दुनिया का सिरमौर बनने की ओर अग्रसर भारत
– ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत एवं उसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख एवं सीख के कारण भारत दुनिया का सिरमौर बनने की दिशा में अग्रसर है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में 5 दिन के विदेश दौरे में तीन देशों की यात्रा की और 31 ग्लोबल लीडर्स और वैश्विक संगठनों के प्रमुखों के साथ मुलाकात की। मोदी की विदेश यात्राओं से विश्व में भारत का न सिर्फ सम्मान बढ़ रहा है बल्कि दुनिया का हमारे देश के प्रति नजरिया भी बदल रहा है। भारत का हमेशा से मानना रहा है कि दुनिया के शीर्ष ताकतों को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए। आर्थिक रूप से संपन्न देशों को छोटे-छोटे देशों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखना होगा। प्रधानमंत्री के एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य का मंत्र इस बात की ओर ही संकेत है। भारत में वैश्विक विकास को फिर से पटरी पर लाने, युद्धमुक्त दुनिया बनाने, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और डिजिटल परिवर्तन जैसे वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता है। इस पहलू को अब दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां भी स्वीकार करने लगी हैं। मोदी ने बार-बार कहा है भारत “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना से काम करता है, जिसमें छोटे-छोटे देशों के हितों को पूरा करने के लिए समान विकास और साझा भविष्य का संदेश भी निहित है, जो भारत की आशावादी एवं समतामूलक सोच को दर्शाता है।
भारत को स्वर्णिम भारत, अच्छा भारत, रामराज्य का भारत या दुनिया का सिरमौर इसलिये कहा जाता है कि यह वो देश है जहाँ से दुनिया ने शून्य को जाना। खेल, पर्यटन और फिल्मों से जिसको पहचाना जाता है। जिसकी अंतरिक्ष में पहुँच, तकनीकी प्रतिभाओं से विश्व ने भी भारत का लोहा माना है। बिना रक्त क्रांति के जिसने पायी थी आजादी। भारत दुनिया को बाजार नहीं, एक परिवार मानता है। संतों के सान्निध्य में चलने वाली भारत की व्यवस्था पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शन हैं। मानव सभ्यता के 95 प्रतिशत समय तक भारत दुनिया को खनिज, मसाले और धातुओं के साथ ही धर्म, गणित एवं खगोलशास्त्र की अवधारणाएं देता रहा। जब सारी दुनिया भटकती है तब भारत उसका मार्ग प्रशस्त करता है। भारत टकराव और संघर्ष को मानवता के लिए खतरा मानता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि मौजूदा दौर में हमें अपने अस्तित्व ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता के लिए लड़ने की जरूरत है। भारत ने अपनी विदेश नीति के जरिए हमेशा ही ये संदेश दिया है कि आज दुनिया जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आतंकवाद, युद्ध और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है।
आज दुनिया में ऐसी ही संवेदनशील अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण की चर्चा हो रही है जहां समाज कल्याण एवं जीडीपी विकास दोनों का सह-अस्तित्व हो और नागरिकों की प्रसन्नता सर्वाेपरि हो। भारत ऐसी ही अर्थव्यवस्था यानी संवेदनशील वैभव के सदुपयोग को खुशहाल जीवन और दीर्घकालिक आत्मनिर्भर समाज का आधार मानते हुए आगे बढ़ रहा हैं। भारतीय सभ्यता सदा से धन और दान दोनों को सर्वाेच्च मानती है। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने वाकपटुता, सहायता करने की तत्परता, शत्रुओं से निपटने की बुद्धिमत्ता, स्मृति, कौशल, नैतिकता एवं राजनीति का ज्ञान आदि गुणों को सफल नेतृत्व का आधार बताया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हीं गुणों के बल पर भारत को दुनिया में अव्वल स्थान पर पहुंचाया हैं। भारत के पास सबसे मजबूत लोकतंत्र है, विविधता है, स्वदेशी एवं समावेश सोच, आदर्श जीवनशैली, वैश्विक सोच है और दुनिया इन्हीं आइडियाज में अपनी सभी चुनौतियों का समाधान देख रही है।
आज अमेरिकी अपनी गिरती साख को लेकर चिन्तीत है। यूरोपीय संस्कृति ऐसी रही है, जिसमें उन वस्तुओं पर भी पैसा बहाया गया, जिनकी उन्हें कभी जरूरत ही नहीं थी। चीन ने कारोबार और नीतियों का ऐसा रास्ता अपनाया, जिसमें कोई नैतिकता नहीं। रूस अपने शत्रु को आंकने में गलती कर गया और एक अंतहीन से युद्ध में उलझकर रह गया। दुनिया में मची इस उथल-पुथल के बीच ऐसा लगता है कि केवल भारत ही ऐसी प्रमुख शक्ति है, जिसने ऐसा रास्ता चुना जो कूटनीतिक समझ और नैतिकता से भरा है। साथ ही, उसने एक स्थिर अर्थव्यवस्था के वैश्विक ब्रांड के रूप में खुद को स्थापित किया है, जिसके साथ दुनिया व्यापार करना चाहती है। ये सब इसी कारण संभव हुआ, क्योंकि हम अपनी संस्कृति से जुड़े हैं, हमारा नेतृत्व संस्कृति से जुड़ा एक महान् कर्मयोद्धा कर रहा है।
दुनिया पिछले हजारों सालों से सुखों के लिए दौड़ रही है लेकिन इस दौड़ में हार चुकी है। अब उसकी नजर भारत पर है। देश को अपनी सारी शक्ति एकजुट करनी होगी। सारी दुनिया में कट्टरपंथ और उदारता के बीच लड़ाई चल रही है। कपट और सरलता के बीच संघर्ष चल रहा है। देश को अपने मूल्यों को स्थापित करने के लिए सेनापति की भूमिका निभानी होगी और उसके लिये उसकी तैयारी भी है।
वर्तमान में भारत आर्थिक, सामरिक, वैज्ञानिक तथा ज्ञान के क्षेत्र में विश्व का सिरमौर बन रहा है, यह अच्छा संकेत है। अन्यान्य क्षेत्रों के साथ भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर है। सौर ऊर्जा उत्पादन में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिए सारा संसार भारत की ओर बड़ी आशा और विश्वास के साथ देख रहा है। परन्तु अनेकानेक विशेषताओं एवं विलक्षणताओं के बीच कुछ विसंगतियां एवं विषमताएं भी हैं। भारत की अस्मिता का प्रतीक मातृशक्ति की आज सर्वत्र अवमानना की जा रही है। चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता से जूझता हुआ हमारा भारतीय समाज भोगवादी संस्कृति का आदी हो चुका है। अपने देश में भारत के हित में विचार करनेवाले, समाज की उन्नति के संबंध में चिंतन करनेवाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी आज देश की व्यवस्था में राष्ट्रभक्तों का अभाव दिखता है, संकीर्ण राजनीति एवं सत्ता की दौड़ में मूल्यों को धुंधलाने की स्थितियां कमजोर करती है। यही कारण है कि संपूर्ण देश में एक असंतोष की भावना दिखाई देती है। सरकारी यंत्रणाओं के प्रति जनमानस का विश्वास प्रायः लुप्त होता जा रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में नये परचम फहराने वाले युवाओं, घर को संस्कारों से संवर्धित करनेवाली नारीशक्ति, संपूर्ण भारत के जीवन को पोषित करनेवाले हमारे अन्नदाता किसान भाइयों तथा खेतों, कारखानों तथा सर्वत्र मजदूरी करनेवाले श्रमिकों, वन-संस्कृति का जतन करनेवाले वनवासी भगिनी-बंधुओं के आत्मविश्वास, लगन तथा परिश्रम के जागरण से भारत दुनिया में अव्वल होने की दिशा में अग्रसर है। देश का शिक्षित, प्रबुद्ध तथा समृद्ध समाज को दीन-दलितों, अशिक्षितों तथा असहाय लोगों के उत्थान के लिए आगे आना होगा। अंतर्राष्ट्रीय संगठन डेलायट ने अपनी हालिया रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक भारत के चीन और अमेरिका जैसी विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़कर दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में उभर कर सामने आने की आशा व्यक्त की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के मध्यम वर्ग का दायरा काफी तेजी से बढ़ रहा है जिसके कारण बाजार तक पहुंच रखने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। व्यापार की नीतियों में उदारीकरण और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ने का असर उपभोक्ता बाजार पर दिख रहा है, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं और उत्पादों के निर्यात में बढ़ोत्तरी ने भी उपभोक्ता बाजार का आकार बढ़ाने में सहायता की है।
हमें राष्ट्र को आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सामरिक दृष्टि से सबल बनाना होगा। भारत को दुनिया का सिरमौर देखने की कामना करने वाले लोगों से अपेक्षा है कि वे जागे, कुछ नया और अनूठा करें। आनेवाली पीढियां तुम्हें निहार रही हैं। भारत का भविष्य अब युवाओं पर ही निर्भर है। उठो, जागो और समस्त दायित्व अपने कंधों पर ले लो। और जान लो कि तुम ही अपने भाग्य के विधाता हो। जितनी शक्ति और सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर है। अतः अपना भविष्य स्वयं गढ़ों। मानव चिंतन के शीर्ष पर रहने वाला भारतीय समाज 300 वर्षों के अंतराल के बाद अपने ऐतिहासिक गौरव को फिर से पाने के पथ पर अग्रसर है। मध्यकाल में राह भटकने के बाद आज देश की युवा पीढ़ी एक ऐसे भारत में आगे बढ़ रही है, जो अवसर, संस्कृति और प्रगति का देश है।
जीत और गठबंधन की मृगमरीचिका में आखिर कबतक भटकेगी कांग्रेस?
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
कांग्रेस एक पुरानी राजनीतिक पार्टी है, जिसका देशव्यापी जनाधार है। लेकिन वह ‘जीत’ और ‘गठबंधन’ की मृगमरीचिका में आखिर कबतक भटकेगी, यह एक यक्ष प्रश्न है? आखिर कमजोर ‘सियासी बैशाखियों’ के सहारे उसकी जीत कितना मुकम्मल कहलाएगी और स्थायी बन पाएगी, यह उससे भी ज्यादा विचारणीय पहलू है! वैसे भी जब कांग्रेस विभिन्न महत्वपूर्ण राज्यों में क्षेत्रीय दलों की वैशाखी ढूंढ़ती है या फिर मुद्दों के बियाबान में भटकती और फिर स्टैंड बदलती नजर आती है तो मुझे इसके रणनीतिकारों पर तरस आती है।
ऐसा इसलिए कि मैंने भू-जमींदारी देखी है, जहां पर लोग अपनी जमीनें ठेके या बंटाईदारी पर देकर अनाज और पैसे दोनों लेते हैं। ठीक उसी तरह से आज कांग्रेस के रसूखदार और धन्नासेठ नेता पार्टी संगठन में पद और चुनावी टिकट देने के वास्ते ‘वोट’ और ‘पैसा’ दोनों लेते/लिवाते हैं, यह जानते हुए भी कि सामने वाला न तो उनका जनाधार बढ़ा पाएगा और न ही चुनाव जीत/जीतवा पाएगा। ऐसा वो सिर्फ इसलिए करते हैं कि सामने वाला अमीर है, वफादार है, पिछलग्गू भर है या फिर निहित समीकरण वश किसी ने उसकी सिफारिश की है। बेशक कुछ अपवाद भी हो सकते हैं, लेकिन वही जिनके नेहरू-गांधी परिवार से ठीकठाक सम्बन्ध हैं।
अब बात पते की करते हैं। जैसे एक शातिर बंटाईदार अपने भूस्वामी की भूमि पर भी कब्जा कर लेता है और इसमें जब वह असफल होता है तो जमीन मालिक से कम कीमत में उसकी रजिस्ट्री करवाना चाहता है। अनुभवहीन भूस्वामियों को ऐसा करते हुए भी देखा सुना है। ठीक इसी प्रकार लालू प्रसाद और स्व. मुलायम सिंह यादव जैसे नवसियासी बटाईदारों ने कांग्रेस के साथ किया और आज क्षेत्रीय सियासी जमींदार बन बैठे हैं। ऐसा इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि निहित स्वार्थवश पीवी नरसिम्हाराव यही चाहते थे! उनके तिकड़म को सोनिया गांधी नहीं समझ सकीं!
वहीं, आज जब राहुल-प्रियंका गांधी की कांग्रेस की रीति नीति देखता हूँ तो इनकी राजनीतिक जमींदारी के हश्र को महसूस भी करता हूँ। कांग्रेस माने या न माने, लेकिन समाजवादी, वामपंथी और राष्ट्रवादी सियासी जमींदारों ने उसकी राजनीतिक जमींदारी को क्षत-विक्षत करने में अहम भूमिका निभाई है और हैरत की बात यह है कि वह समझ नहीं पाई और नादान बनी रही। जबकि इसके खिलाफ ठोस और जमीनी रणनीति बनानी चाहिए। जैसे कि उसके बाद जन्मी भाजपा ने किया है।
माना कि सत्ता प्राप्ति के लोभ में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन यानी यूपीए/महागठबंधन की सोच तो सही है, लेकिन इनके इशारे पर कांग्रेस संगठन को हांकना कतई सही नहीं है। कांग्रेस इससे इंकार कर सकती है, लेकिन वह आज इसी की पूरी सियासी कीमत अदा कर रही है। आज वह सत्ता में नहीं है, फिर भी उन्हीं लोगों से सहारा ढूंढ रही है, जो उसकी सियासी पतन के लिए कसूरवार हैं। चूंकि मैंने एआईसीसी/बीजेपी/तीसरे मोर्चे को कवर किया है, इसलिए दावे के साथ कह सकता हूँ कि कांग्रेस के अंग्रेजी भाषी दलाल नेताओं ने उसके जमीनी नेताओं को भाजपा या क्षेत्रीय दलों में जाने के लिए अभिशप्त कर दिया।
चूंकि कांग्रेस के जमीनी नेताओं के पास रणनीति और जनाधार दोनों है, इसलिए वो अपने व्यक्तिवादी मिशन में सफल रहे, लेकिन कांग्रेस दिन ब दिन डूबती चली गई। राजनीतिक परिस्थिति वश कभी दो डग आगे तो चार कदम पीछे चलने को अभिशप्त हो गई। इस बात में कोई दो राय नहीं कि किसी भी स्थापित दल को चलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय लायजनरों की जरूरत पड़ती है, लेकिन इनके निहित स्वार्थों के ऊपर यदि ब्लॉक, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार रखने वाले नेताओं की उपेक्षा की जाएगी तो फिर वोट कहाँ से आएगा, यह सोचने की फुर्सत सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के पास नहीं होगी।
अतीत पर नजर डालें तो एक जमाना था जब गांव-गांव में कांग्रेस के मजबूत शुभचिंतक थे, लेकिन पार्टी की अव्यवहारिक रीति-नीति के चलते वह इससे दूर होते चले गए। दो टूक कहें तो भाजपा में या क्षेत्रीय दलों में शिफ्ट हो गए। ऐसे में आज कांग्रेस के पास सिर्फ उन ‘धनपशुओं’ की टोली बची है, जिनको दूसरी राजनीतिक पार्टियां कभी तवज्जो नहीं देतीं। इनका काम कांग्रेस की सत्ता और संगठन के बड़े नेताओं के शाही खर्चों का इंतजाम करना भर है और इसलिए इनके समर्थक ब्लॉक, जिला, राज्य व राष्ट्रीय संगठनों पर हावी हैं।
चूंकि इनका कोई जनाधार नहीं है और ये जनाधार वाले कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं देते, इसलिए कांग्रेस खत्म होती चली गई। वहीं, जब से क्षेत्रीय कांग्रेस के नेता अस्तित्व रक्षा के लिए बिहार में राजद प्रमुख लालू प्रसाद व तेजस्वी यादव तथा उत्तरप्रदेश में सपा प्रमुख स्व. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव जैसे मजबूत नेताओं के इशारे पर काम करने लगे, तब से पार्टी संगठन की स्थिति और अधिक दयनीय हो गई।
आलम यह है कि कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी, जिसे देश की आजादी का श्रेय प्राप्त है, जब जनजीवन व राष्ट्रीय हितों से इतर प्रमुख जातीय, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय समीकरणों पर खेलने लगी, तो उसकी जोड़-तोड़ से सत्ता तो बदलती रही, परंतु जनाधार छीजता चला गया। क्योंकि उसके प्रति निष्ठावान रहे प्रतिभाशाली पेशेवर, कारोबारी, प्रशासक और समाजसेवी आदि उससे दूर होते चले गए। चूंकि पहले क्षेत्रीय दलों और उसके बाद भाजपा ने उन्हें तवज्जो दी, इसलिए वो सब इनके साथ जुड़ गए, जिससे इन्हें अप्रत्याशित मजबूती मिली और कांग्रेस को कमजोरी मुबारक हुई।
अब जब कांग्रेस की ट्रू कॉपी भाजपा बनती जा रही है तो भी कांग्रेस के थिंक टैंक को असली मुद्दे समझ में नहीं आ रहे हैं। शायद उसकी इसी मनोवृत्ति पर चोट करते हुए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि कांग्रेस को पुराने ढर्रे की राजनीति बंद करनी होगी और नए ढर्रे बनाने होंगे। अन्यथा सियासी सफलता मुश्किल है। लिहाजा कांग्रेस की इसी कमजोरी को मजबूती में बदलने का आह्वान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने किया है।
हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी और गठबंधन की हुई करारी हार के बाद हुई पहली कांग्रेस वर्किंग कमिटि की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो टूक कहा कि अब पार्टी में जवाबदेही तय करने का वक्त आ गया है। क्योंकि इन दोनों ही राज्यों में महज चंद महीने पहले पार्टी का प्रदर्शन काफी संतोषजनक रहा था। लेकिन अब जो नई दुर्गति सामने आई है, वह हमें नए सिरे से सोचने पर मजबूर करती है।
बता दें कि 29 नवंबर 2024 शुक्रवार को हुई कांग्रेस के सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई की इस समीक्षा बैठक में खरगे के अलावा तमाम सीनियर नेता, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस की नवनिर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी भी मौजूद थी। हालांकि बैठक खत्म होने से पहले ही राहुल और प्रियंका निकल गए। इसी मीटिंग में मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी के नेताओं के सामने जहां एक ओर इस निराशाजनक प्रदर्शन के लिए तमाम वजहों को गिनाया, वही उन्होंने ईवीएम का मुद्दा भी उठाया।
खरगे का दो टूक कहना है कि पार्टी में अनुशासन की कमी और पुराने ढरें की राजनीति के जरिए जीत नहीं मिल सकती। क्योंकि कांग्रेस के भीतर आपसी गुटबाजी एक स्थायी भाव बन चुकी है। उन्होंने इस ओर इशारा करते हुए कहा कि आपसी एकता की कमी और एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी हमें काफी नुकसान पहुंचाती है। जब तक हम एक हो कर चुनाव नहीं लड़ेंगे, आपस में एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी बंद नहीं करेंगे, तब तक अपने विरोधियों को राजनीतिक शिकस्त नहीं दे पाएंगे। इसलिए हमें हर हाल में एकजुट रहना होगा।
वहीं, उन्होंने पार्टी में अनुशासन पर जोर देते हुए संकेत दिया कि पार्टी के लोग अपने स्तर पर अनुशासन में बंधें। वैसे तो पार्टी के पास अनुशासन का हथियार है, लेकिन हम नहीं चाहते कि अपने साथियों को किसी बंधन में डाले। वहीं, खरगे ने कांग्रेस की एक और बड़ी कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि पार्टी अपने पक्ष के माहौल को नहीं भुना पाती। उनका कहना था कि चुनावों में माहौल हमारे पक्ष में था। लेकिन केवल माहौल पक्ष में होना भर ही जीत की गारंटी नहीं होती। इसलिए अब पार्टी में जवाबदेही तय करने का वक्त आ गया है। क्योंकि पार्टी में अनुशासन की कमी है। पार्टी के भीतर आपसी गुटबाजी एक स्थायी भाव बन चुकी है।
सच कहूं तो लोकसभा चुनाव के बाद दो राज्यों में पार्टी की हुई करारी हार के बाद शुक्रवार को सीडब्ल्यूसी मीटिंग में खरगे द्वारा पार्टी की हार की वजहों का जिक्र कोई पहला मौका नहीं था, जब पार्टी ने अपनी कमियों की ओर इंगित किया हो। यह कड़वी सच्चाई है कि कांग्रेस समस्या जानती है, उसका निदान और उपचार भी जानती है, लेकिन इसके लिए जो इच्छा शक्ति की जरूरत होती है, वह पार्टी नेतृत्व में नजर नहीं आती। यही वजह है कि 2014 के आम चुनाव के बाद असेबली चुनावों में पार्टी की हो रही लगातार हार के बाद 2016 में कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव दिग्विजय सिंह ने पार्टी में मेजर सर्जरी की जरूरत बताई थी। लेकिन हुआ कुछ नहीं। उल्टे जी-23 में से ज्यादातर को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इसलिए अब यह देखना दिलचस्प होगा कि खरगे द्वारा पार्टी की कमियों की ओर किया गया यह इशारा क्या वाकई पार्टी और नेताओं के भीतर कोई बदलाव लाएगा? क्या पार्टी अनुशासन की ब्लेड से मेजर सर्जरी कर पाएगी या फिर यह भी बस एक महज खानापूर्ति बन कर रह जाएगा? क्योंकि खरगे का यह सुझाव सही है कि हमें माहौल को नतीजों में बदलना सीखना होगा। उन्होंने जीत के लिए भरपूर मेहनत के साथ-साथ समयबद्ध तरीके से रणनीति बनाने और संगठन की मजबूती पर जो जोर दिया है, वह भी पते की बात है। उनका सुदीर्घ अनुभव इसमें झलकता है।उन्होंने सटीक आईना दिखाया है कि सिर्फ माहौल पक्ष में होना भर ही जीत की गारंटी नहीं होती। क्योंकि भाजपा इसे अपने पक्ष में करना जानती है। हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक उसने यही किया है।
खरगे का कहना भी सही है कि हमें अपने संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करना होगा। हमें मतदाता सूची बनाने से लेकर वोट की गिनती तक रात-दिन सजग, सचेत और सावधान रहना होगा। हमारी तैयारी शुरू से लेकर मतगणना तक ऐसी होनी चाहिए कि हमारे कार्यकर्ता और सिस्टम मुस्तैदी से काम करें। वहीं उन्होंने राज्यों को भी अपना संगठन मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय नेताओं के सहारे राज्यों का चुनाव आप कब तक लड़ेंगे? उन्होंने प्रदेश संगठनों से कहा कि हाल के चुनावी नतीजों का संकेत यह भी है कि हमें राज्यों में अपनी चुनाव की तैयारी कम से कम एक साल पहले शुरू कर देनी चाहिए। उन्होंने यह कहते हुए राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाई है कि हमारी टीम समय से पहले मैदान में मौजूद रहनी चाहिए। जो कि अपने प्रतिद्वंद्वी की तैयारियों पर नजर रखने में सक्षम हो।
वाकई ऐसा संभव हुआ तो यह कांग्रेस के लिए पुनर्जन्म जैसा होगा। लेकिन सुलगता सवाल फिर वही कि क्या पार्टी के नेताओं के अंदर अब कोई बदलाव आएगा? क्या उनके घिसे-पिटे सियासी एजेंडे और तुष्टिकरण की नीति में आमूलचूल बदलाव आएगा? क्या उनकी क्षुद्र जातीय नीतियां बदलेंगी और राष्ट्रनिर्माण के वास्ते को कोई अग्रगामी और निर्णायक कदम उठा पाएंगे! इंतजार करना श्रेयस्कर रहेगा।
बांग्लादेश के हालात बता रहे हैं- ‘एक हैं तो सेफ हैं’ सिर्फ चुनावी नारा नहीं बल्कि दीर्घायु रहने का मंत्र है
बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार का राउंड टू चल रहा है जिसे दुनिया के बड़े-बड़े देश बड़े चाव से देख रहे हैं। हिंदुओं को जिस तरह मारा काटा जा रहा है उस पर संयुक्त राष्ट्र भी चुप है, संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार आयोग और दुनिया भर में काम करने वाले तमाम मानवाधिकार संगठन चुप हैं क्योंकि जिनको मारा जा रहा है, जिनको काटा जा रहा है, जिनके घर जलाये जा रहे हैं, जिनके यहां लूट की जा रही है, जिनकी बेटियों के साथ अत्याचार किये जा रहे हैं, वह सब हिंदू हैं। गाजा में एक भी मस्जिद पर हमला होता है तो पूरी दुनिया में मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक बड़ा बवाल खड़ा कर देने वाले बांग्लादेश में मंदिरों को आग के हवाले होते देख कर, देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित होता देख कर बड़े खुश हो रहे हैं और किसी की जुबान से उफ तक नहीं निकल रही।
देखा जाये तो बांग्लादेश में शेख हसीना को पद से हटाने के बाद कट्टरपंथियों ने शासन करने के लिए जिन मोहम्मद यूनुस को चुना वह तो सबसे बड़े कट्टरपंथी निकले। मोहम्मद यूनुस की आंखों के सामने हिंदुओं का खून बह रहा है और वह कह रहे हैं कि यह हमारा आंतरिक मामला है। दुनिया के किसी भी हिस्से में जब किसी हमले में मुस्लिमों की मौत होती है तो पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन होते हैं और संयुक्त राष्ट्र भी आपात बैठकें बुला कर निंदा प्रस्ताव पास करने लगता है और शांति की अपील करने लगता है लेकिन ढाका और बांग्लादेश के अन्य इलाकों में हिंदुओं का खून बह रहा है तो इसे एक देश का आंतरिक मामला बताया जा रहा है। मोहम्मद यूनुस जिस तरह इतने खूनखराबे पर भी खामोश हैं और मुस्कुरा के सब कुछ देख रहे हैं उसके चलते उनका नोबेल शांति पुरस्कार छीना जाना चाहिए। शांति का नोबेल पुरस्कार किसी ऐसे व्यक्ति के पास हर्गिज नहीं रहना चाहिए जो नरसंहार को बढ़ावा दे रहा हो या उसे रोक पाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा हो। बांग्लादेश के हालात को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि मोहम्मद यूनुस को लाया ही इसलिए गया था ताकि वह कट्टरपंथियों को मनमानी करने की आजादी दे सकें और इस्लामिक देश से उसी तरह हिंदुओं का सफाया किया जा सके जिस तरह पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने अपने यहां से कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि आरक्षण के नाम पर बांग्लादेश में शुरू हुआ आंदोलन अब हिंदू विरोधी आंदोलन का रूप ले चुका है।
बहरहाल, बांग्लादेश से जो तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं उससे भारत के हिंदुओं को भी बटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं का अर्थ समझ आ जाना चाहिए। बांग्लादेश की स्थिति बता रही है कि अगर हिंदू कटेंगे तो दुनिया में कहीं कोई आवाज नहीं उठेगी और कोई बचाने नहीं आयेगा इसलिए एक हैं तो सेफ हैं यह कोई चुनावी नारा नहीं बल्कि दीर्घायु रहने का मंत्र है।
आखिर अडानी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए हैं ‘अमेरिकी’? इसे ऐसे समझिए
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
जिस तरह से दुनिया के थानेदार अमेरिका में अदाणी ग्रुप के चेयरमैन उद्योगपति गौतम अदाणी समेत 8 लोगों पर अरबों रुपए की धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं, उसके दृष्टिगत यह सवाल मौजूं है कि जब रिश्वत का आरोप भारत में लगाया गया है तो फिर अमेरिका में जांच कैसे शुरू हो गई? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर अमेरिका और उसके लोग, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के चहेते उद्योगपति अडानी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए हैं? क्या किसी भारतीय उद्योगपति या राजनीतिक दल के शह पर ऐसा किया जा रहा है या फिर कोई अन्य कूटनीतिक वजह है?
क्योंकि यह महज इत्तेफाक नहीं समझा जा सकता है कि पिछले साल 2023 में अमेरिकी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से शुरू हुए विवाद के बाद अब वर्ष 2024 में अदाणी समूह पर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने का उछला ताजा मामला एक अदद मामला भर है? वजह यह कि इससे अडानी समूह के शेयरों के भाव गिरते हैं और कम्पनी को काफी क्षति उठानी पड़ती है! इसलिए हमें यह जानना चाहिए कि आखिर में यह मामला क्या है, क्यों है, कैसे है, किसके लिए है? और अंत में, इसका समुचित हल क्या है? आइए इस पूरी बात को क्रमबद्ध तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
बता दें कि यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नी ऑफिस ने अदाणी पर भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर (2200 करोड़ रुपए से ज्यादा) की रिश्वत देने का आरोप लगाया है, जो एक गम्भीर बात है। क्योंकि यूएस अटॉर्नी ऑफिस ने आरोप में कहा है कि अदाणी ने अपनी कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी को सोलर एनर्जी से जुड़े प्रोजेक्ट्स और कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए भारतीय अधिकायों को 2100 करोड़ रुपए से ज्यादा की रिश्वत दी है।
मसलन, अदाणी पर आरोप है कि उन्होंने 2021 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। उसके बाद राज्य सरकार 7,000 मेगावाट बिजली खरीदने पर सहमत हुई थी। आंध्र के अधिकारियों को 25 लाख रुपये प्रति मेगावाट की दर से कथित रिश्वत दी गई। इसके अलावा, अमेरिकी सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ने भी कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया। खास बात यह है कि उन्होंने इस बात को उन अमेरिकी बैंकों और इंवेस्टर्स से छिपाया है, जिनसे अदाणी ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट के लिए अरबों डॉलर जुटाए थे।
लिहाजा, अमेरिकी प्रोसिक्यूटर्स का दावा है कि कंपनी के दूसरे सीनियर अधिकारियों ने कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को पैसा देने पर सहमति जताई थी। बता दें कि अडानी समूह ने साल 2021 में एक बॉन्ड ऑफर कर अमेरिका के अलावा दूसरे इंटरनैशनल इंवेस्टर्स और अमेरिका के बैंकों से फंड जुटाया है। अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसी) ने बयान में कहा है कि कथित साजिश के तहत अदाणी ग्रीन ने अमेरिकी निवेशकों से 17.5 करोड़ डॉलर से अधिक जुटाए और एज्यूर पावर का शेयर न्यूयॉर्क शेयर बाजार में लिस्टेड किया। साथ ही, न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय ने अदाणी, सागर अदाणी, सिरिल कैबनेस और अदाणी ग्रीन और एज्यूर पावर से जुड़े अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाए हैं।
वहीं, अदाणी ग्रुप ने रिश्वतखोरी के आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें बेबुनियाद बताया है। उसने कहा है कि ग्रुप सभी कानूनों का पालन करता रहा है। वह इस मामले में सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करेगा। ग्रुप के प्रवक्ता ने अमेरिकी न्याय विभाग के बयान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया जिसका अडानी पर यह केवल आरोप है और जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाएगा। लिहाजा, बयान में कहा गया कि हम आश्वस्त करते हैं कि हम एक कानून का पालन करने वाले संगठन है। अदाणी ग्रुप ने अदाणी ग्रीन एनर्जी लि. के 60 करोड़ डॉलर के बॉण्ड को रद्द कर दिया है। उल्लेखनीय है कि अदाणी ग्रीन एनर्जी को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में ठेका मिला है।
ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल है कि जब भारत में रिश्वत देने के आरोप लगाए गए हैं तो फिर केस यूएस यानी अमेरिका में क्यों? इसका जवाब यही है कि अमेरिकी कानून अपने निवेशकों या बाजारों से जुड़े विदेशों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है। चूंकि, प्रोजेक्ट में अमेरिका के इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था और अमेरिकी कानून के तहत उस पैसे को रिश्वत के रूप में देना अपराध है, इसलिए अमेरिका में मामला इसलिए दर्ज हुआ।
चूंकि अमेरिका भारत का मित्र देश भी है, इसलिए ये आरोप अहम हैं। हालांकि, जिस तरह से अमेरिकी चुनावों में परास्त राष्ट्रपति जो बाइडेन के मातहत प्रशासन ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को भड़काने और भारत के उद्योगपति को भ्रष्टाचार के मामले में उलझाने की पहल जाते-जाते की है, इसके अंतर्राष्ट्रीय सियासी मायने को भी समझने की जरूरत है। शायद वह भावी ट्रंफ प्रशासन के लिए मुश्किलें पैदा करना चाहता हो।
सवाल यह है कि आखिर यह हंगामा किन-किन प्रोजेक्ट्स को लेकर मचा है? तो जवाब यही होगा कि अमेरिकी प्रोसिक्यूटर्स के अनुसार, एनर्जी कंपनी के संस्थापक और अध्यक्ष गौतम अदाणी है। अदाणी ग्रीन एनर्जी के कार्यकारी निदेशक सागर अदाणी है, जो उनके भतीजे हैं। इसके अलावा, एज्योर पावर के सीईओ रहे रंजीत गुप्ता, एज्योर पावर में सलाहकार रूपेश अग्रवाल अमेरिकी इश्यूअर हैं।
हुआ यह है कि अदाणी ग्रीन एनर्जी और अमेरिकी इश्यूअर ने सरकारी स्वामित्व वाली सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) को 12 गीगावाट सोलर एनर्जी उपलब्ध कराने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था।
हालांकि, एसईसीआई को सौर ऊर्जा खरीदने के लिए भारत में खरीदार नहीं मिल पाए। लिहाजा खरीदारों के बिना सौदा आगे नहीं बढ़ सकता था और दोनों कंपनियों के सामने बड़े नुकसान का जोखिम था। इसलिए अदाणी ग्रुप और एज्योर पावर ने भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने की योजना बनाई। तो फिर यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर में रिश्वत का हिस्सा किनको किनको मिला? उसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा किनको मिला? इसके जवाब भी अमेरिकी प्रशासन के आरोपों से मिलते हैं।
अमेरिकी प्रशासन के आरोपों के मुताबिक, इन लोगों ने तय किया कि सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वो राज्य बिजली वितरण कंपनियों को एसईसीआई के साथ बिजली आपूर्ति समझौते में शामिल होने के लिए तैयार करेंगे। शायद इसलिए उन्होंने भारतीय अफसरों को करीब 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने का वादा किया, जिसका एक बड़ा हिस्सा आंध्र प्रदेश के अधिकारियों को दिया गया। फलाफल यह निकला कि इसके बाद कुछ राज्य बिजली कंपनियां सहमत हुईं और दोनों कंपनियों से सौर ऊर्जा खरीदने के लिए एसईसीआई के साथ समझौता किया।
इससे साफ है कि भारतीय ऊर्जा कंपनी और अमेरिकी इश्यूअर ने मिलकर रिश्वत का भुगतान किया। इतना ही नहीं, अपनी संलिप्तता छिपाने के लिए कोड नामों का भी इस्तेमाल किया गया। अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय (न्यू यॉर्क) के अनुसार, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के मामले में जिन्हें आरोपी बनाया गया है उनमें गौतम एस. अदाणी, सागर एस. अदाणी, विनीत एस. जैन, रंजीत गुप्ता, सिरिल कैबनेस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा, रुपेश अग्रवाल के नाम प्रमुख हैं।
हालांकि, अमेरिकी कानूनों के तहत ऐसे मामलों में आमतौर पर डेफर्ड प्रॉसिक्यूशन एग्रीमेंट्स या नॉन प्रॉसिक्यूशन एग्रीमेंट्स के जरिए सेटलमेंट की इजाजत है। जिसके मुताल्लिक कुछ गलतियां स्वीकार करने, नियमों का अनुपालन बेहतर करने के वादे और जुर्माना चुकाने के साथ ही यह मामला सुलझाया जा सकता है। इससे पहले भी सीमेंस ने 80 करोड़ डॉलर और एरिक्सन ने 1 बिलियन डॉलर का जुर्माना चुकाया था। लिहाजा, अदाणी ग्रुप भी चाहे तो ऐसा कुछ कर सकता है।
कहना न होगा कि हिंडनबर्ग मामले के चलते अमेरिका में अदाणी ग्रुप की कंपनियों का बाजार मूल्य जितना घटा था, उससे दोगुनी गिरावट अमेरिकी अदालत में ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी पर लगे आरोपों के चलते आई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला ग्रुप की साख के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है, लेकिन अमेरिका में इस मामले के निपटारे के रास्ते भी की कंपनियों के शेयर इस गिरावट से जल्द उबर सकते हैं, हालांकि निवेशकों को फिलहाल सेटलमेंट की गुंजाइश चुनिंदा है।
सवाल है कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की संभावित नीतियों, चीन में राहत पैकेज और रूस-यूक्रेन संकट गहराने और इजरायल-फिलिस्तीन विवादों के बढ़ते चले जाने के चलते भारतीय शेयर बाजार में पहले से ही कमजोरी दिख रही थी। फिर, अडाणी मामले ने इसे और हिला दिया। अलबत्ता, ताजा मामले का इस ग्रुप पर जैसा भी असर पड़े, लेकिन इतना तय है कि देश की इकॉनमी पर आंच नहीं आने जा रही। भारत में लॉन्ग टर्म में अर्थव्यवस्था का दमखम, कंपनियों के मुनाफे में अच्छी बढ़त और रेगुलेटरी साख ही शेयर बाजार के लिए अहम है। ऐसे में भारत पर दांव लगाने वाले विदेशी निवेशक इन चीजों को नजरंदाज नहीं करने जा रहे।
इस पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि जब भी भारत में संसद सत्र शुरू होने वाला होता है तो भारत के प्रतिपक्ष को अमेरिका एक नया मुद्दा थमा देता है। अब जबकि सोमवार 25 नवम्बर से शीतकालीन सत्र शुरू होगा तो यह नया मामला सामने आ गया। लिहाजा, उद्योगपति गौतम अदाणी के खिलाफ भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोपों पर विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी और केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की मांग की। राहुल गांधी ने कहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में नेता प्रतिपक्ष के नाते वह और पूरा विपक्ष अदाणी से जुड़े मामले को उठाएगा।
बता दें कि राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अदाणी पर लगे आरोपों पर कहा कि उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने यह दावा भी किया कि गौतम अदाणी की गिरफ्तारी नहीं होगी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और वह एक हैं और इसीलिए दोनों सेफ हैं। यह राजनीतिक, वित्तीय और अफसरशाही से जुड़े लोगों का पूरा नेटवर्क है। एक तरफ ये नेटवर्क देश के राजनीतिक तंत्र को कब्जे में करता है, दूसरी तरफ मुनाफे का काम करता है। इसलिए सेबी चीफ माधवी पुरी बुच को पद से तुरंत हटाकर जांच हो।
वहीं, कांग्रेस के हमलों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया है। बीजेपी सांसद व प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस, राहुल गांधी और सोनिया गांधी 2002 से ही नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे सफल नहीं हुए है। राहुल गांधी ने आज जिस तरह का व्यवहार दिखाया है, यह कोई नई बात नहीं है। कंपनी के खिलाफ अमेरिका के आरोपों में जिन चार राज्यों का जिक्र है, उनमें से किसी में भी बीजेपी का मुख्यमंत्री नहीं था। गांधी परिवार और कांग्रेस ये सहन नहीं कर पा रहा है कि भारत लगातार दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि ये भारत की मार्केट पर आक्रमण कर रहे हैं। आज सुबह चार बजे से इनका पूरा स्ट्रक्चर भारत के शेयर मार्केट को गिराने में लगा हुआ है। इससे करीब 2.5 करोड़ छोटे निवेशकों को नुकसान हुआ है।
कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के शासन वाले राज्यों में अदाणी ग्रुप के निवेश का हवाला देते हुए पात्रा ने कहा कि समूह ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के दौरान 25 हजार करोड़ रुपये और 65 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था। बीजेपी ने राहुल के आरोपों का जवाब देते हुए तंज कसते हुए कहा कि वह भले ही पीएम मोदी की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन उनकी विश्वसनीयता इतनी ही है कि हाल ही में विदेश में उन्हें सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सांसद संबित पात्रा ने कहा कि यह कंपनी का काम है कि वह स्पष्टीकरण दे। कानून अपना काम करेगा। आरोपों में जिन राज्यों का जिक्र है, उनमें उस समय विपक्षी दलों का ही शासन था।
वहीं, उद्योगपति गौतम अदाणी पर लगे आरोपों के बाद आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के मित्र गौतम अदाणी ने भारत को शर्मसार किया है। अमेरिका में कोर्ट की जांच के बाद जो खुलासा हुआ है, उसने पूरे देश को हैरान कर दिया है। अदाणी ग्रीन एनर्जी को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में ठेका मिला। अदाणी ने दिल्ली के बिजली क्षेत्र में प्रवेश करने का भी प्रयास किया, लेकिन वे नाकाम रहे। उस समय के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें रोक दिया था। केजरीवाल ने उस कंपनी को दिल्ली में घुसने नहीं दिया। केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को महंगी बिजली नहीं बेचने दी। अगर गलती से बीजेपी वाले दिल्ली में आ गए तो दिल्ली की जनता को महंगी बिजली के नाम पर फिर से लूटेंगे। हम चुप नहीं बैठेंगे और आगामी सत्र में इस मामले को उठाएंगे।
वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने इस मामले में पूछा है कि क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इसमें शामिल है? उन्होंने कहा कि अभियोग की खबर पर जब बाजार प्रतिक्रिया कर रहे थे तब सरकार इस मुद्दे पर ‘चुप’ थी। उधर, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि ‘आरोपों में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर अदाणी रिन्यूएबल एनर्जी को लाभ पहुंचाने के लिए बाजार से अधिक दर पर बिजली खरीदना शामिल है। फिर भी अदाणी, बुच के खिलाफ कोई सबूत नहीं। रीढ़विहीन सेबी। यहां आपके भाई के लेन-देन का विवरण देने वाली एसईसी की प्रेस विज्ञप्ति है।
वहीं, आरजेडी सांसद व प्रवक्ता मनोज झा का कहना था कि मामला इतना गंभीर हो गया है कि देश की एजेंसियां और प्रभावशाली लोग पर्दा डालने की लाख कोशिशें कर लें, यह बेनकाब हो जाएगा। उधर, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र को इस मामले की जेपीसी जांच करवानी चाहिए। क्योंकि यूएस में अदाणी पर धोखाधड़ी का केस व रिश्वत देने के आरोप लगे हैं। इससे पहले भी वह विवादों में रहे हैं।
बहरहाल, सोमवार (25 नवंबर) से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में अदाणी मुद्दे को लेकर टकराव देखने को मिल सकता है। क्योंकि कांग्रेस पहले से ही अदाणी को लेकर मोदी सरकार और पीएम को घेरती रही है। लिहाजा, अब अमेरिका द्वारा उठाए गए ताजा कदम के बाद विपक्ष इस मुद्दे को लेकर और भी हमलावर नजर आ रहा है। राहुल गांधी सहित कई विपक्षी दल यह मंशा जाहिर कर चुके है कि वे सत्र में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएंगे। अदाणी के मुद्दे पर पहले भी एक सत्र प्रभावित हो चुका है। उधर, इन आरोपों के बीच केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने अदाणी ग्रुप के साथ एयरपोर्ट, ऊर्जा सौदों को रद्द कर दिया, जो गम्भीर बात है। यह महज शुरुआत है या अंत, वक्त बताएगा।