नेपाल के 50 वर्षीय पत्रकार बलराम बनिया मंगलवार (11 अगस्त 2020) को मृत पाए गए थे। उनका शरीर मकवानापुर, सिसनेरी के मंडो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के पास बरामद किया गया था। लगभग 2 महीने पहले उन्होंने नेपाल के रुई गाँव पर चीन के कब्ज़े की ख़बर तैयार की थी। ख़बरों के मुताबिक़ बलराम सोमवार तक अपने परिवार से संपर्क में थे।
बलराम ने अंतिम बातचीत अपने दफ्तर में कॉन्ग्रेस नेता राम चंद्र पौडेल के संबंध में की थी। उनका शरीर बागमती नदी में बालखु पुल के पास तैरता हुआ पाया गया था। जिसके बाद उन्हें हेतौडा अस्पताल लेकर जाया गया था। उनका शव एक दिन पहले यानी मंगलवार को ही बरामद कर लिया गया था।
फिर भी पुलिस ने शव की पहचान करने के लिए 1 दिन का समय लगाया। बलराम बनिया के परिवार में उनकी पत्नी और एक बेटा-बेटी भी मौजूद हैं। वह ‘कान्तिपुर डेली’ नाम के अखबार में काम करते थे। बलराम ने राजनीति, संसद, नौकरशाही, गवर्नेंस, ऊर्जा, हाइड्रो पावर जैसे अहम मुद्दों पर पत्रकारिता की।
ख़बरों के मुताबिक़ चीन ने रुई नामक गाँव पर कब्ज़ा किया है। यह नेपाल के गोरखा जिले में स्थित है। इस ख़बर को सबसे पहले बलराम बनिया ही सामने लेकर आए थे। जबकि तिब्बत और चीन दोनों इस गाँव को लेकर दावे करते हैं। चुम्बुल नगरपालिका वार्ड संख्या 1 के राष्ट्रपति बीर बहादुर लामा ने इस बात की पुष्टि की थी। गाँव के लोगों ने नेपाल सरकार के साथ ज़मीन का रेवेन्यू साझा किया था।
अभी तक सामने आई ख़बरों के मुताबिक़ फेडरेशन ऑफ़ नेपाली जर्नलिस्ट, फ्रीडम फोरम और नेपाल प्रेस यूनियन ने पत्रकार बलराम की हत्या पर जाँच की माँग उठाई है। समूह के प्रतिनिधियों का कहना है कि वह चाहते हैं पत्रकार की रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई मृत्यु की जाँच की जाए। नेपाल प्रेस यूनियन का इस मुद्दे पर यह भी कहना था कि बलराम के शरीर पर कई घाव के निशान थे। नेपाल प्रेस यूनियन के सचिव अजय बाबू शुवाकोटी ने इस मुद्दे पर कहा कि वह जिस तरह के विषय उठाते थे। उसका इस मृत्यु से संबंध ज़रूर हो सकता है।
बलराम बनिया के साथियों का कहना है कि वह बेहद ईमानदार,सहज और मृदुभाषी थे। इसके अलावा पत्रकारिता के सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे। वह फेडरेशन ऑफ़ नेपाली जर्नलिस्ट के सचिव भी रह चुके हैं। कान्तिपुर के संपादक का कहना था कि बलराम अपने काम को लेकर जुझारू स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें नेपाल के तंत्र और राजनीति की अच्छी भली समझ थी। इसके अलावा उन्होंने कहा, “मुझे हमेशा बलराम की ज़रूरत महसूस होती थी जब किसी अहम मुद्दे पर सवाल तैयार करने होते थे। उसके जैसा काम करने वाला बहुत मुश्किल से मिलता है।”