राजेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तल्ख रवैये से पूरा प्रदेश ही नहीं देश भी भली-भांति वाकिफ है। ऐसे में यह उम्मीद की रही थी कि योगी आदित्यनाथ के शासन में भले ही काम न हो लेकिन भ्रष्टाचार की गुंजाईश नहीं रहेगी। शपथ लेने के बाद ही जिस तरह गोमती रिवर फ्रंट, सड़क निर्माण समेत कई मामलों की ताबड़तोड़ छापेमारी हुई उससे भी उनकी यही छवि निखर रही थी। लेकिन कोरोना के आपदा काल में उप्र में भ्रष्टाचार के जिस तरह अवसर तलाश्ो गये उससे साफ हो गया कि जो घोटाला हुआ है वह एक दो करोड़ नहीं बल्कि कई हजार करोड़ रुपये के जिन्न के रूप में सामने आने वाला है। हालांकि जांच एसआईटी को जरूर सौंपी गयी है। लेकिन अभी तक इस संबंध में एक भी प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकी है।
देखा जाए तो इस घोटाले को जिस तरह से अंजाम दिया गया उसमें सरकारी अधिकारियों की भूमिका भी कम नहीं है। यह घोटाला ऐसे समय किया गया जब पूरे प्रदेश में लोग एक-एक पैसे के लिए तरस रहे थ्ो। कोरोना काल में जब सबकी निगाहें एक-दूसरे की मदद के लिए उठ खड़े हुए थ्ो तब सरकारी अधिकारियों, नेताओं, प्रधानों ने मिलकर करोड़ों रुपये की लूट की। शायद यह उत्तर प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा। जिसमें कोरोना किट की खरीद की गयी। महामारी के बीच यूपी में कोरोना किट घोटाला, तय कीमत से पांच गुना ज्यादा दामों पर खरीदने के आरोप लगे हैं। तकरीबन 11०० वार्ड और 58 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में इस किट की खरीद मनमाने दामों पर तय की गयी। आखिर खरीद मनमाने दामों पर क्यों नहीं हुई इसके पीछे भी अधिकारी और सरकार ही जिम्मेदार हैं क्योंकि फरवरी से ही जब कोरोना ने पांव पसार लिये थ्ो और मार्च-अप्रैल आते-आते इसने हजारोें लोगों को चपेट में ले लिया था। तब जब उस समय सरकार बाहर के मजदूरों को यूपी में बसें लगाकर लाने व अनाज बांटने का कार्यक्रम कर रही थी। तभी मनमाने दामों पर उप्र में हर वार्ड, हर गांव में मनमाने दामों पर कोरेाना किट, पल्स ऑक्सीमीटर, बुखार नापने वाली मशीन आदि की खरीद की जा रही थी। क्योंकि सरकार ने ही ऐसा करने का मौका मुहैया कराया था। 24 जुलाई तक सरकार के पंचायती राज विभाग ने इस संबंध में कोई आदेश ही जारी नहीं किया था कि किस रेट, ब्रांड और मेक की मशीनों की खरीद की जानी है। इस बीमारी के घर-घर सर्वे के लिए सरकार ने कोरोना के सर्वे के लिए दो पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मल स्कैनर खरीदने के आदेश दिए, उसे ज़िलों में तय कीमत से पांच-पांच गुना ज्यादा दाम पर खरीद लिया गया।
कोरोनावायरस जैसी महामारी की मुसीबत के बीच उत्तर प्रदेश में अब कोविड किट घोटाला हो गया है। जब 45 लाख से ज्यादा लोग इसके शिकार हो गए हैं, 76,००० से ज्यादा मौत के मुंह में समा गए और करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई, करोड़ों के काम बंद हो गए, इस बीमारी के घर-घर सर्वे के लिए सरकार ने कोरोना के सर्वे के लिए दो पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मल स्कैनर खरीदने के आदेश दिए, उसे ज़िलों में तय कीमत से पांच-पांच गुना ज्यादा दाम पर खरीद लिया गया। ये आरोप खुद बीजेपी के विधायक और पदाधिकारी लगा रहे हैं। घोटाले में दो अफसर सस्पेंड किए गए हैं और सरकार ने अप इसपर SIT की जांच बिठा दी है.
ऑनलाइन खरीदने पर जो ऑक्सीमीटर की कीमत 8०० रुपये, थर्मामीटर की कीमत 18०० रुपए है तो 995० रुपये में कोविड सर्वे किट क्यों खरीदा? किसने कितनी दलाली खाई? कोरोना के नाम पर भ्रष्ट्राचार श्मशान में दलाली के समान है। यूपी के 65 जिलों में यह लूट संगठित तरीके से की गयी। कहीं-कहीं तो ये किड 2० हजार रुपये तक की खरीदी गयी। ये घोटाला क्योंकि एक-दो जिलों तक सीमित नहीं है। कोरोना की महामारी के दौरान, कोरोना के संकट के दौरान ये घोटाला कहीं पंचायत तक या कहीं एक ब्लॉक तक सीमित नहीं है बल्कि ये घोटाला योगी सरकार ने पूरे उत्तर प्रदेश के अंदर किया है।
बता दें कि यूपी में घर-घर, गांव-गांव में कोरोना के सर्वे हो रहे हैं। स्वास्थ्य कर्मचारी थर्मल स्कैनर से बुखार और पल्स ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल और नब्ज़ चेक कर रहे हैं, ताकि कोरोना के लक्षण होने पर इलाज हो सके. यूपी में एक लाख से ज्यादा गांव हैं। अगर घोटाला ज्यादा हुआ तो यह काफी बड़ा भी हो सकता है।
सोनभद्र में बिचपाई गांव के प्रधान विमलेश कुमार पटेल कहते हैं कि ये उपकरण उन्हें खरीदेने थे लेकिन जिला पंचायत के राजअधिकारी ने 637 गांवों के लिए सारे उपकरण खुद सस्ते दामों पर खरीद लिए, अब उन्हें कई गुना महंगे दामों पर खरीदने का दबाव डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘इसमें किस तरह का भ्रष्टाचार समझ में आ रहा है? इसमें भ्रष्टाचार यह समझ में आ रहा है कि जब ये 25,००० से 3,००० मार्केट में है और ये 6,००० ले रहे हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि 637 ग्राम पंचायत हैं यहां पर, अगर उसका दाम देख लिया जाए तो कम से कम दो करोड़ रुपए के आस-पास भ्रष्टाचार में जा रहे हैं।
सवाल यह है कि आखिर 24 जुलाई तक सरकार ने क्यों इस किट के दाम नहीं निर्धारित किये जिससे जिलाधिकारी से लेकर प्रधान तक को लूट करने का मौका मिला। सरिता प्रवाह को जो जानकारी मिली उसके मुताबिक जिस कोरोना किट का दाम सरकार ने 2,8०० रुपये तय किए उसे- सुल्तानपुर में 9,95० रुपए में, प्रतापगढ़ में 12,5०० रुपए में, बिजनौर में 13,5०० रुपए में, झांसी में 8,5०० रुपए में, उन्नाव में 6,००० रुपए में, सहारनपुर में 4,19० रुपए में, गाज़ीपुर में 5,8०० रुपए में खरीदा गया। भले ही मुख्यमंत्री की इसमे कोई भूमिका न हो लेकिन जिस तरह से इस लूट को कोरोना के आपदा काल में जब पूरा प्रदेश एक-एक रोटी के लिए तरस रहा था। एक-एक पाई के लिए संघर्ष कर रहा था। ऐसे समय जिस तरह का घोटाला अंजाम दिया गया उसके लिए निश्चित रूप स्ो मुख्यमंत्री को जवाब देना ही पड़ेगा।