-करीमुद्दीनपुर गांव के युवा किसान ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री से प्रभावित होकर दो साल पूर्व त्याग दिया पारंपरिक खेती को
-आर्गेनिक पद्धति से कर रहे खेती, लाभ भिंडी भी लहलहाती है खेत में, खीरा बाजार से 10 महंगा
-खुद खेत से ही हर सब्जी व बीज उठा ले जाते किसान, कभी नहीं तलाशना पड़ता है बाजार
लखनऊ। अब कश्मीर में ही नहीं पूर्वी यूपी में भी केसर की खुशबू हवा के झोकों के साथ लोगों को अपनी तरफ खिंचने को मजबूर करेगी। कुछ नया करने की ठान चुके गाजीपुर जिले के एक युवा किसान ने इस वर्ष कश्मीरी केसर को प्रयोग के तौर पर लगाया है। पौध अपनी जवानी पर आ चुका है। उसमें अब फूल आने वाला है। सब ठीक रहा तो अगले वर्ष तक इसकी बड़े पैमाने पर खेती करने की तैयारी है। यही नहीं युवा किसान पंकज राय गांव में आर्गेनिक पद्धति से खीरा, ककड़ी आदि सबकी खेती करते हैं और दो साल से इस तरह की खेती कर रहे पंकज काफी खुशहाल हैं।
युवा किसान ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बार-बार किसानों की आय दोगुना करने की बात सुनकर प्रभावित हुआ और खुद के बल पर आगे बढ़ने की ठान ली। दो वर्ष पूर्व तक तो परंपरागत खेती ही करते रहे लेकिन उससे आजीविका से आगे कुछ नहीं बढ़ पाता था। नए ढंग से खेती करने का विचार आने पर पाली हाउस 25 सौ स्क्वायर में बनवाया। आर्गेनिक खेती के बारे में विचार कर उसकी ओर आगे बढ़ गया। इसके बाद सब्जियों के पौध भी पूरे क्षेत्र में देते हैं। लोग खेत से ही उठा ले जाते है।
पुलवामा से लाए हैं पौध
उन्होंने कहा कि केसर की खेती करने का विचार आने के बाद पुलवामा गया। वहां पर किसानों द्वारा की जा रही खेती के बारे में समझा और देखा। इसके बाद वहीं से चार सौ पौध ले आया। प्रति पौधा सौ रुपया के हिसाब से चार हजार रुपये में खरीदा था। इसे नवम्बर माह में वीड पर लगाया गया। अब पौधा तैयार हो चुका है। फूल आने वाले हैं। उन्होंने बताया कि पुलवामा में बताया गया है कि 20 फूल में 10 ग्राम केसर निकलने को बताया गया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष इसे प्रायोगिक तौर पर लगाया गया है। सब ठीक रहा तो अगले साल इसकी खेती को बढ़ाएंगे।
आर्गेनिक पद्धति से लगाया खीरा निकल रहा एक माह से
पंकज ने बताया कि आर्गेनिक पद्धति से ही खीरा भी लगाया है। जो एक महीने से निकल रहा है। यहां सामान्य खीरे की अपेक्षा दस रुपये किलो महंगा देते हैं। लोग खेत से ही लेकर चले जाते हैं। हमें बाजार जाने की जररूत नहीं पड़ती है। हम खुद ही यहां बाजार अपने हिसाब से बना लेते हैं। लोग यहीं से सबकुछ उठा ले जाते हैं। हटकर और वैज्ञानिक ढंग से आर्गेनिक खेती के लिए पंकज राय कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं। वे अपने खेत में स्टावेरी, लाल व पिला शिमला मिर्च भी लगाते हैं। शिमला मिर्च भी जब सबका खत्म हो जाता है तब पंकज राय का शिमला मिर्च निकलता है। गोभी, टमाटर आदि का भी आर्गेनिंक ढंग से ही खेती करते हैं।
पिछले वर्ष पहली बार मथुरा जिले के किसान ने लगाया था केसर, खूब हुआ फायदा
यह बता दें कि यूपी में पिछली वर्ष से पश्चिमी यूपी के मथुरा के फरह क्षेत्र के महुअन में किसान के कश्मीरी केशर की खेती की थी, जो अच्छी उपज हुई और काफी फायदा भी दिया लेकिन पूर्वी यूपी में कहीं भी केसर की खेती कभी नहीं हुई। यह एक अपने-आप में एक नये किस्म की खेती का नया प्रयोग है।
मीठे पानी की होती है जरूरत
जानकारों के अनुसार इसकी खेती के लिए मीठा पानी होना जरूरी है। एक बीघा में सिंचाई और निराई-गुढ़ाई से लेकर फसल घर लाने तक नब्बे रुपये की कीमत आ जाती है। इसकी सिंचाई पांच से छह बार करनी पड़ती है। एक बीघा में 15 से 17 किलो केसर होने की संभावना रहती है। सत्तर हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से यह बाजार में आसानी से बिक जाता है। केसर की देश में दवाओं से लेकर कई अन्य शारीरिक समस्याओं में प्रयोग किया जाता है। खाने के लिए मिठाई आदि में भी इसको प्रयोग किया जा रहा है।