नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को हरी झंडी दे दी है. इस प्रोजेक्ट के तहत संसद की नई इमारत का निर्माण हो रहा है. इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर हुई थीं. कोर्ट ने पर्यावरण कमेटी की रिपोर्ट को भी नियमों को अनुरुप माना है. कोर्ट ने लैंड यूज चेंज करने के इल्जाम की वजह से सेंट्रल विस्टा की वैधता पर सवाल खड़े करने वाली याचिका को फिलहाल लंबित रखा है.
इस मसले पर जस्टिस एएम खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की तीन जजों की बेंच ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हम सेंट्रल विस्टा परियोजना को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों को बरकरार रखते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्माण कार्य शुरू करने के लिए धरोहर संरक्षण समिति की स्वीकृति आवश्यक है. कोर्ट ने हेरिटेज कमेटी से अनुमोदन लेने का निर्देश दिया है.
गौरतलब है कि पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद की आधारशिला रखी थी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे शिलान्यास करने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ गिराने या स्थानांतरित करने का काम ना हो. अब सुप्रीम कोर्ट लैंड यूज मामले में सुनवाई करेगा.
हर साल होगी एक हजार करोड़ रुपये की बचत: केंद्र
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 20 हजार करोड़ रुपये का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पैसे की बर्बादी नहीं है, बल्कि इससे धन की बचत होगी. इस प्रोजेक्ट से सालाना करीब एक हजार करोड़ रुपये की बचत होगी, जो फिलहाल दस इमारतों में चल रहे मंत्रालयों के किराये पर खर्च होते हैं. साथ ही इस प्रोजेक्ट से मंत्रालयों के बीच समन्वय में भी सुधार होगा.
नई संसद को लेकर सरकार ने दिए थे ये तर्क
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वर्तमान संसद भवन गंभीर आग की आशंका और जगह की भारी कमी का सामना कर रहा था. उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट के तहत हैरिटेज बिल्डिंग को संरक्षित किया जाएगा. मौजूदा संसद भवन 1927 में बना था जिसका उद्देश्य विधान परिषद के भवन का निर्माण था न कि दो सदन का था. उन्होंने कहा कि जब लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र आयोजित होता है, तो सदस्य प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठते हैं. इससे सदन की गरिमा कम होती है.
लैंड यूज बदलने को लेकर भी दाखिल है याचिका
केंद्र द्वारा विस्टा के पुनर्विकास योजना के बारे में भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. केंद्र की ये योजना 20 हजार करोड़ रुपये की है. 20 मार्च, 2020 को केंद्र सरकार ने संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी संरचनाओं द्वारा चिह्नित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में लगभग 86 एकड़ भूमि से संबंधित भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित किया था.