इलाहाबाद/लखनऊ। यूपी की योगी सरकार ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष रहे पंडित दीन दयाल उपाध्याय की पचास साल पहले हुई रहस्यमय मौत की फ़ाइल फिर से खोल दी है. माना जा रहा है कि योगी सरकार जल्द ही दीन दयाल उपाध्याय की संदिग्ध हालत में हुई मौत की जांच सीबीआई से कराए जाने की सिफारिश कर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है.
योगी सरकार के आदेश पर रेलवे पुलिस ने दीन दयाल उपाध्याय की मौत से जुड़े सभी रिकार्ड खंगालने शुरू कर दिए हैं. मौत से जुड़े दस्तावेजों की पूरी फ़ाइल तैयार करने का जिम्मा रेलवे पुलिस के इलाहाबाद जोन के आईजी को सौंपा गया है. सरकार ने उनसे इस मामले में जल्द ही पूरी रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
हालांकि मुग़लसराय यानि दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन के रेलवे पुलिस स्टेशन और वाराणसी कोर्ट में मौत से जुड़े कोई ख़ास अहम रिकार्ड अब तक हाथ नहीं लगे हैं. केस डायरी और चार्जशीट के रिकार्ड हाथ न आने के बाद आईजी रेलवे अब इस मामले में सीबीआई की मांग करने वाले बीजेपी नेता के बयान के साथ यूपी सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजने की तैयारी कर रहे हैं.
11 फरवरी 1968 को तत्कालीन मुग़लसराय रेलवे स्टेशन यार्ड पर ही रहस्यमय तरीके से पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव मिला था. उनकी मौत ट्रेन से गिरने से हुई या फिर उनका क़त्ल किया गया था. अगर क़त्ल हुआ था तो वजह सियासी रंजिश थी या फिर सामान चोरी होने का विरोध किये जाने पर उन्हें मारा गया था, ऐसे तमाम सवाल हैं, जो उनकी मौत के पचास साल बाद भी पहेली बने हुए हैं.
मुगलसराय जीआरपी थाने में ही उनका शव मिलने की एफआईआर दर्ज हुई थी. इस मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी. मुक़दमे का ट्रायल पूरा होने के बाद दो आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया था, जबकि एक को सिर्फ दीन दयाल उपाध्याय के सामान चोरी किये जाने के मामले में तीन साल की सज़ा हुई थी.
मौत के मामले की जांच करने वाले दरोगा और उनके सहयोगी सिपाहियों का भी अब तक कोई पता नहीं चल सका है. रेलवे पुलिस के आईजी इसके बावजूद कड़ी से कड़ी जोड़कर मामले को आगे बढ़ाने की कवायद में हैं. उन्होंने अब अम्बेडकर नगर के बीजेपी नेता राकेश गुप्ता को लगाए गए आरोपों पर तथ्यों के साथ बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया है. राकेश गुप्ता के बयान के बाद स्वर्गीय दीन दयाल के परिवार वालों व कुछ और लोगों के बयान भी लिए जा सकते हैं.
गौरतलब है कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय आरएसएस के राजनैतिक संगठन भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे. 1951 में जनसंघ की स्थापना के वक्त वह संगठन मंत्री बने थे. दो साल बाद वह इस संगठन में महामंत्री बने और करीब पंद्रह सालों तक रहे. 1967 में वह जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे.
अध्यक्ष रहते हुए बिहार प्रांत की बैठक में शामिल होने के लिए वह 11 फरवरी को नई दिल्ली से पटना जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए थे, लेकिन मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में उनका शव पाया गया. पहले इस बात के कयास लगाए गए कि ट्रेन से गिरने की वजह से उनकी मौत हो गई, लेकिन बाद में हत्या के मामले में केस दर्ज किया गया.
मुगलसराय के जीआरपी थाने में क्राइम नंबर 67/1968 पर आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज केस में बनारस के रहने वाले राम अवध, लालता और भरत लाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. करीब साल भर तक चले मुक़दमे का ट्रायल पूरा होने के बाद बनारस की सेशन कोर्ट ने जून 1969 में राम अवध व लालता को बरी कर दिया था, जबकि भरत लाल को चोरी की धारा 379/ 411 के तहत दोषी ठहराते हुए चार साल की सज़ा सुनाई थी. थाने के जिस रजिस्टर संख्या चार में इस केस का डिटेल्स दर्ज है, वह रेलवे पुलिस के रिकार्ड में अब भी सुरक्षित है.
यूपी के अम्बेडकर नगर के बीजेपी नेता और पूर्व मंडल अध्यक्ष राकेश गुप्ता ने पिछले साल नवम्बर महीने में केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी भेजकर दीन दयाल उपाध्याय की रहस्यमयी मौत की फ़ाइल फिर से खोले जाने और सीबीआई से नये सिरे से जांच कराए जाने की अपील की थी.
इस चिट्ठी में यह आरोप लगाया गया था कि दीन दयाल उपाध्याय की मौत रेल दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि विपक्षी पार्टियों ने साजिश रचकर उनकी हत्या कराई थी. केंद्र सरकार ने इस मामले में आगे कोई कदम उठाने के लिए यूपी सरकार को कहा.
योगी सरकार ने इसी साल छह अगस्त को इलाहाबाद जोन के आईजी रेलवे को पूरे रिकार्ड जुटाने और मौजूद दस्तावेजों के आधार पर अपनी सिफारिश भेजने को कहा है. गंभीर मामला होने की वजह से आईजी बीआर मीणा अधीनस्थ अफसरों व थाने के इंचार्ज से जानकारियां व सहयोग तो ले रहे हैं, लेकिन सारा काम वह खुद अपनी निगरानी में ही करा रहे हैं.
हालांकि उनका भी यही कहना है कि घटना को बीते पचास साल से ज़्यादा का वक्त होने की वजह से रिकार्ड खोजने और तथ्यों को जोड़ने में खासी दिक्कत आ रही है. वैसे सूत्रों का दावा है कि योगी सरकार आईजी रेलवे की रिपोर्ट को आधार बनाकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मौत की जांच फिर से सीबीआई को सौंप सकती हैं.