नई दिल्ली। खालिस्तानी और इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों की घुसपैठ। वामपंथी अतिवादी संगठनों की साजिश को लेकर आशंका। विपक्षी दलों की सियासी रोटियाँ। इन सबसे बढ़कर किसान आंदोलन में शामिल प्रमुख संगठन भारतीय किसान यूनियन (BKU) और उसके नेता राकेश टिकैत की कलाबाजियाँ। एक नहीं कई कारण हैं, नए कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर खड़े किए गए कथित किसान आंदोलन की मंशा पर संदेह होने के।
हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि जिन सुधारों को लेकर किसानों के अब तक के सबसे बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने 27 साल पहले आंदोलन किया था, आज उसी का विरोध हो रहा है। राकेश टिकैत इन्हीं महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं और बीकेयू से जुड़े फैसले लेते हैं। केंद्र सरकार से बातचीत करने वाले किसानों के कोर ग्रुप का भी वे हिस्सा हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि राकेश टिकैत सिर्फ पिता का कहे भूले हैं। वे अपनी कही बातों से भी अब पीछे हट रहे हैं। वे आज उन्हीं सुधारों का विरोध कर रहे हैं जिसकी इस साल जून में उन्होंने प्रशंसा की थी। इतना ही नहीं 2019 के आम चुनावों के वक्त जब कॉन्ग्रेस ने इन्हें अपने घोषणा पत्र में जगह दी थी, तब भी बीकेयू ने उसे सराहा था।
दरअसल, साल 2019 में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने अपने ट्विटर हैंडल से एक किसान घोषणा-पत्र जारी किया था। इस घोषणा-पत्र के साथ किसान यूनियन ने 4 ट्वीट किए थे। इनमें कहा गया था कि ये वो डॉक्यूमेंट हैं जिसमें उनकी परेशानी और उसके निदानों का विवरण है। उन्होंने कहा था कि कृषि में आजादी जरूरत है और हर राजनीतिक पार्टियों को इस सलाह को मानना चाहिए।
अगले ट्वीट में बीकेयू ने APMC एक्ट को खत्म करने की माँग करते हुए कहा था कि इससे किसानों को इंसाफ नहीं मिलता और इसके कारण व्यापार की आजादी, भविष्य में व्यापार करने की संभावनाओं पर भी रोक लगती है।
अगले ही ट्वीट में भारतीय किसान यूनियन ने अपने घोषणा-पत्र के जरिए इन सभी माँगों को रखते हुए कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी की प्रशंसा की थी। बीकेयू ने लिखा था, “इंडिया तभी खुशहाल होगा जब भारत अपनी आजादी का आनंद लेगा। गाँधी के 150वें जन्मदिवस पर ये घोषणा पत्र भारत की आजादी और न्याय के लिए है। हम खुश हैं कि कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी ने इसके कुछ अंश लिए हैं। देखते हैं भाजपा और नरेंद्र मोदी इसमें से क्या अपनाएगी।”
आगे इस ट्वीट में किसानों की बात करते हुए राजनीतिक पार्टियों पर भी सवाल उठाए गए थे कि अब समय है कि पार्टियाँ किसानों को देश का नागरिक मानें।
फिर भी बीकेयू नेता राकेश टिकैत का पाखंड समझ नहीं आया हो तो एक और प्रमाण देखिए। हिंदुस्तान अखबार में 4 जून 2020 को प्रकाशित इस खबर का स्क्रीनशॉट इस समय सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रहा है। राकेश टिकैत ने उस समय ‘एक मंडी’ के तोहफे को सराहते हुए सरकार के कदम का स्वागत किया था।
4 जून 2020 की खबर में टिकैत ने कहा था कि उनकी यूनियन इन माँगों पर वर्षों पहले से आवाज उठा रही थी और अब वह इस फैसले का स्वागत करते हैं। खबर में टिकैत के हवाले से आग्रह करते हुए बिचौलियों की गतिविधियों पर विशेष रूप से ध्यान देने की बात कही गई थी ताकि कहीं इन कानूनों के आने के बाद भी बिचौलिए सक्रिय होकर किसानों की फसल सस्ते दामों पर खरीद कर आगे बेचना न शुरू कर दें।
उल्लेखनीय है कि किसानों के लिए लाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ़ चल रहे इस आंदोलन में सिर्फ बीकेयू नेता राकेश टिकैत की दोहरी प्रवृत्ति सामने नहीं आई है, बल्कि कॉन्ग्रेस के फर्जी चेहरे का भी खुलासा हुआ है। साल 2019 में इसी कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में ऐलान किया था कि वह सरकार में आई तो सरकारी मंडी में फसल बेचने की अनिवार्यता को खत्म कर देगी।
ख़ास बात यह है कि तब भारतीय किसान यूनियन (BKU) ने भी कॉन्ग्रेस के इस कदम का स्वागत किया था। आज यही BKU इन कृषि सुधारों का विरोध कर रही है। इसका कारण क्या है? यह कैसी किसान पॉलिटिक्स है? यह बेहतर राकेश टिकैत ही बता सकते हैं, क्योंकि AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के भी BKU के साथ लिंक सामने आए हैं।