कोलकाता की रैली से ममता ने कराया अहसास, एकतरफा नहीं होगा 2019 का चुनाव

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास लंबे समय से किया जा रहा था, हालांकि इस दिशा में कोई ठोस कामयाबी नहीं मिली और कई झटके लगते रहे. लेकिन फायर ब्रांड नेता ममता बनर्जी ने इस असंभव से दिखने काम को संभव कर दिखाया और पहली बार नरेंद्र मोदी के खिलाफ देश के हर कोने से विपक्षी नेताओं को किसी एक मंच पर लाकर खड़ा किया.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों की एकजुटता दिखाने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में यूनाइटेड इंडिया रैली के आयोजन की तैयारी लंबे समय से कर रही थीं. शनिवार को एक मंच पर 23 से 26 विपक्षी दलों के नेताओं को एकत्र कर ममता ने यह साबित कर दिया कि उनमें नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की क्षमता है और अगला चुनाव एकतरफा नहीं होने वाला है.

प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ आयोजित की गई विपक्षी दलों की इस रैली में विपक्षी दलों का जमावड़ा दिखा और उन्होंने एक तरह से चुनावी बिगुल बजाते हुए अपनी एकजुटता दिखाई और यह जताने की कोशिश की, कि उनमें कोई मतभेद नहीं है. मोदी और उनकी सरकार को हटाने के लिए विपक्षी दल प्रतिबद्ध और एकजुट हैं. रैली में ममता बनर्जी ने ‘बदल दो, बदल दो, दिल्ली की सरकार बदल दो’ का नारा भी दिया.

उन्होंने बीजेपी की ओर से संयुक्त विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के सवाल पर कहा कि विपक्षी दल एक-साथ मिलकर काम करने का वादा करते हैं और प्रधानमंत्री कौन होगा इस पर फैसला लोकसभा चुनाव के लिया जाएगा.

‘मतभेद ठीक मनभेद नहीं ठीक’

ममता बनर्जी की इस रैली में भाग लेने आए बीजेपी के बागी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी कहा कि यह समय एक होने का है. हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा कि देश में सत्ता बदलने के लिए सभी को एकजुट होना पड़ेगा. दलित नेता और विधायक जिग्नेश मेवानी ने भी कहा कि टीएमसी की इस रैली में कई विपक्षी दलों का साथ आना अगले लोकसभा चुनाव में बदलाव का संदेश है.

बीजेपी के एक और बागी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी सभी विपक्षी गुटों को एकजुट होने की बात करते हुए कहा कि वह उम्र के इस पड़ाव पर अब कुछ नहीं चाहते, लेकिन उनका लक्ष्य मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने का है, जिसके लिए पूरे विपक्ष को एकजुट होना होगा. उन्होंने यह भी सलाह दी कि सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होना पड़ेगा और बीजेपी के खिलाफ एक उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहिए, ताकि एनडीए को सत्ता से बाहर किया जा सके.

रैली में 9 पूर्व केंद्रीय मंत्री भी

ममता के अनुसार, इस रैली में करीब 23-26 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए. पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) नेता एच डी देवेगौड़ा के अलावा ममता बनर्जी समेत 4 राज्यों के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), एचडी कुमारस्वामी (जेडीएस) और अरविंद केजरीवाल (आप) भी शामिल हुए. इनके अलावा छह पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी), फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस), बाबूलाल मरांडी (झारखंड विकास मोर्चा), हेमंत सोरेन (झारखंड मुक्ति मोर्चा) और कुछ दिन पहले बीजेपी छोड़ने वाले गेगांग अपांग भी रैली में हिस्सा लेने पहुंचे.

विपक्षी दलों की इस रैली में 9 पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए. मल्लिकार्जन खड़गे और अभिषेक मनु सिंघवी (कांग्रेस), अजित सिंह (राष्ट्रीय लोक दल), शरद पवार (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), शरद यादव (लोकतांत्रिक जनता दल) के अलावा बीजेपी के 3 बागी नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ-साथ राम जेठमलानी ने भी हिस्सा लिया.

इनके अलावा, आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रतिनिधि के रूप में सतीश चंद्र मिश्रा, पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता विधायक जिग्नेश मेवानी भी मंच पर नजर आए.

ममता के अलावा कई अन्य गुट भी अपने स्तर पर विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस भी महागठबंधन बनाना चाहती है, लेकिन उसे उस समय अपने अभियान में तब झटका लगा जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस से बातचीत किए बगैर ही आपस में गठबंधन कर लिया. इस गठबंधन के बाद बिहार में महागठबंधन पर भी संकट में बादल मंडराने लगे हैं, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस समेत कुछ छोटे दल शामिल हैं.

वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में ममता ने अपने गढ़ में देशभर के कई विपक्षी नेताओं को बुलाकर यह साबित कर दिया कि उनके पास विपक्षी दलों को एकसाथ लेकर चलने का माद्दा है.

हालांकि यह कहना अभी आसान नहीं कि यह कितना मजबूत है और आगे आने वाले दिनों में कितने दिन और साथ चल पाते हैं. फिलहाल इस एकजुटता रैली ने निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए को सोचने के लिए मजबूर कर दिया होगा.

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