नई दिल्ली। कांग्रेस के लिए मौजूदा समय काफी चुनौतियों भरा है। कई पार्टी नेता अपने संगठन से खफा हो कर या तो भाजपा का दामन थाम रहे हैं या पार्टी में ही अपना झंडा बुलंद करने के लिए गुमनामी में भेज दिए गए हैं। 2018 में हुए राजस्थान के चुनाव में पार्टी की नैया पार लगाने वाले सचिन पायलट कांग्रेस में हाशिए पर ढकेले गए सबसे नया नाम हैं। हालांकि, वे पार्टी में पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्हें दूसरे नेताओं से मतभेद रखने के लिए किनारे किया गया है, बल्कि इससे पहले भी कई नेता रहे हैं, जो पार्टी नेतृत्व के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए नुकसान झेल चुके हैं।
कांग्रेस में संगठन की संस्कृति और विचारधारा की समस्या पर पहली आवाज उठाने वाला चेहरा महाराष्ट्र चुनाव के दौरान संजय निरुपम का था। उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव के दौरान ही शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के महागठबंधन के बेमेल करार दिया था। यहां तक की राकांपा के समर्थन से सरकार बनाने से पहले तो उन्होंने शरद पवार को जहर तक करार दे दिया था। सरकार बनने के बाद भी उन्होंने महाविकास अघाड़ी की प्रमुख पार्टी शिवसेना और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर निशाना साधना जारी रखा है। हाल ही में उन्होंने उद्धव पर गलत तरह से मातोश्री-2 के लिए जमीन लेने का आरोप लगाया था। हालांकि, अपने इसी रवैये की वजह से वे फिलहाल पार्टी में हाशिए पर चले गए हैं और कांग्रेस आलाकमान महाविकास अघाड़ी के साथ ही सरकार चला रहा है।
संजय निरुपम के अलावा कांग्रेस पर ही निशाना साधने वाले युवा नेता मिलिंद देवड़ा को भी पार्टी नेतृत्व ने बीते समय में काफी खरी-खरी सुनाई है। दरअसल, देवड़ा कई मौकों पर भाजपा सरकार की योजनाओं की तारीफ कर चुके हैं। देवड़ा को पीएम मोदी का प्रशंसक माना जाता है। पिछले महीने इमरजेंसी के 45 साल पूरे होने पर उन्होंने कांग्रेस पर ही मजाक करते हुए कहा था कि आपातकाल हमें याद दिलाता है कि जब लोकतंत्र की परीक्षा हुई है, तब वह लड़कर उभरा है। इससे पहले मिलिंद देवड़ा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की भी तारीफ कर चुके हैं। हालांकि, इस पर कांग्रेस के ही नेता अजय माकन ने कहा था कि देवड़ा अधपकी जानकारी फैलाने से पहले कांग्रेस छोड़ दें। देवड़ा पिछले साल पीएम मोदी के अमेरिका में रखे गए हाउडी मोदी इवेंट की तारीफ कर के भी कांग्रेस में नेताओं के निशाने पर आ चुके हैं।
दूसरी तरफ गुजरात चुनाव के दौरान हार्दिक पटेल के साथ कांग्रेस के चेहरे की तरह लॉन्च किए गए अल्पेश ठाकोर को भी इस साल पार्टी ने किनारे कर दिया। इसके बाद ठाकोर ने खुद ही कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए अपनी गुजरात क्षत्रिय ठकोर सेना का गठन किया और इसे अपनी प्रायोरिटी में रखने की बात कही। ठाकोर ने पार्टी छोड़ते हुए कहा कि मैंने गरीबों की मदद के लिए राजनीति जॉइन की। लेकिन इस तह नजरअंदाज किए जाने के बाद मुझे बेइज्जती महसूस हुई। हालांकि, इस पर भी गुजरात कांग्रेस कमेटी ने कहा था कि ठाकोर का यह फैसला निजी है और उन्होंने इसे राजनीतिक और आर्थिक दबाव में लिया है। उनका पत्र उनके निजी लालच को दर्शाता है।
कांग्रेस में बगावती चेहरों में एक नाम है विधायक अदिति सिंह का जिन्हें कांग्रेस विरोधी रवैये के लिए कुछ समय पहले ही पार्टी से बाहर कर दिया गया था। दरअसल, अदिति ने भाजपा के 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले का समर्थन किया था। इसके अलावा वे पहले भी भाजपा की तरफ नरम रुख अख्तियार करती देखी गई हैं। कुछ समय पहले ही जब यूपी कांग्रेस ने व्हिप जारी कर पार्टी विधायकों को सत्र का बायकॉट करने के लिए कहा था, तब अदिति सिंह ने कांग्रेस के आदेश को नकार दिया था। इस बारे में उनसे जवाब भी मांगा गया। हालांकि, अदिति ने इसे नजरअंदाज कर दिया। कांग्रेस ने हाल ही में स्पीकर ह्रदय नारायण दीक्षित से अदिति को बर्खास्त करने की मांग की थी। हालांकि, पार्टी का यह दांव सफल साबित नहीं हुआ।