मुंबई। 11 अप्रैल को देश में पहले चरण के चुनाव के लिए वोट डाला जाएगा. महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके की 10 में से 7 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी. इनमें से जो सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्व सीट है वो है नागपुर की. इस सीट पर बीजेपी की तरफ से नितिन गडकरी और कांग्रेस की तरफ से नाना पटोले अपनी-अपनी दावेदारी कर रहे हैं.
वोटों का गणित
साल 2014 की अगर बात की जाए तो उस वक्त गडकरी ने करीब 2 लाख 84 हजार वोटों से अपने प्रतिद्वंदी विलास मुत्तेमवार को हराया था. नितिन गडकरी के पक्ष में उस चुनाव में 5 लाख 87 वोट पड़े थे जबकि विलास मुत्तेमवार को सिर्फ 3 लाख 2 हजार वोट ही मिल पाए थे. अगर अब साल 2019 की बात की जाए तो यहां कुल 20 लाख 77 हजार 583 मतदाता हैं. इनमें से 10 लाख 59 हजार पुरुष और 10 लाख 18 हजार महिला मतदाता शामिल हैं.
कांग्रेस ने बदल दिया है अपना उम्मीदवार
बीजेपी ने इस सीट पर एक बार फिर सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को खड़ा किया है तो कांग्रेस ने इस सीट पर इस बार नाना पटोले को उम्मीदवार बनाया है. नाना पटोले पहले कांग्रेस में थे फिर वो बीजेपी में शामिल हुए और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में विदर्भ की ही भंडारा गोंदिया सीट से चुने गए. लेकिन फिर साल 2017 में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए.
दरअसल कांग्रेस की नजर कुनबी वोट बैंक पर है. पश्चिमी महाराष्ट्र में जिन्हें मराठा कहा जाता है, विदर्भ में इन्हीं को कुनबी समाज कहा जाता है और नाना पटोले इसी कुनबी समाज से आते हैं. नागपुर लोकसभा में कुनबी समाज के बहुत से लोग रहते हैं जो जीत या हार तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे. नाना पटोले ने साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भंडारा गोंदिया सीट से एनसीपी के कद्दावर नेता प्रफ्फुल पटेल को हराया था और कांग्रेस एनसीपी के गठबंधन को इस बार बड़े हेरफेर की उम्मीद नजर आ रही है.
विकास के सहारे हैं गडकरी
गडकरी की लड़ाई इस बार सिर्फ विकास के मुद्दों पर नजर आ रही है. गडकरी ने अपनी चुनावी सभाओं में ना तो राम मंदिर पर कुछ कहा है और ना ही पाकिस्तान पर, वो अपनी सभाओं, मीटिंग्स में नागपुर में बन रही मेट्रो पर बात कर रहे हैं, फ्लाईओवरर्स, सड़कों के निर्माण की बात कर रहे हैं. इसके साथ ही बॉयोफ्यूल के उपयोग और उससे पैदा होने वाले रोजगार की बात कर रहे हैं.
विपक्ष दिखा रहा है अधूरे वादे
विपक्ष के मुताबिक गडकरी कई मोर्चों पर फेल रहे हैं. गडकरी ने हर साल 10000 लोगों को रोजगार देने की बात कही थी यानि पांच साल में 50000 लोगों को रोजगार जो वे नहीं दे पाए हैं. इसके साथ ही विहान इंडस्ट्रियल एरिया में नए-नए प्रोजेक्ट्स लाने की बात कही गयी थी जो पूरी नहीं हो पायी है. पतंजलि की फैक्ट्री का काम भी पूरा नहीं हो पाया है. IT सेक्टर से जुड़ी कंपनियों ने भी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इसके साथ ही किसानों में भी खासा रोष देखने को मिल रहा है. ना तो संतरे की पैदावार के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का वायदा पूरा किया गया, ना ही किसानों को फसलों के लिए न्यूनतम रकम दी जा सकी. नागपुर सीट में शहर के आस-पास करीब 15 किमी तक कई गांव हैं जिनके किसानों में बहुत गुस्सा है.
बसपा-सपा गठबंधन बिगाड़ेगी कांग्रेस का खेल
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक एक तरफ बसपा-सपा का गठबंधन करीब 1 से डेढ़ लाख वोटों की दावेदारी रखता है जो कांग्रेस-एनसीपी के वोटों में सीधे तौर पर सेंध लगाएगा. इसके अलावा नितिन गडकरी आम आदमी को ये समझाने में कामयाब हो पाए हैं कि नागपुर में विकास कार्य हुआ है और इससे रोजगार भी कम संख्या में ही सही लेकिन पैदा जरूर हुआ है.
इसलिए बीजेपी के लिए जरूरी है नागपुर सीट
गौरतलब है कि देश के सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी नागपुर से ही आते हैं. तो वहीं बीजेपी की आंतरिक सोच की गंगा यानि आरएसएस का मुख्यालय भी इसी नागपुर में है. इसीलिए इस सीट को बचाना बीजेपी के लिए बेहद जरूरी है. लेकिन, सोशल इंजीनियरिंग के बदौलत कांग्रेस वापस सत्ता में आने का जो सपना देख रही है उससे बीजेपी और नितिन गडकरी के लिए राह इतनी भी आसान नहीं रहेगी.