नई दिल्ली। कृषि क़ानून का विरोध सिर्फ झूठ पर आधारित है, यह बात एक बार फिर से साबित हो गया है। ऐसा ही एक झूठा दावा करते हुए आंदोलनजीवी योगेन्द्र यादव ने कहा कि कृषि सुधार क़ानूनों से किसानों का नुकसान हुआ है।
किसान संगठन और विपक्षी दल के नेता लगातार दावा कर रहे थे कि कृषि सुधार क़ानूनों का एपीएमसी पर प्रभाव पड़ेगा। इस दावे को सही साबित करने के लिए इच्छाधारी आंदोलनकारी योगेन्द्र यादव ने एक दस्तावेज़ पेश किया, जिसमें मध्य प्रदेश स्थित तमाम मंडियों से इकट्ठा किए गए टैक्स की जानकारी थी।
दस्तावेज़ों के मुताबिक प्रदेश की 7 मंडियों से लिया गया शुल्क पिछले साल जनवरी महीने की तुलना में इस साल जनवरी महीने से काफी कम था। योगेन्द्र यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जानना चाहते हैं कि कैसे नए कृषि क़ानून एपीएमसी को प्रभावित करते हैं।
जनवरी 2020 में कुल 88 करोड़ रुपए मंडी शुल्क इकट्ठा किया गया था लेकिन जनवरी 2021 में यह राशि सिर्फ 21 करोड़ रुपए थी। इन आँकड़ों का उल्लेख करते हुए इच्छाधारी आंदोलनकारी ने पूछा, “क्या इसे नकारात्मक प्रभाव माना जाएगा मोदी जी?”
बेशक दस्तावेज़ में दिखाया गया था कि मध्य प्रदेश में मंडी से मिलने वाले शुल्क में 66.75 फ़ीसदी की गिरावट आई थी लेकिन इसका कृषि क़ानूनों से कोई लेना देना नहीं था। क्योंकि इन्होंने जिस तरह का दावा किया है कि नए कृषि क़ानूनों का खेती की उपज पर प्रभाव पड़ रहा है, ऐसा सम्भव नहीं है। वो इसलिए क्योंकि भले कृषि क़ानून पिछले साल सितंबर के दौरान संसद में पारित किए गए लेकिन इन्हें लागू किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
12 जनवरी 2021 को देश की सबसे बड़ी अदालत ने कृषि क़ानून के विरोध को देखते हुए इस पर रोक लगाने का फैसला सुनाया था। अदालत ने इस मुद्दे पर हल निकालने के लिए एक समिति का गठन भी किया है। इसका ये मतलब हुआ कि अगर कृषि क़ानून लागू किए भी गए होते तो 12 जनवरी से ही उनके लागू किए जाने पर रोक लगा दी गई थी। इस जानकारी के आधार पर ये बात भी साफ़ हो जाती है कि मंडी के शुल्क में आई गिरावट की वजह कृषि सुधार क़ानून नहीं हो सकती है।
इसकी एक और वजह ये हो सकती है कि राज्य सरकार ने पिछले साल मंडी शुल्क घटा दिया था। अक्टूबर 2020 में मध्य प्रदेश सरकार ने शुल्क 1.70 फ़ीसदी से 0.50 फ़ीसदी कर दिया था। यानी लगभग 70 फ़ीसदी की कटौती, जो कि इकट्ठा किए गए शुल्क से मेल खाता है, जिसमें जनवरी के दौरान 67 फ़ीसदी की गिरावट आई थी। व्यापारियों की हड़ताल के बाद प्रदेश सरकार ने यह फैसला लिया था, उनका कहना था कि शुल्क बहुत ज़्यादा है।
मंडी शुल्क में कटौती, किसानों के लिए अच्छा या बुरा?
योगेन्द्र यादव द्वारा किया गया मंडी शुल्क का ज़िक्र दिखाता है कि उन्हें कृषि क्षेत्र के मुद्दों पर कोई जानकारी नहीं है। इसके बाद तमाम लोगों ने ट्विटर पर उन्हें बताया कि अगर टैक्स कम इकट्ठा हुआ है इसका मतलब यह हुआ कि किसानों को कम टैक्स देना पड़ रहा है। अगर इन तथ्यों को किनारे रखते हुए हम यह मान भी लें कि इकट्ठा किए गए शुल्क में कमी कृषि क़ानूनों की वजह से आई है।
ऐसे में ‘किसान’ नेताओं को कृषि क़ानूनों की तारीफ़ करनी चाहिए न कि इसकी आलोचना। क्योंकि इसके मायने यह हुए कि किसान एपीएमसी से निजी ख़रीददारों की तरफ जा रहे हैं जहाँ कोई मंडी शुल्क ही नहीं है। एपीएमसी मंडियों का विकल्प अभी भी मौजूद है, लेकिन किसान मंडियों की जगह निजी ख़रीददारों और निजी बाज़ारों की तरफ जा रहे हैं। तो वह टैक्स का भुगतान नहीं करके अधिक कीमत पाने का विकल्प चुन रहे हैं।
NDTV ने भी फैलाया झूठ
इच्छाधारी आंदोलनजीवी योगेन्द्र यादव की तरह ही NDTV ने भी मध्य प्रदेश में मंडी शुल्क में आई कमी को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की और इसके लिए नए कृषि सुधार क़ानूनों को ज़िम्मेदार ठहराया। रिपोर्ट में इस तथ्य को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया है, सुप्रीम कोर्ट ने इन क़ानूनों को लागू किए जाने पर रोक लगाई है।
एनडीटीवी ने रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र नहीं किया कि मध्य प्रदेश सरकार ने मंडी के रेट में कटौती की है, जबकि वो खुद इस बारे में पहले रिपोर्ट प्रकाशित कर चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक़ किसान एपीएमसी मंडी जाने की जगह अन्य विक्रेताओं के पास जा रहे हैं। यानी किसानों को अन्य जगहों पर बेहतर दाम मिल रहे हैं इसलिए वह मंडियों की तरफ नहीं जा रहे हैं। फिर भी रिपोर्ट झूठे दावे पेश करने से पीछे नहीं हटती है और निराधार दावे करती है।