अटलजी का सुशासन स्वराज और सुराज का प्रतीक

डॉ. सौरभ मालवीय

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में शासन करने पर नहीं, अपितु सुशासन पर अधिक से अधिक बल दिया। वे स्वराज के साथ-साथ सुराज में विश्वास रखते थे। वह कहते थे कि देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आंखों में एक महान भारत के सपने, हृदय में उस सपने को सत्य सृष्टि में परिणत करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने का संकल्प, भुजाओं में समूची भारतीय जनता को समेटकर उसे सीने से लगाए रखने का सात्त्विक बल और पैरों में युग-परिवर्तन की गति लेकर हमें चलना है।

अटलजी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। वह प्रखर चिंतक होने के साथ-साथ गंभीर पत्रकार, सहृदय कवि एवं लेखक भी थे। उन्होंने विवाह अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। वह कहते थे कि मैं चाहता हूं भारत एक महान राष्ट्र बने, शक्तिशाली बने, संसार के राष्ट्रों में प्रथम पंक्ति में आए। उन्होंने आजीवन इस स्वप्न को साकार करने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक उत्कृष्ट एवं सुधार के कार्य किए। उन्होंने वर्ष 1998 में पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के पश्चात् संसद को संबोधत किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था। ये हमारी नीति है और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध होना चाहिए। वह विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसीलिए परीक्षण का निर्णय लिया गया।
उन्होंने वर्ष 1999 में भारतीय संचार निगम लिमिटेड का एकाधिकार समाप्त करने के लिए नई टेलिकॉम नीति लागू की। इससे लोगों को बहुत लाभ हुआ और उन्हें सस्ती दरों पर दूरभाष सेवा उपलब्ध होने लगी। उन्होंने पड़ौसी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए उत्कृष्ट कार्य किए। उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के प्रयास के अंतर्गत फरवरी 1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा प्रारंभ की। वे स्वयं प्रथम बस सेवा से लाहौर गए तथा वहां के लोगों से मिले। उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान को बढ़ावा दिया। उन्होंने शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उन्होंने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का अभियान प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी लिखी पंक्तियों ‘स्कूल चले हम’ से इसका प्रचार-प्रसार किया। इस अभियान के कारण विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों को अत्यंत लाभ हुआ। वह कहते थे कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है, व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं। निरक्षरता का और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है। निर्धनता को निरक्षरता के द्वारा दूर किया जा सकता है।

उन्होंने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले को गंभीरता से लिया तथा आतंकवाद निरोधी पोटा कानून बनाया। यह पूर्व के टाडा कानून की तुलना में अत्यधिक कठोर था। उन्होंने 32 संगठनों पर पोटा के अंतर्गत प्रतिबंध लगाया। उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई एवं कोलकाता को जोड़ने के लिए चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की। इसके साथ ही उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की। इससे आर्थिक विकास को गति मिली। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर नदियों को जोड़ने की योजना का ढांचा भी बनवाया, परंतु इस पर कार्य नहीं हो पाया। संभव है कि भविष्य में इस दिशा में कार्य हो।

देश में प्रतिवर्ष पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2014 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती को देश में प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाएगा। तब से यह दिवस मनाया जा रहा है। सुशासन दिवस का उद्देश्य देश में पारदर्शी एवं उत्तरदायी प्रशासन प्रदान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में जनसाधारण को जागरूक करना है।

अटलजी ऐसे सुशासन की बात करते थे, जिसमें किसी के साथ भेदभाव न हो। वह कहते थे कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। अगस्त, को किसी नए राष्ट्र का जन्म नहीं, इस प्राचीन राष्ट्र को ही स्वतंत्रता मिली। पौरुष, पराक्रम, वीरता हमारे रक्त के रंग में मिली है। यह हमारी महान परंपरा का अंग है। यह संस्कारों द्वारा हमारे जीवन में ढाली जाती है। इस देश में कभी मजहब के आधार पर, मत-भिन्नता के आधार पर उत्पीड़न की बात नहीं उठी, न उठेगी, न उठनी चाहिए। भारत के प्रति अनन्य निष्ठा रखने वाले सभी भारतीय एक हैं, फिर उनका मजहब, भाषा तथा प्रदेश कोई भी क्यों न हो।

वह कहते थे कि भारत कोई इतना छोटा देश नहीं है कि कोई उसको जेब में रख ले और वह उसका पिछलग्गू हो जाए। हम अपनी आजादी के लिए लड़े, दुनिया की आजादी के लिए लड़े। दुर्गा समाज की संघटित शक्ति की प्रतीक है। व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वार्थ-साधना को एक ओर रखकर हमें राष्ट्र की आकांक्षा प्रदीप्त करनी होगी। दलगत स्वार्थों की सीमा छोड़कर विशाल राष्ट्र की हित-चिंता में अपना जीवन लगाना होगा। हमारी विजिगीषु वृत्ति हमारे अंदर अनंत गतिमय कर्मचेतना उत्पन्न करे। राष्ट्र कुछ संप्रदायों अथवा जनसमूहों का समुच्चय मात्र नहीं, अपितु एक जीवमान इकाई है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ यह भारत एक राष्ट्र है, अनेक राष्ट्रीयताओं का समूह नहीं। मैं चाहता हूं भारत एक महान राष्ट्र बने, शक्तिशाली बने, संसार के राष्ट्रों में प्रथम पंक्ति में आए। राजनीति की दृष्टि से हमारे बीच में कोई भी मतभेद हो, जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वतंत्रा के संरक्षण का प्रश्न है, सारा भारत एक है और किसी भी संकट का सामना हम सब पूर्ण शक्ति के साथ करेंगे। यह संघर्ष जितने बलिदान की मांग करेगा, वे बलिदान दिए जाएंगे, जितने अनुशासन का तकाजा होगा, यह देश उतने अनुशासन का परिचय देगा। देश एक रहेगा तो किसी एक पार्टी की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक व्यक्ति की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक परिवार की वजह से एक नहीं रहेगा। देश एक रहेगा तो देश की जनता की देशभक्ति की वजह से रहेगा। शहीदों का रक्त अभी गीला है और चिता की राख में चिनगारियां बाकी हैं। उजड़े हुए सुहाग और जंजीरों में जकड़ी हुई जवानियां उन अत्याचारों की गवाह हैं। देश एक मंदिर है, हम पुजारी हैं। राष्ट्रदेव की पूजा में हमें अपने को समर्पित कर देना चाहिए।

सुशासन नई बात नहीं है। सुशासन का संबंध प्राचीनकाल से है। सुशासन भारतीय संस्कृति का अंग है। सुशासन में भारतीयता है। इस संबंध में अटलजी कहते हैं कि भारतीयकरण का एक ही अर्थ है भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति, चाहे उनकी भाषा कछ भी हो, वह भारत के प्रति अनन्य, अविभाज्य, अव्यभिचारी निष्ठा रखें। भारतीयकरण आधुनिकीकरण का विरोधी नहीं है, न भारतीयकरण एक बंधी-बंधाई परिकल्पना है। भारतीयकरण एक नारा नहीं है। यह राष्ट्रीय पुनर्जागरण का मंत्र है। भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति भारत के प्रति अनन्य, अविभाज्य, अव्यभिचारी निष्ठा रखें। भारत पहले आना चाहिए, बाकी सब कुछ बाद में। हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि विश्व के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो। अहिंसा की भावना उसी में होती है, जिसकी आत्मा में सत्य बैठा होता है, जो समभाव से सभी को देखता है।

वह कहते थे कि भारतीय संस्कृति कभी किसी एक उपासना पद्धति से बंधी नहीं रही और न उसका आधार प्रादेशिक रहा। उपासना, मत और ईश्वर संबंधी विश्वास की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है। मजहब बदलने से न राष्ट्रीयता बदलती है और न संस्कृति में परिवर्तन होता। सभ्यता कलेवर है, संस्कृति उसका अन्तरंग। सभ्यता स्थूल होती है, संस्कृति सूक्ष्म। सभ्यता समय के साथ बदलती है, किंतु संस्कृति अधिक स्थायी होती है। इंसान बनो, केवल नाम से नहीं, रूप से नहीं, शक्ल से नहीं, हृदय से, बुद्धि से, सरकार से, ज्ञान से। जीवन के फूल को पूर्ण ताकत से खिलाएं। मनुष्य जीवन अनमोल निधि है, पुण्य का प्रसाद है। हम केवल अपने लिए न जिएं, औरों के लिए भी जिएं. जीवन जीना एक कला है, एक विज्ञान है। दोनों का समन्वय आवश्यक है। समता के साथ ममता, अधिकार के साथ आत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन स्तंभ हैं।

लोकतंत्र बड़ा नाजुक पौधा है. लोकतंत्र को धीरे- धीरे विकसित करना होगा। केन्द्र को सबको साथ लेकर चलने की भावना से आगे बढ़ना होगा। अगर किसी को दल बदलना है, तो उसे जनता की नजर के सामने दल बदलना चाहिए। उसमें जनता का सामना करने का साहस होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र को तभी शक्ति मिलेगी, जब हम दल बदलने वालों को जनता का सामना करने का साहस जुटाने की सलाह देंगे। हमें अपनी स्वाधीनता को अमर बनाना है, राष्ट्रीय अखंडता को अक्षुण्ण रखना है और विश्व में स्वाभिमान और सम्मान के साथ जीवित रहना है। लोकतंत्र वह व्यवस्था है, जिसमें बिना घृणा जगाए विरोध किया जा सकता है और बिना हिंसा का आश्रय लिए शासन बदला जा सकता है। राजनीति सर्वांग जीवन नहीं है। उसका एक पहलू है। यही शिक्षा हमने पाई है, यही संस्कार हमने पाए हैं। कोई भी दल हो, पूजा का कोई भी स्थान हो, उसको अपनी राजनीतिक गतिविधियां वहां नहीं चलानी चाहिए।

( लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर है। )