अद्भुत अनुकरणीय सराहनीय ! हां इतने विशेषण पूरी तरह उपयुक्त हैं गोपालगंज साहित्योत्सव हेतु । जिसे चरणाश्रयी संस्था ने बिहार राज्य के सुदूर गाँव करवतही बाजार में सात जून को आयोजित किया था । आप पूछ सकते हैं ” तो ” । तो यह कि यह एक असामान्य घटना है। मामूली समझने की गलती कत्तई न करें । हम और आप जिस विघटित समाज में रह रहे हैं , जहां भाई भाई छत्तीस के संबंध में हैं वहाँ एक साथ आभासी दुनिया से सैकड़ों लोगों को जुटा लेना कोई खेल नहीं । कुछ तो है इस आयोजक सर्वेश तिवारी श्रीमुख के व्यक्तित्व में ।
फेसबुक और ह्वाट्सsप पर लाइक कमेंट देने और इस ४५ डिग्री के तापमान में किसी ऐसे व्यक्ति के बुलावे पर जिससे आप कभी मिले न हो , हज़ार किमी की अनियोजित यात्रा करना दो अलग बाते हैं । यह शायद देश की अनूठी घटना होगी जब सब पहली बार मिले पर सब ऐसे लग रहे थे जैसे पुराने कालेज के सहपाठी हों । ओह , सही सहपाठी ही हैं पर आज के फेसबुक के । जिसमें विषय अपनी पसंद के होते हैं। ठीक है न !
कार्यक्रम जोरदार था । सर्वेश तिवारी श्रीमुख और प्रोफेसर मुन्ना पाण्डेय के साहित्यिक विमर्श में प्रोफ़ेसर पाण्डेय ने कहा कि भाषाओं के बीच राजनैतिक द्वन्द्व खड़ा किया जाना गहरी चिन्ता का सबब है। भाषाएँ अपनी गति से बढ़ती भी हैं और मरती भी हैं । रोज एक भाषा विश्व में मर रही है। पर भोजपुरी जिसे चालीस करोड़ से ज्यादा लोग देश में बोलते हों , उस पर पिछड़ी भाषा का तमगा गैरों ने नहीं अपनो ने लगाया है। हमें ही अपनी मातृभाषा से शर्म आती है। निरहुआ , रंगीला , मनोज , कल्पना वह नुकसान नहीं पहुंचा पाये जो हम उसे घरों से तिरस्कृत करके कर रहे हैं। भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए दबाव बना पडेगा पर जब हम अपनी मातृभाषा भोजपुरी से केदारनाथ सिंह की तरह प्यार करेंगे जो कहते थे हिन्दी हमारा देश है और भोजपुरी घर । कहीं लडाई नहीं । यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर मुन्ना पाण्डेय ने कही । पुरस्कारों के संदर्भ में जब निरहुआ को यश भारती उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिये जाने पर प्रश्न हुआ तो उन्होने बेबाक कहा कि पुरस्कार कैसे बंटते हैं हम सब जानते हैं ।
दूसरे सत्र में बलिया के असित मिश्र ने सर्वेश तिवारी (श्रीमुख नहीं ) से वार्ता के दौरान आभासी दुनिया के साहित्य और पुस्तकीय साहित्य में किसी भी बटवारे से इन्कार किया । साहित्य साहित्य होता है किसने कहां लिखा यह महत्वपूर्ण नहीं । लिखा और क्या लिखा , कितने लोगों ने पढ़ा यह महत्वपूर्ण है। फेसबुक पर लिखा जाने वाला साहित्य कालजयी है या नहीं समय बतायेगा । क्योंकि व्याकरण बहुधा साहित्य से बनता है। इसलिए इसे काल पर छोड़ दें । निराला के छंद को पहली बार खारिज करके मजाक उड़ाया गया और आज वह कालजयी है। तो बस रचनाएँ जारी रहें ।
कवि सम्मेलन निश्चित तौर पर अनूठा और जोरदार रहा । जिनको आप सिर्फ फेसबुक पर पढ़ते हों उन्हें उनसे सस्वर सुनना आनन्ददायी था।
इस पूरे आयोजन का प्राणवायु था स्थानीय विशिष्ट जनों का सम्मान जो शिक्षा और चिकित्सा से जुड़े हुए हैं।
और ! और क्या आशीष त्रिपाठी की पतरकी का विमोचन । पतरकी पर लपेटे गये रंगीन पत्र को नोचने के लिए दस ग्यारह लोग बुला लिए गये । मैं भी उनमें एक था । अब आप समझ सकते हैं पतरकी नाम भर है , है वह भी भारी ही । साहित्य की दुनिया में तहलका मचायेगी । योगी अनुराग की इजराइल , विवेक कांत मिश्र उजबक की ” मैटेरियल हो का बे ” , का भी विमोचन हुआ ।
आप सोचके देखिये पुस्तक विमोचन गांव में , शहर की प्रचार व्यवस्था से दूर । यह दम सबमें नहीं होता । दिलेरी और विश्वास होना चाहिए ।
कार्यक्रम की सफलता असफलता नापने के अपने पैमाने हैं । मेरी नजर में कार्यक्रम सफलता की श्रेणी में है। थोड़ी बहुत अव्यवस्था होना एक सामान्य बात है। मुझे कमी लगी सिर्फ एक बात की कि शरद सिंह काशी वाले बनारस से , नित्यानन्द शुक्ला दिल्ली से ,लोकेश कौशिक चंडीगढ़ से , भानु प्रताप सिंह , रवीश सिंह , त्रिलोचन तिवारी भाई , आशीष त्रिपाठी, चन्द्र भूषण तिवारी, सूर्य कुमार त्रिपाठी , संदीप सिंह गोरखपुर से , उदय नारायण सिंह भैया पटना से , शेखर दम्पति अहमदाबाद से ,कृपाशंकर मिश्र खलनायक , विशाल शेखर राय , असित मिश्र , आलोक पाण्डेय भाई बलिया , जैसे सुदूर जगहों से जब वहाँ पहुंचे हैं तो यदि कार्यक्रम के शुरुआत में एक परिचय का दौर चल गया होता तो सबकी सहभागिता बढ़ गयी होती । हम वहीं के वहीं रह गये । क्योंकि सब सबकी लिस्ट में नहीं है। जो लोग भी असंतोष व्यक्त कर रहे हैं वह शायद यही खोज रहे । उम्मीद करता हूँ अगली बार सब ठीक होगा ।
मैं आपको इस कार्यक्रम के रोमांच के बारे में एक घटना बताता हूँ । गोरखपुर से हमने एक गाड़ी ली थी जिसमें आशीष , लोकेश और चन्द्र भूषण जी को मेरे साथ चलना था । उस गाड़ी के चालक रेहान को जो एक अच्छा गायक और स्नातक का छात्र था को जब यह पता चला कि हम सब पहली बार मिल रहे हैं और वहाँ जुटने वाले सब ऐसे ही हैं वह चौंक उठा । आश्चर्य मिश्रित चेहरा देखने लायक था । उसका भी यही कहना था मजा आया । उसने पटना से आये कवि प्रणय राज की तारफ की । अब क्या चाहिए ।
देश को और बुजुर्गो को यह देख निश्चित तौर पर आश्वस्ति हो सकती है कि ये युवा जो अलख जगाये हैं वह साहित्य में नये नये रत्न दे कर इस धरा को जगमगाते रहेंगे ।
बिना मिलन के यदि कोई मोह पैदा करने का पुरस्कार दिया जाने वाला हो तो उसका हकदार सर्वेश तिवारी श्रीमुख को मिलना है। क्योंकि यह उनका मोह ही था जो सबको करवतही खींच लाया । बधाई साधुवाद सर्वेश ।