स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नवीनतम COVID-19 आँकड़ों के अनुसार, भारत में 2,92,518 सक्रिय मामलों में से अकेले केरल राज्य में 60,670 सक्रिय मामले हैं, जो कि महाराष्ट्र से भी ज्यादा है। महाराष्ट्र में वर्तमान में कोरोना वायरस के सक्रीय मामले 60,593हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW) ने रविवार को कहा कि देश में कुल सक्रिय मामलों में से 40 फीसदी केस केरल और महाराष्ट्र राज्यों में हैं।
COVID -19 महामारी के प्रबंधन में केरल राज्य का प्रदर्शन पिछले कुछ महीनों से फिर बिगड़ रहा है, और यह कोरोना वायरस संक्रमण के शीर्ष पाँच राज्यों में बना हुआ है और अब यह सक्रिय मामलों की अधिकतम संख्या में पहले स्थान पर है।
केरल सरकार द्वारा जारी COVID -19 मामलों की जानकारी के अनुसार, राज्य जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बेहतर कर रहा था, जिसके बाद से स्थिति बिगड़ने लगी। केरल में पहला मामला जनवरी, 2020 में दर्ज किया गया था। 10 सितंबर तक यह आँकड़ा 1,00,000 पार करते ही राज्य के लिए चुनौती बन गया। अक्टूबर माह में, राज्य कुल कोरोना वायरस मामलों के मामले में तीसरे स्थान पर था। 1,00,000 मामलों तक पहुँचने में केरल को जहाँ 6 महीने लगे, वहीं 10 सितंबर के बाद महज तीन महीने से भी कम समय में, राज्य में 6,00,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए।
वामपंथी मीडिया लगातार करती रही है केरल की प्रशंसा
केरल के ‘COVID-19 मॉडल’ की लगातार ही देशभर में सराहना की गई। वामपंथी मीडिया ने हर संभव तरीके से वामपंथी सत्ता वाली केरल सरकार की प्रशंसा की, जबकि उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों द्वारा इस बीमारी को रोकने के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्यों की अनदेखी की गई। यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जुलाई माह में केरल के COVID प्रबंधन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उस अवधि के दौरान, शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार इस बीमारी को रोकने के लिए संघर्षरत था और सबसे अधिक मामलों के साथ महाराष्ट्र अभी भी शीर्ष पाँच राज्यों में है।
केरल मॉडल और अंतरराष्ट्रीय मामला
केरल मॉडल की प्रशंसा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी जमकर की गई और कहा गया कि सभी देशों को केरल मॉडल से सीखना चाहिए –
यहाँ तक कि समाचार नेटवर्क ‘अलजज़ीरा’ ने भी केरल की तारीफों के पुल बाँधे और बताया कि वामपंथियों का केरल ‘कोरोना मॉडल’ किस तरह बन गया-
14 मई, 2020 को ब्रिटिश दैनिक समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने केरल के स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा को ‘रॉकस्टार’ कहा था –
शैलजा केके ने इस साल जून माह में संयुक्त राष्ट्र की बैठक में ‘केरल मॉडल’ भी प्रस्तुत किया। वास्तव में, विदेशी मीडिया से प्रशंसा प्राप्त करने के लिए, केरल की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा केके ने अन्य भारतीय राज्यों के बारे में बीबीसी के पास चुगली की। शैलजा ने दावा किया कि गोवा में कोई अस्पताल ही नहीं है।
कहाँ चूक गया केरल?
केरल में प्रवासी भारतीयों की बड़ी आबादी है। राज्य में पहला मामला 30 जनवरी को दर्ज किया गया था और 20 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के मामलों ने 7 लाख के आँकड़े को पार कर लिया था।
केरल राज्य ने शुरुआत में ही देशव्यापी बंद के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया था और प्रशासन ने हालातों प्रकोप पर काबू पा लिया। हालाँकि, जैसे-जैसे सख्ती में कमी आई और लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा होने लगी, दिशानिर्देशों की अनदेखी की जाने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई, और आँकड़े राज्य की छवि के विपरीत होते गए। यह ध्यान रखना होगा कि जब मई में केरल में मामलों की संख्या बढ़ रही थी, सीएम ने समुदाय विशेष के त्यौहार ईद के दौरान कोरोना के कारण जारी प्रतिबंधों को कम करने का फैसला किया था।
नवंबर माह में जब केरल राज्य से नए कोरोना मामले सबसे ज्यादा आ रहे थे, केरल के स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा कि जनसांख्यिकीय और महामारी विज्ञान इन आँकड़ों में उछाल के पीछे जिम्मेदार कारक थे। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में त्यौहारों और कई राजनीतिक प्रदर्शनों के कारण इन मामलों में उछाल आया। यही नहीं, उन्होंने अन्य राज्यों और विदेश से प्रवासियों की वापसी को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों के आँकड़ें मिलाकर कुल मामलों का 7% हैं जबकि महाराष्ट्र और केरल राज्यों में पूरे कोरोना मामलों के 40% केस मौजूद हैं। यहाँ पर यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अगर महाराष्ट्र और केरल की जनसंख्या को भी मिला दिया जाए, तब भी अकेले उत्तर प्रदेश की जनसंख्या इनसे अधिक ही है।