लखनऊ। आज का दिन यूपी की सियासत में ही नहीं देश की सियासत में भी एक बड़ा दिन होगा, जब पहली बार बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा चीफ अखिलेश यादव एक साथ चुनावी अभियान की शुरुआत कर रहे हैं. एक अरसे बाद बसपा और सपा ने हाथ मिलाया और मंच भी साझा किया लेकिन अब तक संयुक्त जनसभा को संबोधित नहीं किया था. पहले चरण के चुनाव में कुछ ही दिन बाकी हैं और इससे ठीक पहले इन दोनों नेताओं की चुनावी सभा होगी. इन नेताओं की पहली संयुक्त चुनावी सभा रविवार को देवबंद सहारनपुर में होगी, जहां पहले चरण में चुनाव होना है.
90 के दशक के बाद दोनों दल के बार फिर साथ आ रहे हैं. एक वक्त जब यूपी में मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण अपने चरम पर था उस वक्त बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए सपा ने अपनी धुरविरोधी बसपा से गठबंधन किया. साल 1993 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए तब सपा को 110 सीटें और बसपा को 67 सीटें मिलीं. चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. मुलायम सिंह यादव ने इसके बाद बीएसपी और अन्य कुछ दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. बसपा बाहर से सरकार का समर्थन कर रही थी लेकिन 2 साल बाद ही यानी 1995 में गठबंधन टूट गया. वह दौर मुलायम और कांशीराम का था लेकिन इतने वर्षों बाद अब मायावती और अखिलेश साथ हैं. हालांकि इस बार भी सामने बीजेपी ही है.
रैली पर सबकी नजरें
इस रैली पर सबकी नजरें इस बात पर टिकी रहेंगी कि आखिर यह दोनों ही नेता अपने कार्यकर्ताओं साथ आने का मैसेज कैसे देते हैं. क्योंकि कुछ ही समय पहले तक दोनों ही दलों के नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि पहली बार चुनावी जनसभा में वह क्या बोलते हैं. दोनों दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती वोटों के ट्रांसफर की भी है. बीजेपी की भी नजर इस रैली पर रहने वाली है.
बसपा और सपा के साथ ही रालोद भी संयुक्त रैली में शामिल है. इस संयुक्त रैली के साथ ही महागठबंधन के नेताओं के चुनावी दौरे की शुरुआत हो जाएगी. बताया जा रहा है कि ऐसी 10 से ज्यादा साझा रैलियां होंगी. पहले चरण के चुनाव में कुछ ही दिन बाकी हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर बीजेपी और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है.
11 अप्रैल को होगी वोटिंग
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 संसदीय सीटों पर 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर की सीटें शामिल हैं. सूबे की ये सभी 8 लोकसभा सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश की हैं. इन सभी सीटों पर बीजेपी ने पिछली बार मोदी लहर में कब्जा जमाया था. आरएलडी प्रमुख अजित सिंह भी चुनाव हार गए थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में इन सभी आठ सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. हालांकि, बाद में 2018 में कैराना लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में बसपा और सपा के समर्थन से आरएलडी ने बीजेपी से ये सीट छीन ली थी. इसी जीत के फॉर्मूले को 2019 के लोकसभा चुनाव में दोहराने के लिए सपा-बसपा और आरएलडी ने हाथ मिलाया है. इस बार तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे ऐसे में कांटे का मुकाबला होगा.