठक को लेकर उनके मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाओं का जिक्र किया है अखिलेश यादव का कहना अनायास नहीं है क्योंकि जब हाथरस में सैकड़ो लोगों की एक दुर्घटना में मौत हो गई और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हाथरस में पीड़ितों का हाल-चाल ले रहे थे घायलों से मुलाकात कर रहे थे तब उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक नई दिल्ली में बीएल संतोष के साथ मीटिंग कर रहे थे‌। एक मुख्यमंत्री जो कोरोना की भयंकर लहर के कारण अपनी जिम्मेदारियां को समझते हुए अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल ना हो सका ये कृत्य उस मुख्यमंत्री के डिप्टी सीएम का था जिसने हाथरस और दिल्ली में पहले दिल्ली को चुना क्योंकिवहां पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष से मुलाकात होनी थी।
निश्चित रूप से बृजेश पाठक को अपने विभाग स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की व्यवस्था को लेकर हाथरस में होना चाहिए था लेकिन वह नई दिल्ली में थे शाम तक मीडिया में छीछालेदर हुई तो हाथरस पहुंच गए। ये वही बृजेश पाठक है जब पूरे उत्तर प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की तानाशाही की खबरें मीडिया में चलाई जा रही है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वीआईपी कल्चर खत्म करने लाल और नीली बत्ती को समाप्त करने की बात की जा रही है और गाड़ियों की चेकिंग हो रही है तो बृजेश पाठक सीधा-सीधा मुख्यमंत्री को चुनौती देते हुए ये बयान दे रहे हैं कि यह सब कुछ गलत हो रहा है और ब्यूरोक्रेसी पूरी तरह से तानाशाह हो गई है, बृजेश पाठक यह सब कुछ क्यों कर रहे हैं ऐसी कौन सी बात है जो कैबिनेट की मीटिंग में ना उठाकर सरकार के समक्ष ना उठाकर मीडिया के समक्ष उठा रहे हैं,
बृजेश पाठक यह सब कुछ करके आखिर किसको कटघरमें खड़ा करना चाहते हैं।
निश्चित रूप से बृजेश पाठक यह सब कुछ करके योगी आदित्यनाथ की सरकार को तो कटघरे में खड़ा कर सकते हैं विपक्ष के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं
लेकिन वह नुकसान उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार का कर रहे हैं यह भी उनको समझना होगा।
राजनीति में सब कुछ अनायास ही नहीं होता कई राजनीतिक दलों में रह चुके बृजेश पाठक पूरी तरह से परिपक्व राजनेता है निश्चित रूप से वह जो कुछ भी कर रहे हैं वह सोच समझकर विचार कर और हो सकता है कि किसी के इशारे पर कर रहे हैं।