राम मंदिर के शिलान्यास से भुला दीं सरकार की सब खामियां

राजेश श्रीवास्तव

भारतीय जनता पार्टी या फिर यूं कहेें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की किस्मत कहें कि जबसे उन्होंने सत्ता संभाली है तबसे उनके खाते में जब भी कोई बड़ी मुसीबत आयी है तब-तब उसके कुछ ही समय बाद उन्हें ऐसा मौका मिल गया कि लोग पुरानी समस्या को भूल जाते हैं और नये के जोश और उत्साह में डूब जाते हैं। या फिर यूं कहें कि सरकार हम समस्या के बावजूद उससे उबरना जानती है अगर कोई प्राकृतिक आपदा आयी या फिर आर्थिक संकट या फिर सियासी संकट हर आपदा को प्रधानमंत्री ने अवसर में बदल दिया। सुखद यह रहा कि उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया और कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने मंच से स्वीकार करते हुए कहा कि हमें आपदा को अवसर में बदलना आता है। यह सच भी है आज ही नहीं 2०14 से 2०19 का समय याद कीजिये और अब जब उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है तब भी कमोवेश यही स्थिति है। देश इन दिनों कोरोना महामारी से जूझ रहा है। देश में कोरोना महामारी से तकरीबन 21 लाख मरीज संक्रमित हो चुके हैं और बीस हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। आर्थिक संकट से देश का हर व्यक्ति जूझ रहा है। केरल से कश्मीर तक, कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर तरफ प्राकृतिक आपदाएें लोगों को त्रासदी झेलने को मजबूर कर रही हैं। हर उद्योग धंध्ो बंदी या फिर डूबने की कगार पर हैं। ऐसे में अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन जिस तरह का इवेंट बनाया गया उसने पूरे देश में तस्वीर ही बदल कर रख दी। प्रधानमंत्री ने जिस तरह का संबोधन दिया, पूरी दुनिया ने सुना। उन्होंने कहा कि आज इजरायल जैसा देश, जो मुस्लिम बाहुल्य देश है, वहां भी लोग राम मंदिर बनने से खुश हैं और भारत की ओर देख रहे हैं। यानि उन्होंने बताया कि जब इजरायल जैसा देश भारत में राम मंदिर बनने से खुश हैं, तब भारत के लोगों के लिए तो इस जश्न में सब कुछ भूलकर डूबने की जरूरत है। और यह गलत नहीं है आज पूरा भारत सब कुछ भूलकर राम मंदिर बनने की खुशी में झूम रही है।
दरअसल भारत धर्मप्रधान देश है यहां लोग धर्म के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इसी कमजोरी को भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से अपनी शक्ति का आधार बनाया। कभी हिंदू-मुस्लिम, कभी राम मंदिर, कभी देश भक्ति उनकी सरकार का एजेंडा रहा। आर्थिक संसाधन बढ़ाने, नये रोजगार खड़े करना, नयी फैक्ट्री लगाना, नये अवसरों को तलाश करना, नयी नौकरिया निकालना सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं रहा। क्योंकि उनको पता है कि विकास से सरकारें नहीं बनती हैं। अगर काम से सरकारें बनतीं तो हैदराबाद में पहली बार मेट्रो आयी तो उसके बाद सरकार चली गयी। मनमोहन सरकार ने खूब काम किया लेकिन चली गयी। पिछली उप्र की सरकार ने काम में कमीं नहीं की लेकिन क्या हुआ। यहां हिंदू-मुस्लिम, जाति-धर्म, मजहब-संप्रदाय से सरकारें बनतीं-बिगड़ती हैं। सफाई भलें लोग दें लेकिन पूरे देश ने यह देखा है। स्वीकार भले ही कोई सियासी दल न करे। इसीलिए इस समीकरण को भाजपा ने खूब पाला-पोसा है और खाद पानी दिया। यही कारण है कि मोदी सरकार को अर्थव्यवस्था में सी ग्रेड, शासन में डी ग्रेड लेकिन राजनीति में हमेशा ए ग्रेड ही दिया गया। मुश्किलें कितनी भी आयें लेकिन उससे निकलना और आपदा काल में ही भव्य इवेंट करना अब आने वाली सरकारों को, अगर उन्हें मौका मिला तो, सीखना पड़ेगा कि कैसे आपदा में घबराने के बजाय खाली पेट भी लोगों को जश्न में डुबाया जा सकता है। सब कुछ भुलाया जा सकता है।
यह कोई पहला मौका नहीं है। इससे पहले भी तमाम मौके आये जब केंद्र की मोदी सरकार परेशानी में घिरी दिखी। दिलचस्प तो यह था कि 2०2० में भी उसे नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लेने के बावजूद पहले की अपेक्षा अधिक सीटें हासिल हुईं। इसे लेकर अगर उसे राजनीति में ए ग्रेड दिया जाता है तो अतिशयोक्ति कहां है। करीब एक साल पहले ही नरेंद्र मोदी पूरे जनादेश के साथ दूसरी बार प्रधानमंत्री के लिए चुने गए थे। उनके दूसरे कार्यकाल का पहला साल अर्थव्यवस्था की बुरी स्थिति से गुजर रहा है जिसे संभालने के लिए उनकी सरकार संघर्ष कर रही है। पहले कार्यकाल की तुलना में इस बीच न कोई बड़ी जनकल्याणकारी योजना दिखी और न ही इस दौरान किसी जनसमुदाय की आकांक्षा के लिए कोई नीति ही दिखी। लेकिन फिर भी ये साल पूरी तरह नरेंद्र मोदी के ही नाम रहा जिसने उन्हें राजनीतिक तौर पर और मजबूत किया है।
3० मई 2०19 को अपना कार्यकाल शुरू करते ही नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख वादों को पूरा करने में लगे रहे जिनमें- जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-37० खत्म कर विशेष दर्ज़ा वापस लेना हो या धु्रवीकरण करने वाले नागरिकता संशोधन कानून को लाना हो, तीन तलाक कानून पारित कराना हो या अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट की स्थापना करने के लिए उनकी सरकार द्बारा प्रयास करना हो।
जबकि ये पूरा साल आर्थिक पहलू पर काफी खराब रहा है जिसने मोदी और उनके कैबिनेट के शासन की खोखली क्षमता और अर्थव्यवस्था पर कमजोर पकड़ को उजागर किया है। लेकिन इस बीच राजनीति केंद्र में बनी रही। इसका ये भी मतलब है कि विपक्ष के लिए कुछ भी आसान नहीं होगा और ‘मोदी ब्रांड’ को कमजोर करने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी होगी । 2०19-2० में भारतीय अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी जो पिछले 11 साल में सबसे निम्नतम स्तर होगा। इन सबके बावजूद मोदी सरकार अव्वल है और अव्वल ही रहेगी। आपदा को अवसर में बदलना नरेंद्र दामोदर दास मोदी को आता है।