नई दिल्ली। अमेरिकी विमान कंपनी बोइंग 2000 के दशक में अपने 787 ड्रीमलाइनर प्रोजेक्ट के जरिए बड़ी एविएशन की दुनिया में ऊंची छलांग लगाने की तैयारी कर रही थी. इस तैयारी पर ग्रहण तब लग गया जब उसे इस ड्रीमलाइनर के सपने को साकार करने के लिए भारत का रुख करना पड़ा और उम्मीद के मुताबिक भारत में उसका प्रोजेक्ट यूं अटका कि बोइंग चारों खाने चित होकर बैठ गई.
दरअसल, 787 ड्रीमलाइनर विमान के उत्पादन के लिए बेहद अहम धातु टाइटेनियम. बेहद सख्त होने के साथ-साथ टाइटेनियम बहुत हल्की धातु है और इसलिए विमान का निर्माण बिना इस धातु के पूरा नहीं किया जा सकता था. वहीं इस धातु का इस्तेमाल बोइंग द्वारा किए जाने संभावना के चलते वैश्विक बाजार में टाइटेनियम की कीमत आसमान छूने लगी. लिहाजा बोइंग के पास सिर्फ एक विकल्प बचा कि वह भारत के आंध्रप्रदेश में मौजूदा टाइटेनियम की खदान से इस धातु को निकालकर अपने विमान निर्मित करे और समय रहते अपने ऑर्डर को पूरा कर वह एविएशन की दुनिया में अपनी बादशाहत को कायम कर ले.
लेकिन सबकुछ स्क्रिप्ट के मुताबिक नहीं हो सका. न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक टाइटेनियम की तलाश में बोइंग ने ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी एंड कंपनी से संपर्क किया. यह कंसल्टिंग फर्म दुनियाभर में बड़ी कंपनियों और सरकारों के साथ संपर्क साधने में अपनी साख बना चुकी थी. बोइंग ने मैकिन्जी एंड कंपनी को भारत में टाइटेनियम माइनिंग की संभावनाएं तलाशने के लिए लगाया और उसे अनुमान दिया कि इस प्रोजेक्ट के जरिए प्रतिवर्ष वह लगभग 500 मिलियन डॉलर (3,500 करोड़ रुपये) का खर्च खदान से टाइटेनियम निकालने के लिए करेगा. गौरतलब है कि बोइंग की इस डील में भारत में खदान लेने के प्रोजेक्ट में उसके साथ यूक्रेन की कंपनी भी शामिल थी जिसे इस प्रोजेक्ट की फाइनेंसिंग करनी थी.
न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक इस डील के तहत यूक्रेन की कंपनी जो मसौदा सामने किया उसमें कहा गया कि भारत में सरकार के उच्च अधिकारियों को रिश्वत के जरिए माइनिंग का लाइसेंस प्राप्त किया जाएगा. कंपनी की तरफ से पेश किए गए एक पावर पाइंट प्रेजेंटेशन में 8 अहम भारतीय अधिकारियों का नाम दिया गया जिन्हें रिश्वत देकर इस डील को सफल करने की बात कही गई. खासबात है कि यूक्रेन की कंपनी की इस रणनीति पर कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी एंड कंपनी ने कोई आपत्ति नहीं उठाई थी.
जब बोइंग विमान के ड्रीमलाइनर प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए टाइटेनियम धातु की जरूरत पड़ी तो अमेरिकी कंपनी ने यूक्रेन की उस कंपंनी को चुना जिसने रूस और पूर्व सोवियत गणराज्यों से यूक्रेन के लिए गैस डील में अहम भूमिका अदा की थी. यह कंपनी यूक्रेन के प्रभावशाली कारोबारी दिमित्री फिरताश के नेतृत्व में थी. लेकिन बोइंग और यूक्रेन की कंपनी की भारत में टाइटेनियम खदान लेने की योजना विफल हो गई जिसके बाद अमेरिकी कोर्ट में बोइंग ने फिरताश के खिलाफ इसलिए मुकदमा कर दिया क्योंकि विफल डील में भी फिरताश ने भारतीय अधिकारियों को लगभग 130 करोड़ बतौर रिश्वत देने का बिल बोइंग को थमा दिया था.
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कोर्ट में दिमित्री फिरताश के इस कथन कि उसने भारतीय अधिकारियों को लगभग 130 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी को आगे नहीं बढ़ाया जा सका. क्योंकि भारत सरकार ने अमेरिका और यूक्रेन की कंपनियों के बीच उठे इस विवाद में दखल नहीं दिया और न ही यूक्रेन के कारोबारी के दावों की जांच की गई.