प्रभात रंजन दीन
नागरिकता संशोधन अधिनियम पर जिस तरह का व्याकुल शोर व्याप्त है, उसके निहितार्थ लोगों की समझ में आते हैं। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम- 2019 भारतीय संसद से पारित होते ही और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद उसके कानून बनते ही जो बेचैनियां सड़क पर अभिव्यक्त होने लगीं, उसे वास्तविक देशवासी फौरी और आकस्मिक समझने की भूल नहीं कर रहे हैं। वास्तविक देशवासी यह समझ रहे हैं कि हिंसक बौखलाहटें क्यों हैं। यह देश को किसी खास विद्रूप दिशा में ले जाने का षडयंत्र है। ऐसा ही षडयंत्र 1947 में हुआ था, जब धर्म के नाम पर देश तोड़ डाला गया था। ये जो समवेत हुआं-हुआं में संविधान की धारा-14, धर्मनिरपेक्षता, मानवतावाद, रोहिंगियावाद और सहिष्णुतावाद जैसी तमाम शब्दावलियां सुनाई पड़ रही हैं, वही जमातें जहां-जहां खुद को थोड़ा मजबूत समझती हैं, वहां-वहां हिंसा का रास्ता अख्तियार कर देश को चुनौतियां भी दे रही हैं। संविधान की धारा-14 में ‘विधि के समक्ष समता’ का प्रावधान है। यह धारा कहती है, ‘राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।’ इस संवैधानिक प्रावधान को अंग्रेजी में कहते हैं… ‘The State shall not deny to any person equality before the law or the equal protection of the laws within the territory of India.’
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर रुदाली करने वाले लोगों को अपने ही देश के राज्यक्षेत्र (territory of India) में रहने वाले कश्मीरी पंडितों और लद्दाखियों के लिए संविधान की धारा-14 का औचित्य कभी नहीं समझ में आया। कश्मीरी पंडितों को सरेआम काटते, पीटते और कश्मीरी महिलाओं के साथ सरेआम बलात्कार करते समय जाहिल-जमातों को यह ख्याल नहीं रहा कि कश्मीरी पंडितों, सिखों, बौद्धों और वहां के अन्य अल्पसंख्यकों के भी समानता के अधिकार हैं। उनकी सम्पत्तियों पर कब्जा करके और उन्हें अपनी ही जमीन से भगाने वाली जमातें संविधानवादी थीं, धर्म-निरपेक्ष थीं, मानवतावादी थीं, सहिष्णुतावादी थीं और प्रगतिशील थीं..? क्या थी वह जमात..? उसी वहशियाना बद-दिमाग जमात के आज अलमबरदार बने बैठे हैं कई लोग जो 90 के दशक में अपने ही देश के निवासियों पर कहर ढा रहे थे। कश्मीरी पंडितों और लद्दाखियों को धर्म बदलने या ऐसा नहीं करने पर अपना स्थान छोड़ देने पर मजबूर कर रहे थे। यह करना क्या धर्म था..? फिर अधर्म क्या है..? जाहिल जमातों के साथ खड़े अपने ही देश के वर्णसंकर बुद्धिजीवियों और विकृत-चित्त (perverted) इतिहासकारों से पूछिए… उन करतूतों के वक्त क्यों नहीं पुरस्कार लौटाए थे और क्यों नहीं चिट्ठियां लिखी थीं..? ऐसे बुद्धिजीवी… और ऐसे इतिहासकार… धिक्कार है…
खुद की आबादी बढ़ाने की पशु-प्रतियोगिता में लगे लोग यह नहीं सोचते कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हिन्दुओं, सिखों, ईसाईयों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और चकमाइयों की तादाद कम से कमतर क्यों होती चली गई..? इन समुदायों का वहां कत्लेआम क्यों हुआ..? इन समुदायों की महिलाओं की इज्जत वहां क्यों तार-तार की गई..? रोहिंगियाओं पर रोने वाले लोगों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर रोना क्यों नहीं आता..? एक आवाज नहीं उठी आज तक..! पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर पिछले सात दशकों से हो रहे बर्बर अत्याचार के खिलाफ मुसलमानों की तरफ से एक आवाज नहीं उठी। आज जब उन देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने की बात उठी तो चिल्ला पड़े। यह कैसी निहायत घटिया, बेईमान और अधर्मी सोच है..? इस घोर नीचता का कोई कारण समझ में आता है आपको..? धर्म तलवार नहीं जो आंखों में घुस जाए और अंधा कर दे। धर्म वह सीख नहीं देता जो मानवतावाद को उन्मादवाद में बदल दे। धर्म जानवर नहीं बनाता। धर्म इंसान बनने का आत्मिक माध्यम है। मैं यह लिख रहा हूं और पूरे आत्मबल से कहता हूं कि जिस दिन मेरा हिन्दू धर्म; मानव-सम्मान, स्त्री-सम्मान, प्राण-सम्मान और राष्ट्र-सम्मान की सनातन संस्कारिक परम्परा से विरत होकर सकल-धर्म-समभाव के बजाय एकल-धर्म के एंगल से देखने की सीख देगा, ऐसी सीख देने वाले हिन्दू धार्मिकों को धिक्कार भेज कर उसी दिन मैं हिन्दू धर्म से अलग हो जाऊंगा। क्या किसी मुसलमान साथी में है ऐसा आत्मबल..? क्या आपको आपके धर्म ने इतना आत्मबल सिखाया है..? अगर आपके धर्म ने आत्मबल और नैतिक-बल दिया होता तो अपने देश के जम्मू-कश्मीर में रहने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाईयों पर जुल्म देख कर क्या आप चुप बैठते..? पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में वहां के अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर क्या आप चुप बैठते..? आप असलियत में धर्मनिरपेक्ष और इंसानियत से लबरेज होते तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के जख्म पर मरहम लगाए जाने से क्या चिढ़ते..? इतनी घृणा क्यों भरी हुई है आपमें..? यह कैसा धर्म है जो हृदय में प्रेम के बजाय घृणा भरता है..? कभी सोचा-विचारा है आपने..? आप में सद्-विचार की शक्ति होती तो क्या किसी दुखी-पीड़ित को मिलने जा रहे अर्ध-न्याय पर आपका कलेजा फटता..? केवल इसलिए कि वे मुसलमान नहीं हैं..? क्या सब कुछ आपको ही मिले..? एक बार तो ले ही लिया धर्म के नाम पर देश। सत्तर साल से तो ले ही रहे हैं धर्म के नाम पर रियायतों का दान। क्या चाहते हैं कि देश बार-बार बंटे..? आपके नाम पर लिख दिया जाए देश..? फिर हम सबको आप काटें या तलवार के बल पर मुसलमान बनने पर विवश करें..? मुसलमान बना कर क्या आप अपनी घृणा और हिंसा का भाव त्याग देते हैं..? यह सवाल खुद से पूछिए और जिस पाकिस्तान को आपने धर्म के नाम पर हासिल किया उसे सामने रख कर इस सवाल का जवाब पाइए। …और पाकिस्तान क्या, धर्म के नाम पर स्थापित किसी भी देश को उठाइए और देखिए कि आप कितने मानवतावादी हैं। अपने धर्म का देश बना लिया और फिर अपने ही धर्म के लोगों को लगे काटने। यह कैसी धार्मिकता है भाई..? धर्म के नाम पर सब कुछ हासिल करने की कुत्सित लोलुपता क्यों नहीं त्यागते..? क्या हासिल कर लिया धर्म के नाम पर देश बांट कर..? हिंसा, नफरत, भिखमंगी और दरिद्रता को ही क्या आपकी जमात धार्मिक उपलब्धि मानती है..? कट्टर धार्मिक अहमन्यता से भरी सोच-समझ वाली जमात में यदि कुछ लोग फिर भी खुद को मानते हैं कि वे वास्तविक इंसान हैं, मानवतावादी हैं, धर्मनिरपेक्ष हैं तो सार्वजनिक फोरम से धिक्कार भेजिए उन लोगों के लिए जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के बहाने देश में अराजकता फैलाने के सुनियोजित कुचक्र में लगे हैं। अगर आप में पढ़े-लिखे होने की निशानी बची है और आपने इस अधिनियम को थोड़ा पढ़ा समझा है तो अपनी जमात को थोड़ा शिक्षित-प्रशिक्षित कीजिए। उन्हें बताइये कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम- 2019, जिसे अंग्रेजी में Citizenship (Amendment) Act- 2019 कहते हैं, वह क्या है। यह भारत की संसद द्वारा पारित अधिनियम है, जिसके जरिए 1955 के नागरिकता कानून को संशोधित करके यह प्रावधान किया गया है कि 31 दिसम्बर 2014 के पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। यह अधिनियम उक्त तीन पड़ोसी देशों के उन अल्पसंख्यकों के लिए लाया गया है, जो वहां धार्मिक प्रताड़नाओं के शिकार हुए हैं या हो रहे हैं। इस अधिनियम का वहां के बहुसंख्यक मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के जो मुसलमान भारत की नागरिकता चाहते हैं, उन्हें जैसे पहले नागरिकता मिलती थी, वैसे ही अब भी मिलेगी। यह बुद्धि में क्यों नहीं घुस रहा..? नागरिकता संशोधन अधिनियम अब संविधान का हिस्सा है। संविधान की एक धारा आपको आपके मुफीद लगती है तो उसका सम्मान है… पूरा संविधान आपके अनुकूल नहीं लगता तो उसका सरेआम अपमान है। यह कैसी शिक्षा है और कैसा संस्कार है..!
नागरिकता संशोधन अधिनियम के बहाने देश में हिंसक माहौल बनाने वाली जमात और उसके पीछे के सूत्रधार राजनीतिकों की बुद्धि में सब कुछ घुस रहा है… दरअसल, सत्तर साल की लंबी अवधि के दरम्यान भारत में आकर बस चुके पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और अफगानिस्तानी मुसलमानों को राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) से बचाने के लिए यह सब उपक्रम हो रहा है। नागरिकता संशोधन अधिनियम पर विरोध और हिंसा असलियत में एनआरसी से बचने की पेशबंदी है। जिन लोगों का अस्तित्व ही अनैतिक और गैर-कानूनी जमीन पर खड़ा है, उन्हें आज समानता का अधिकार सूझ रहा है। जबकि समानता के कानून से उन्हें नफरत रही है, यह सत्तर साल से हम देख रहे हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमान बहुत बड़ी संख्या में भारत की मुस्लिम आबादी में घुल-मिल कर रह रहे हैं। यह अवैध लोग यहां के वैध नागरिकों के रिश्तेदार बने बैठे हैं। यह अवैध लोग भारत में बाकायदा वोटर बन चुके हैं। कुछ राजनीतिक दल सत्तर साल से संजोया अपना वोट-बैंक जाता हुआ देख कर तिलमिलाए हैं। इसीलिए वे मुसलमानों को भड़काने में लगे हैं। अवैध रूप से भारत में रह रहे मुसलमानों को अब अपने पहचाने जाने और निकाले जाने का भय सताने लगा है। ‘देश में गृह युद्ध होगा’… कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने कुछ अर्सा पहले इस तरह के जो बयान दिए थे, उसे याद करते चलें और यह समझते चलें कि ऐसा माहौल सृजित करने की उनकी तैयारी कब से चल रही है। मुसलमान फिर उनके उपकरण (टूल) बन रहे हैं, क्योंकि इसमें उन्हें अपना हित दिखाई दे रहा है। धर्म के नाम पर अपने रिश्तेदारों को बचाने के लिए लोग देश को आग में झोंकने पर आमादा हैं। इसीलिए बहुत सोच-समझ कर नागरिकता संशोधन अधिनियम पर विरोध हो रहा है, ताकि राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (National Register of Citizens; NRC) अभियान को ध्वस्त किया जा सके। आपको यह बता दें कि ऊपर-ऊपर विरोध प्रदर्शन और हिंसक हरकतें चल रही हैं तो दूसरी तरफ भीतर-भीतर मुसलमानों में एक कैम्पेन बहुत ही तेजी से चलाया जा रहा है। यह मैं आधिकारिक प्रमाण के साथ कह रहा हूं। इस कैम्पेन को ‘एनआरसी बेदारी मुहिम’ नाम दिया गया है। ‘एनआरसी बेदारी मुहिम’ के जरिए मुसलमानों के बीच यह संदेश तेज गति से चलाया जा रहा है कि वे खुद को भारत का पक्का नागरिक साबित करने वाले सारे दस्तावेज तैयार करके रख लें। दस्तावेज हासिल करने के लिए भारत की घूसखोर प्रशासनिक-धारा का खुल कर इस्तेमाल करने की अंदरूनी मौखिक सलाहें दी जा रही हैं, ताकि पैसे देकर पक्के कागजात हासिल कर लिए जाएं। आप ऊपर-ऊपर देखते होंगे कि मुसलमानों से एनआरसी का बायकॉट करने और कोई फॉर्म वगैरह नहीं भरने की बातें कही जा रही हैं, लेकिन यह छद्म है, असलियत यह है कि पक्के दस्तावेज बनवाने का काम अंदर-अंदर तीव्र गति से हो रहा है।
भारतवर्ष के अधिसंख्य मुसलमान परिवर्तित धर्मावलंबी हैं… यह मुसलमान जानते हैं। किसी धर्म का स्वीकारण किसी भी व्यक्ति का अधिकार और विवेक होता है, वशर्ते वह अपने स्व-विवेक और स्व-अधिकार से यह निर्णय ले। भारतवर्ष में तलवार की नोक पर धर्मांतरण की कुप्रथा कैसे आई और इसके पालन में इतर धर्मावलंबियों और उनके आस्था-केंद्रों के साथ किस तरह की वहशियाना कार्रवाइयों का सिलसिलेवार दौर साल दर साल चला और उस वहशियाना दौर के प्रति-उत्पाद किस तरह उसी नक्शेकदम पर चल रहे हैं, इस पर हम क्रमशः बात करेंगे। अभी इतना जरूर कहते चलें…
जब भीड़ फैसले लेती हो, तब बुद्धि कहां फिर चलती है?
द्वेष भरा हो नस-नस में, तब बुद्ध कहां फिर टिकता है?
झुंड बना कर फिरते हैं जो, इंसान नहीं, बस गिनती हैं वो,
सिर्फ गणन हो जहां कहीं भी, गुणन कहां फिर टिकता है..?
आंखों पर छाया हो मद, तो सत्य कहां फिर दिखता है?