अरविन्द मिश्र
लखनऊ। श्रीराम के नाम से सम्पूर्ण विश्व में पहचान बनाने वाली अयोध्या नगरी में अब प्रभु श्रीराम के भव्य मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ होने जा रहा है। पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमिपूजन व शिलान्यास कार्यक्रम के पश्चात मन्दिर निर्माण का कार्य गति पकड़ेगा। इसी के साथ वर्षों से अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के मन्दिर निर्माण की बाट जोह रहे उन समस्त राम भक्तों और सन्त महात्माओं की उम्मीदों पर लगा ग्रहण भी छंट जायेगा। ऐसे अवसर पर रामजन्मभूमि आंदोलन के अगुआकार और रामजन्मभूमि न्यास के आजीवन सदस्य रहे महंत रामचन्द्र परमहंस दास की चर्चा न करना बेमानी होगी। हालांकि वर्ष 2003 में परमहंस दास जी ब्रह्मलीन हो गये। अपने अंतिम समय तक वे मन्दिर निर्माण आंदोलन में सक्रिय रहे और आंदोलन की दिशा तय करते रहे।
दिगम्बर अखाड़ा के तत्कालीन महंत रहे रामचन्द्र परमहंस दास ने ही राम मन्दिर आन्दोलन को धार देते हुये रामजन्मभूमि परिसर में रामलला विराजमान के कब्जे को लेकर कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। और अब कोर्ट के आदेश से ही रामजन्मभूमि परिसर में ऐतिहासिक राम मन्दिर का निर्माण होने जा रहा है।
महंत रामचन्द्र परमहंस दास से मेरी प्रायः मुलाकात होती रहती थी। मुझ पर उनका विशेष स्नेह बरसता था।कहते हैं ‘सन्त हृदय नवनीत समाना’ परमहंस दास जी भी ऐसे ही सन्त थे। बाहर से थोड़ा कठोर लेकिन भीतर से उनका हृदय बिल्कुल कोमल था। हंसी ठिठोली भी सभी कभार कर लेते थे। उनसे जुड़े कई संस्मरण हैं। तब उत्तर प्रदेश में रामप्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री थे। परमहंस दास जी का अचानक राजधानी आना हुआ।कुछ देर के लिए वीवीआईपी गेस्ट हाउस में ठहरे। शाम का समय था मैं उस समय हिन्दुस्तान समाचार पत्र के कार्यालय में बैठा एक खबर लिख रहा था। तब हिन्दुस्तान पत्र का कार्यालय सिकंदरबाग में हुआ करता था। मेरे मोबाईल पर अरुणेन्द्र पाण्डेय का फोन आया और बोले महराज जी आपको याद कर रहे हैं। गाड़ी भेज रहा हूं उसी से आ जाइये। परिवहन विभाग में अधिकारी अरुणेन्द्र पाण्डेय को महराज जी यानि रामचन्द्र परमहंस दास जी अपना दत्तक पुत्र मानते थे। कुछ ही देर में मैं वीवीआईपी गेस्ट हाऊस में महंत जी के सामने था। मैने प्रणाम किया तो चेहरे पर मुस्कुराहट और चिरपरिचित अंदाज में मुझे अपने बगल बैठाया। कक्ष में उस समय महंत जी के अलावा प्रदेश सरकार के तत्कालीन वित्त मन्त्री हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ‘हरीश जी’ तीन अन्य लोग थे। तकरीबन आधे घण्टे की बातचीत के बाद सब लोग बाहर निकले तो परमहंस दास जी ने मुस्कुराते हुये मुझे आशीर्वाद दिया और बोले कि तुम ऑफिस जाकर अपना काम निपटाओ। पत्रकारों के पास ज्यादा समय नही होता। स्वयं अयोध्या के लिए रवाना हो गये।
ऐसे कई संस्मरण हैं महंत रामचन्द्र परमहंस दास जी के। बस एक बात वे हमेशा कहते कि देखना एक दिन अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मन्दिर अवश्य बनेगा। लेकिन मेरे जीते जी बन जाता तो मैं भी धन्य हो जाता। और उनकी बात सच हुयी। अब अयोध्या में राम का भव्य ऐतिहासिक मन्दिर बनने जा रहा है। आज महंत रामचन्द्र परमहंस दास जी तो नही हैं लेकिन राम मन्दिर के लिये किये गये उनके आन्दोलन और उनके योगदान की चर्चा सदियों तक होती रहेगी।