एक स्वतंत्र पत्रकार का देश के तमाम पत्रकारों और संपादकों आइना दिखता पत्र
यह पत्र प्रकाशनार्थ भेज रहा हूं। मकसद सिर्फ उन संपादकों/ पत्रकारों का जमीर जगाना (हांलाकि जागेगा नहीं) जिन्हें एक पक्षीय बौद्धिक बल दिखाने की आदत सी हो गयी है। जो किसी पंथ या व्यवस्था के आलोचक की तरह नहीं, बल्कि विरोधी की तरह काम करते हैं। वहीं जब उनके पसंदीदा कैडर द्वारा चरम निंदनीय कृत्य किया जाता है तो उनकी तंद्रा व मौनव्रत पर कोई असर नहीं पड़ता।
ताजा प्रकरण यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से जुड़ा है। एक बड़े राजनेता के तौर पर अखिलेश की यह इच्छा कि वह औरंगजेब होते तो पत्रकार का सिर कलम कर देते। इतना बड़ा और घृणित बयान आया और चौथे स्तंभ से विरोध का स्वर तक न फूटा।
आखिर वे संपादक/पत्रकार कहां हैं जिन्हें किसी चैनल विशेष और रिपोर्टर पर हुयी कार्यवाही मीडिया की आजादी पर खतरा दिखती है। एक बड़े क्षेत्रीय दल का नेता सिर कलम करने की बात करता है तो क्या नैतिकता का तकाजा नहीं है कि प्रेस क्लब आफ इंडिया से आवाज उठे। संपादक/पत्रकार अपना मजबूत विरोध दर्ज कराएं।
या यह मान लिया जाए कि मीडिया पर सिर्फ सत्ता का भय नहीं अपितु संभावित सत्ता का भय भी हावी है। क्या यह मीडिया की आजादी पर खतरा नहीं है। क्या यह न माना जाए कि अखिलेश ने एनडीटीवी के माध्यम से परोक्ष तरीके से मीडिया को धमकाया और मीडिया में बैठे अहम लोगों ने भी इस धमकी को सहजता के साथ स्वीकार कर लिया।
मुझे अचरज और कष्ट इस बात का है कि रवीश कुमार जैसे एंकर के शो पर यह घटना हुयी और उनके लिये भी यह संवाद मुद्दा न बना। जबकि रबीश ने हमेशा खुद को तटस्थ साबित करने की कोशिश की है, जो अब नाकाम दिखने लगी है।
खैर जो भी, इस पत्र के माध्यम से आग्रह करना चाहता हूं कि अगर अभी भी मीडिया के इन स्वनामधन्य लोगों में थोड़ी सी भी नैतिकता बची है तो अपने पत्रकारीय चेतना व ताकत का परिचय दें। ताकि नेताओं की ऐसी मानसिकता का दमन किया जा सके।
पत्रकार को जेल भेजने और गर्दन काटने की इच्छा जताना तानाशाही मानसिकता है। लोकतंत्र में सार्वजनिक रूप से ऐसे विचार प्रकट करना निंदनीय है। अखिलेश यादव को माफ़ी मांगना चाहिए।
एक लिंक दे रहा हूं जिसमें सिर कलम करने की खबर और मूल वीडियो भी है- https://t.co/jLLT2D2jt1
वेद प्रकाश पाठक
स्वतंत्र पत्रकार, गोरखपुर