लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने कार्यकाल के चार साल पूरे कर लिए हैं. मार्च 2017 में जब योगी आदित्यनाथ के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा तो खुद बीजेपी के अंदर बड़ा तबका हैरान रह गया था. उस समय योगी के सामने पार्टी में सबका स्वीकार्य नेता बनने की भी एक बड़ी चुनौती थी. सत्ता के अनुभव की कमी के बावजूद योगी सीखने, समझने और एक्शन लेने में पीछे नहीं हटे. मोदी-शाह की जोड़ी ने भी जो भी टास्क दिया, उसे योगी ने जमीन पर उतारने के साथ-साथ खुद को साबित कर दिखाया. इसी का नतीजा है कि चार साल के बाद यूपी में बीजेपी का मतलब अब सिर्फ योगी आदित्यनाथ हैं.
दरअसल, बीजेपी ने मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में अपना 15 साल के सत्ता का वनवास खत्म किया तो इसका श्रेय मोदी-शाह टीम के अलावा तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष एवं मौजूदा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को भी दिया गया. केशव प्रसाद मौर्य पिछड़े समाज से आते हैं और ओबीसी समुदाय ने चुनाव में बीजेपी के पक्ष में एकजुट होकर वोट दिया था. इसके अलावा बीजेपी को परंपारगत सवर्ण वोट भी बड़ी संख्या में मिला. विधानसभा चुनाव के बाद जब सरकार बनाने की बारी आई तो सीएम की रेस में केशव मौर्य से लेकर मनोज सिन्हा और दिनेश शर्मा सहित तमाम नेताओं के नाम चर्चा में रहे, पर सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई. ये एक चौंकाने वाला फैसला था.
योगी के सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद बीजेपी द्वारा सत्ता का संतुलन बनाने के लिए केशव मौर्य और दिनेश शर्मा के रूप में दो डिप्टी सीएम बनाने का फैसला होते ही यह साफ हो गया था कि सूबे में सत्ता के एक नहीं कई केंद्र होंगे. सूबे में जातीय राजनीति के चलते बीजेपी की पिछली सरकारों में कोई भी सीएम बहुत लंबे समय तक कुर्सी पर नहीं काबिज रह सका.
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद से हटाने की बातें पिछले चार साल में कई बार उड़ीं. ये भी कहा गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उनसे नाराज है और उनकी केंद्र में चलती नहीं, लेकिन सीएम योगी इन सबकी परवाह किए बगैर अपने मिशन को धार देने में जुटे रहे.
योगी राज में बीजेपी को मिली जीत
सत्ता पर विराजमान होने के बाद ही योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में हुए निकाय चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली थी. सूबे के 17 नगर निगम में से 15 पर बीजेपी का कब्जा है. ऐसे ही 2018 राज्यसभा के चुनाव में 10 में 9 सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी जबकि सपा-बसपा एक साथ आ गए थे. वहीं, 2019 के लोकसभा में सपा-बसपा-आरएलडी के गठबंधन के बावजूद बीजेपी 62 सीटें जीतने में कामयाब रही. ऐसे ही एमएलसी और विधानसभा के उपचुनाव में विपक्ष को शिकस्त देकर सीएम योगी ने अपना लोहा मनवाया.
सरकार और संगठन पर बनी पकड़
सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के साथ-साथ बीजेपी संगठन पर पकड़ बनाने में कामयाब रहे हैं. वे संघ के हिंदुत्व एजेंडों को यूपी की जमीन पर उतारने से पीछे नहीं हटे तो विकास की रफ्तार को धीमा सूबे में नहीं होने दिया है. सूबे की बीजेपी-संघ की समन्वय बैठक में योगी सरकार के कामों को तारीफ मिली है. सूबे में उनके ही मनमाफिक बीजेपी ने प्रभारी बना रखा है तो उन्हीं के सरकार में मंत्री रहे स्वतंत्र देव सिंह को पार्टी की कमान सौंप रखी है ताकि सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बना रहे.
हाल ही में राजनाथ सिंह ने आजतक के खास कार्यक्रम सीधी बात में साफ कहा कि योगी का परफोरमेंस ए-1 है. यहां तक कि राजनाथ ने योगी को खुद से बेहतर मुख्यमंत्री बताया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सीएम योगी आदित्यनाथ के कामों की तारीफ करते रहे हैं. वह चाहे कोरोना से निपटने का मामला रहा हो या फिर यूपी को आधुनिक यूपी बनाने की दिशा में उठाए गए कदम हों. इसका श्रेय पीएम ने सीएम योगी को दिया है. वहीं, सूबे में योगी का विकल्प बताए जा रहे मनोज सिन्हा को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना दिया गया है, जिसके बाद राज्य की सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं.
बीजेपी शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल
सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछले चार सालों में अपने विकास कार्यों और आक्रमक सियासी एजेंडे के जरिए जिस तरह बीजेपी संगठन और सरकार पर पकड़ बनाई है, उसे सूबे में न तो पार्टी के अंदर और न ही विपक्ष में कोई चुनौती देता नजर आ रहा है. इतना ही नहीं देश में बीजेपी शासित तमाम राज्यों के लिए भी सीएम योगी आदित्यनाथ एक रोल मॉडल बन गए हैं. लव जिहाद, गौहत्या, अपराधियों के एनकाउंटर, प्रदर्शनकारियों पर सख्ती जैसे सीएम योगी के फैसले को बीजेपी शासित राज्य अपना रहे हैं और उसी तरह से काम करते नजर आ रही हैं.
योगी आदित्यनाथ ने चार साल में केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं को यूपी की जमीन पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने नोएडा जाने का मिथक तोड़ा. एक बार नहीं, कई बार नोएडा आए. भव्य कुंभ का आयोजन. क्राइम और करप्शन पर उनकी जीरो टॉलरेंस और यूपी में दो बार सफल इन्वेस्टर्स समिट उनकी उपलब्धियों में हैं. सीएए विरोधियों पर कड़ा एक्शन और प्रदर्शनकारियों से जुर्माना वसूलने से लेकर लव जिहाद, गौहत्या कानून हिंदुत्व की छवि को सीएम रहते हुए योगी ने बरकरार रखा, उससे सरकार ही नहीं बल्कि पार्टी पर भी पकड़ मजबूत हुई है.
बीजेपी के तीसरे स्टार प्रचारक
गुजरात से लेकर कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह के बाद सबसे ज्यादा रैलियां सीएम योगी ने की. वहीं, बिहार में बीजेपी के चुनाव प्रचार में सीएम योगी सबसे आगे रहे. इसके अलावा कर्नाटक और त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय को बीजेपी ने सीएम योगी के सहारे साधने का काम किया है. इसके अलावा हैदराबाद निगम चुनाव में प्रचार किया. वहीं, अब पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए चुनावी प्रचार में उतर चुके हैं. देश में मोदी-शाह के बाद बीजेपी को कई तीसरी सबसे बड़ा नाम है तो वह योगी आदित्यनाथ का है, जिनकी रैलियों को बीजेपी नेता अपने इलाके में कराने की डिमांड करते हैं.