सुशांत- आज से पहले किसी आत्‍महत्‍या के मामले में इतनी सक्रियता नहीं दिखी, परिवार, रिया, पुलिस …

पंकज चतुर्वेदी

मैंने अपनी याददाश्त में किसी आत्महत्या के मामले में ईडी , सीबीआई , केन्द्र ओर राज्य सरकारों की ऐसी सक्रीय भूमिका मैंने कभी देखी नहीं . सुशांत सिंह बेहतरीन अदाकार थे , उभरते कलाकार थे ओर उनका इस तरह असामयिक निधन सभी को दुखी करता है .

जिस देह में हर साल सैंकडों किसान कर्ज के दवाब या फसल खराब होने पर ख़ुदकुशी करते हों ओर उनका पार्थिव शरीर जलने से पहले फाईलें लाल बस्ते में बंद हो जाती हों , वहाँ करनी सेना , राजपूत दल सहित कई छद्म नाम लेकिन एक ही उद्देश्य से बने संगठनों का उत्पात काटना – दो राज्यों की पुलिस का टकराव ओर मुंबई

 पुलिस के हाथ से केस छीन कर अपने माफिक जांच करने की जिद में सी बी आई ओर ईडी को घुसाना — असल में अभिनेता की मौत से कहीं आगे का मसला हैं .

रिया चक्रवर्ती सुशांत के साथ रहती थी, तब उनके बाप- बहन या किसी ने उसे सामजिक दायरे बताये नहीं – जब सुशांत को मानसिक तनाव था , तब कोई उसका साथ देने आया नहीं, अभी बम्बई में जब काम बंद था तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी यू पी के अपने छोटे से गाँव में आ कर खेती कर रही थे- फिर सुशांत क्यों अकेले थे ?

सुशांत के अपने कई मित्र थे, व्यावसायिक रिश्ते थे –बिहार पुलिस उसके खाते से निकाले पैसे का हिसाब लगा रही हैं — किस पार्टी में खर्च हुआ, किस तौर पर हुआ — मान लो वह व्यय रिया ने किया तो क्या हुआ ? जब वह उसे अपने साथ रख रहा था, जब उसके साथ अच्छे -बुरे पल बीता रहा था, एक पत्नी की तरह तो उसके खर्चे भी तो वही उठाएगा ?

आज जो इस मामले में उछल रहे हैं उन्हें सुशांत से नहीं बल्कि उसके धन दौलत से लिप्सा है , नेता महज राजपूत वोट अपनी तरफ करने के इरादे से गणित लगा रहे हैं ओर ईडी या अन्य तोता छाप एजेंसी एक राजनीतिक दल की दासी बनी हुई हैं —

जो मीडिया घराने इस खबर पर रोज चटकारे ले रहे हैं वे असल में आम लोगों की दिक्कत , दर्द, या सरोकारों से विमुख हैं ओर सत्ता के गलियारों की सोची समझी साजिश के मोहरे मात्र हैं .
यह कड़वा सच है कि जब सुशांत को अपने परिवारी की जरूरत थी तब परिवार वाले उसके ग्लेमर से उपजे सुखों में डूबे थे ओर अब उनकी असली चिंता उसी सुख-श्रंखला के बिखर जाने की है , प्रोपर्टी, पैसा कैसे उन्हें ज्याद से ज्यादा मिल जाए इसकी है