नई दिल्ली। 15 जून को गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. इसके बारे में साजिशों की कहानी है, विश्वासघात का संकेत है और दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं. तथ्यों के अभाव में कई सवाल बिना जवाब के रह जाते हैं.हमने पूरी घटना को एक सिरे में पिरोया है और आपके पास 15 जून की रात का गलवान घाटी का वृहद दास्तान लेकर आया है.
गलवान में 10 दिन पहले ही लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बात हुई थी और पेट्रोल प्वाइंट 14 पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटनी शुरू हो गई थीं, क्योंकि दोनों देश की आर्मी LAC के काफी करीब आ चुकी थी.
गलवान नदी के किनारे बना चीन का एक निगरानी पोस्ट भारत की सीमा में था, चीन के साथ बातचीत के दौरान इसकी पुष्टि हो गई थी. इसे हटाने को लेकर चीन की सेना के साथ समझौता भी हो गया था. बातचीत के कुछ दिन बाद चीन ने इस पोस्ट को नष्ट भी कर दिया था. उसी दिन 16 बिहार बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू ने अपने समकक्ष चीनी अधिकारी से इस बारे में बात भी की थी.
गलवान घाटी
लेकिन 14 जून की आधी रात को ये नष्ट पोस्ट फिर से उसी जगह पर बन गया.
कर्नल बी संतोष बाबू हैरान थे कि उन्होंने कुछ ही दिन पहले इस पोस्ट को लेकर चीनी सैन्य ऑफिसरों से बात की थी फिर ये दोबारा कैसे बन गया, क्या बातचीत के दौरान कहीं कोई गलती हुई.
इस दौरान 16 बिहार रेजिमेंट में गरमागर्मी का माहौल था. यूनिट के युवा सिपाही नाराज थे और वे खुद चीन के उस विवादित पोस्ट को उखाड़ फेंकना चाहते थे. लेकिन कर्नल बाबू का विचार दूसरा था. कर्नल बाबू अपने यूनिट में बेहद सौम्य, शांत दिमाग से काम करने वाले ऑफिसर माने जाते थे. वो इस इलाके में कंपनी कमांडर के तौर पर पहले भी अपनी सेवाएं दे चुके थे. कर्नल बाबू ने तय किया वे चीन के उस पोस्ट तक खुद जाएंगे.
एक सामान्य स्थिति में एक कंपनी कमांडर (मेजर रैंक का अधिकारी) ऐसे मौके पर भेजा जाता है. लेकिन कर्नल बाबू ने तय किया कि ऐसे नाजुक मसले को वे यूनिट के युवा अफसरों के हवाले नहीं करेंगे. यहां ये जानना जरूरी है कि अभी तक भारतीय खेमे में मिजाज में गर्मी नहीं आई थी. यूनिट के युवा अधिकारी और सिपाहियों को सिर्फ ये उम्मीद थी कि नदी की संकरी घाटी में उन्हें एक वैसा काम करना है, जहां अबतक किसी तरह का विवाद नहीं हुआ था. यही पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच भी दोस्ताना रवैया था.
15 जून को शाम 7 बजे कर्नल बाबू अफसरों और जवानों की 35 लोगों की एक टीम के साथ पैदल ही उस पोस्ट की ओर गए जो चीनियों ने दोबारा बना डाला था. इसमें दो मेजर भी शामिल थे. टीम का माहौल तनाव जैसा नहीं था, बल्कि ऐसा था कि जैसे वे कुछ पूछताछ करने जा रहे हों.
जब भारत की ये टीम चीनी कैंप के पास पहुंची तो भारतीय सैनिकों ने सबसे पहले जो बात महसूस की वो ये थी कि चीन के सैनिकों का हाव-भाव अलग था. वहां मौजूद चीनी जवान वो नहीं थे, जिनकी ड्यूटी सामान्य तौर पर उस जगह पर हुआ करती थी.
एक ही स्थान पर तैनाती की वजह से 16 बिहार रेजिमेंट के जवानों ने चीनी यूनिट के सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार बना लिया था. उन्हें उम्मीद थी कि वहां वही चीनी सैनिक और ऑफिसर मिलेंगे, जिन्हें वे जानते थे. लेकिन यहां मौजूद चीनी सैनिकों के नए चेहरे भारतीय सैनिकों के लिए पहली हैरानी की बात थी.
भारत की सेना को पता चला कि यहां पर पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी से कुछ नए जवानों को मई के दूसरे पखवाड़े में लाया गया था. 16 रेजिमेंट को इस बात की जानकारी भी मिली थी कि पीएलए के कुछ ‘नए’ सैनिक यहां आए हैं, लेकिन ये स्पष्ट था कि इन सैनिकों की गतिविधि LAC के पार चीनी सीमा के बहुत अंदर तक थी.
बता दें कि एक आर्मी यूनिट में अपने कमांडिंग ऑफिसर की बेइज्जती देखना वैसा ही है, जैसे आपके माता-पिता के साथ किसी ने बेइज्जती या उनके साथ मारपीट की हो. इस घटना के बाद भारत की ओर से प्रतिक्रिया तुरंत और तीव्र रूप से आई. भारतीय टीम चीनियों पर टूट पड़ी. ये लड़ाई मुक्के और घूंसों की थी. इस दौरान किसी किस्म के हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ. 30 मिनट तक चली इस लड़ाई में दोनों ओर से लोग चोटिल हुए, लेकिन भारतीय टीम इस दौरान बीस साबित हुई. 16 बिहार रेजिमेंट के शूरवीर जवानों ने उस पोस्ट को तोड़ दिया और वहां से हर चीनी प्रतीक मिटा दिया. भारत के कमांडिंग ऑफिसर को धक्का देने के बाद संयम की सीमा पहले ही खत्म हो गई थी.
इस घटना के तुरंत बाद कर्नल बाबू ये भांप गए कि चीनियों का मिजाज दूसरा है. यहां पर चीन के नए सैनिकों की मौजूदगी और एक शख्स की ओर से की गई गुस्ताखी से वे समझ गए कि कुछ बड़ा होने वाला है. उन्होंने भारत के जख्मी सिपाहियों को वापस पोस्ट पर भेज दिया और उन्हें कहा कि पोस्ट से और ज्यादा जवान भेजे जाएं. अबतक भारतीय खेमे में चीनियों के प्रति गुस्सा बढ़ चुका था, लेकिन जानकारी के मुताबिक कर्नल बाबू अब तक संयमित थे उन्होंने अपने जवानों को शांत किया.
कर्नल बाबू और उनकी टीम ने जिन नए चीनी जवानों को हाथापाई पकड़ा था, उन्हें पकड़ कर वे एलएसी के पार चीनी सीमा की ओर निकल गए. भारत की टीम इन चीनी जवानों को न सिर्फ उनके सीनियर अफसरों को सौंपना चाहती थी, बल्कि ये जानना चाहती थी कि क्या और भी चीनी सैनिक तो नहीं आ रहे हैं.
15 जून की उस शाम के पिछले कुछ घंटों के घटनाक्रम ये इशारा कर रहे थे कि ये आम दिनों जैसी छोटी-मोटी टकराव नहीं है. ऐसा भी संभव है कि भारतीय सैनिकों ने चीन की तरफ कुछ मूवमेंट का भी आकलन किया हो. भारतीय और चीन के सैनिकों की ये भिडंत झलकी मात्र ही थी. एक घंटे बाद असली लड़ाई होनी थी.
इस दूसरी ही लड़ाई में सैनिकों अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ी.
घटनास्थल से कुछ दूर शायोक-गलवान नदी के मिलनबिंदू पर तैनात एक ऑर्मी ऑफिसर ने कहा, “हमारे जवान गुस्से में और आक्रामक थे. आप सोच सकते हैं कि वे चीनियों को किस कदर सबक सिखाना चाहते थे.”
अबतक गलवान घाटी अंधेरे में डूब चुकी थी. विजिविलिटी कम हो गई थी. कर्नल बाबू को जो अंदेशा था वो सच साबित हुआ. चीन के नए सैनिक नदी के दोनों किनारों पर पोजिशन लेकर इंतजार कर रहे थे. इसके अलावा दाहिनी ओर भी एक रिज पर पोजिशन लेकर वे तैयार थे. जैसे ही भारतीय सैनिक वहां पहुंचे उनपर बड़े बड़े पत्थर बरसने लगे.
रात को 9 बजे के करीब कर्नल बाबू के सिर से एक बड़ा पत्थर टकराया और वे गलवान नदी में गिर गए. आकलन ये है कि हो सकता है कि उन्हें जानबूझकर निशाना नहीं बनाया गया हो, लेकिन टकराव के आलम में पत्थर उन्हें भी लग गया.
भारत और चीनी सैनिकों के बीच ये टकराव 45 मिनट तक चला. रात के अंधेरे में हुए इसी भयानक युद्ध के दौरान कई जवान वीरगति को प्राप्त हुए. इस लड़ाई का एक अहम पहलू ये है कि एलएसी के आर-पार कई पॉकेट में ये लड़ाई हो रही थी. ये लड़ाई कई ग्रुप में हो रही थी. जिसमें कि 300 लोग एक दूसरे से लड़ रहे थे. जबतक लड़ाई रुकी भारत और चीन दोनों ओर से सैनिकों के कई जवान गलवान नहीं में गिर चुके थे. इसमें भारत के कमांडिंग ऑफिसर भी शामिल थे.
आमने-सामने इस की लड़ाई में चीनियों ने कील लगे रॉड और डंडों का इस्तेमाल किया. इसके बाद दोनों सैनिक अलग अलग हो गए. रात 11 बजे तक चीजें शांत ही रही. इस दौरान दोनों देश की सेनाओं ने नदी में गिरे अपने घायल जवानों को उठाया और उन्हें इलाज के लिए भेजा.
इस दौरान कर्नल बाबू और दूसरे घायल जवानों को भारतीय कैंप की ओर ले जाया गया. जबकि देश के बाकी जवान हालात का जायजा लेने के लिए चीनी सीमा में ही मौजूद रहे. अबतक ये साफ हो गया कि भारत के कमांडिंग ऑफिसर का शक सही था. भारत के सैनिक अपने कमांडिंग ऑफिसर को अपने आंखों के सामने शहीद होता देख आग बबूले थे. बदला लेने की जवानों की भावनाएं उफान मार रही थी.
जब भारतीय जवान घायल सैनिकों को नदी और अन्य स्थान से निकाल रहे थे, तभी रात के अंधेरे में उन्हें एक ड्रोन के आने की आहट सुनाई. यह एक नए खतरे का संकेत था. यह संकेत था गलवान घाटी में आधी रात को भारत और चीनी सैनिकों के बीच होने वाले तीसरे आमना-सामना का. ड्रोन धीरे-धीरे घाटी की ओर आ रहा था. संभवत: वह इन्फ्रारेड कैमरा और नाइट विजन का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि चीन अपने नुकसान का आकलन कर सके और फिर से हमला कर सके.