नई दिल्ली। बिहार के बाद अब बीजेपी ने मिशन बंगाल लॉन्च कर दिया है. मिशन बंगाल की सफलता के लिए बीजेपी को ममता बनर्जी की चुनौती तो पार करनी ही पड़ेगी, साथ ही लेफ्ट को भी साइड लगाना पड़ेगा. जिसके लिए बीजेपी ने लेफ्ट की जड़ें खोदनी शुरू कर दी हैं. इसकी शुरुआत बीजेपी ने लेफ्ट के गढ़ माने जाने वाले जेएनयू के कैंपस से की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को वामपंथी राजनीति की नर्सरी समझे जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कैंपस में स्वामी विवेकानंद की आदमकद मूर्ति का अनावरण किया. ये वही मूर्ति है जो पिछले करीब दो वर्षों से कपड़े में लिपटी हुई थी और लेफ्ट के आंखों की किरकिरी बनी हुई थी.
लेफ्ट समर्थक, जेएनयू में लगी इस मूर्ति का विरोध करते आए हैं. पिछले साल तो लेफ्ट छात्र संगठनों पर इस मूर्ति से छेड़छाड़ करने और मूर्ति के चबूतरे पर विवादास्पद शब्द लिखने के भी आरोप लगे थे. दरअसल स्वामी विवेकानंद की विचारधारा के बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के जितने नजदीक हैं. वामपंथी उससे उतने ही दूर हैं.
ऐसे में पीएम मोदी का पहली बार जेएनयू के किसी कार्यक्रम में शामिल होना और स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का अनावरण करना कोई संयोग नहीं है. भले ही पीएम मोदी ने खुलकर लेफ्ट संगठनों का नाम नहीं लिया लेकिन उनके विचार वामपंथी विचारधारा पर सीधा अटैक कर रहे थे.
पीएम मोदी के हाथों जेएनयू के कैंपस में स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा का अनावरण जेएनयू में लेफ्ट का कद घटाने की सोची समझी रणनीति है, जिसको लेकर ABVP पिछले 15 वर्षों से प्रयासरत थी. इसकी मांग पहली बार वर्ष 2005 में उठी थी जब वहां जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा लगाई गई थी. लेकिन ABVP की इस मांग पर पहली बार गौर वर्ष 2016 में तब किया गया, जब प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार जेएनयू के वीसी बने. ये प्रतिमा तो वर्ष 2018 में बनकर तैयार हो गई, लेकिन दो साल तक अनावरण का इंतजार करती रही.
लेफ्ट छात्र संगठन इस मूर्ति निर्माण को लेकर जेएनयू प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाते रहे हैं. जेएनयू प्रशासन पर आरोप लग चुका है कि लाइब्रेरी के लिए आए फंड को इस मूर्ति में लगा दिया गया. हालांकि जेएनयू प्रशासन सफाई देता रहा है कि मूर्ति का निर्माण, जेएनयू के पूर्व छात्रों के पैसों से हुआ है.
इस मूर्ति को लेकर पिछले वर्ष नवंबर में एबीवीपी और लेफ्ट छात्र संगठन आमने-सामने आ गए थे. जब कपड़े से ढंकी प्रतिमा के चबूतरे पर कुछ अपशब्द लिखे मिले. एबीवीपी ने इसे लेफ्ट की साजिश बताया था. आज पीएम मोदी ने बातों-बातों में लेफ्ट को राष्ट्रहित से जुड़ा वैचारिक संदेश दिया.
एक तीर से दो निशाने!
दरअसल इसके जरिये बीजेपी, एक तीर से दो जगहों पर लेफ्ट का शिकार करना चाहती है. एक तो जेएनयू, जो लेफ्ट का गढ़ है, जिसकी विचारधारा. स्वामी विवेकानंद की शिक्षओं से मेल नहीं खाती है. और दूसरा पश्चिम बंगाल यहां होने वाले विधानसभा चुनाव पर बीजेपी की नजर है और स्वामी विवेकानंद बंगाली अस्मिता के प्रतीक हैं. पीएम मोदी अकसर स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं और उपदेशों का जिक्र करते रहे हैं. लेकिन जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण करना बीजेपी और संघ दोनों के लिए बहुत मायने रखता है. संघ, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अपने विचारों के लिए स्वामी विवेकांनद को मार्गदर्शक बताता है और अब बीजेपी ने स्वामी विवेकानंद को मार्गदर्शक बनाकर जेएनयू में लेफ्ट को साइड लगाने का रास्ता पकड़ा है.
लेफ्ट के दो ही गढ़
कहा जाता है कि भारत में इस वक्त वामपंथ यानी लेफ्ट के दो ही गढ़ हैं. एक केरल और दूसरा जेएनयू जिसपर बीजेपी ने अपना कब्जा जमाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. दरअसल वर्ष 1969 में जेएनयू की स्थापना से लेकर अबतक जेएनयू पर वामंपथ का बोल-बाला रहा हैऔर वामपंथी जेएनयू को अपना गढ़ मानते हैं. लेकिन 2014 में मोदी सरकार आने के बाद जेएनयू में वामपंथी विचारधारा को धक्का लगा है. जिसकी वजह से कई बार लेफ्ट और एबीवीपी की वैचारिक लड़ाई सड़कों पर आई है.
जेएनयू का विवादों से नाता!
2014 से पहले भी जेएनयू का इतिहास हिंसा और वामपंथियों द्वारा देश विरोधी घटनाओं से भरा हुआ है. मसलन, साल 1983 में जेएनयू कैंपस में वामपंथी छात्रों की हिंसा के चलते एक वर्ष के लिए यूनिवर्सिटी को बंद करना पड़ा था. साल 2000 में जेएनयू में वामपंथी छात्रों द्वारा दो भारतीय सैनिकों पीट-पीटकर अधमरा कर देने की घटना सामने आई थी. जिसका जिक्र उस वक्त संसद में भी हुआ था.
इसके अलावा वर्ष 2010 में जब दंतेवाडा में सीआरपीएफ के 76 जवान माओवादी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए. तब जेएनयू के गोदावरी ढाबे पर वामपंथी गुटों ने कथित तौर पर जश्न मनाया था. वर्ष 2013 में जेएनयू में वामपंथी छात्रों ने महिषासुर पूजन दिवस मनाया था और देवी दुर्गा के लिए अपशब्द लिखकर पर्चे बांटे थे.