नई दिल्ली। गुरुवार को बाजार खुलते ही शेयर बाजार और रुपए दोनों धड़ाम हो गए. सेंसेक्स1,030 अंक गिरकर 34,000 अंक के स्तर से नीचे चला गया. ऐसा डॉलर के मुकाबले रुपया 74.45 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने के कारण हुआ. बाजार में यह नकारात्मक ट्रेंड जुलाई 2018 के बाद से लगातार बना हुआ है. जानकारों की मानें तो रुपए की कमजोरी जीडीपी की ग्रोथ रेट के लिए सबसे नकारात्मक फैक्टर है. वहीं आम आदमी को इसका नुकसान ईंधन की कीमतों में उठाना पड़ रहा है. कुलमिलाकर खर्च बढ़ने से उसकी आमदनी पर चोट हो रही है.
1-पेट्रोल-डीजल होगा महंगा
अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना जारी रहा तो यह 75 रुपए के स्तर तक जा सकता है. इससे तेल का आयात और महंगा होता जाएगा. यानी घरेलू स्तर पर इसका असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा. ये और चढ़ेंगी. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है.
2- तेल महंगा होने से बढ़ेगी महंगाई
अगर क्रूड की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो देश में पेट्रोल के साथ-साथ डीजल के दाम बढ़ेंगे, जिससे रोजमर्रा की चीजों के दाम और चढ़ जाएंगे. डीजल बढ़ने से लोकल ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाएगा. इसका असर सभी जरूरी चीजों के दाम मसलन साबुन, शैंपू, पेंट इंडस्ट्री पर पड़ेगा.
3- महंगा हो जाएगा किराया
क्रूड महंगा होने से प्राकृतिक गैस की कीमत पर दबाव पड़ेगा. यह भी बढ़ेगी, जिससे गैस पर चलने वाली कार, ऑटो या बस से चलना और महंगा हो जाएगा. वहीं डीजल से चालित रोडवेज बसों का किराया भी बढ़ने की आशंका रहेगी.
4-तेल आयात पर पड़ेगा असर
रुपए का कमजोर होना तेल आयात को लगातार महंगा कर रहा है. तेल कंपनियों को आयात के बदले ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ रहा है. वह तेल आयात कम करने पर भी विचार कर रही हैं. अगर ऐसा हुआ तो देश में ईंधन की किल्लत भी खड़ी हो सकती है.
5-शेयर बाजार में निवेश को लगेगा धक्का
जानकारों की मानें तो बीते एक दशक से शेयर बाजार और रुपए के बीच सीधा ताल्लुक रहा है. रुपया मजबूत होता है तो शेयर बाजार में भी तेजी दिखाई देती है, लेकिन इस समय एफआईआई बाजार से पैसा लगातार निकाल रहे हैं. इस कारण भी रुपया गिर रहा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली भी कह चुके हैं कि रुपया दो ही कारकों से टूट रहा है, तेल की कीमतें और डॉलर में लगातार मजबूती. अगर यह ट्रेंड बना रहा तो इससे एफआईआई बड़े पैमाने पर अपना निवेश बाहर निकालेंगे. इससे घरेलू निवेशकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. खासकर ब्लूचिप कंपनियों की हैसियत घटेगी, जो अंतत: देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालेगा.