मुसलमान और यहूदी की साझा सरकार

के. विक्रम राव
तनिक कल्पना कीजिये कि काशी और मथुरा में औरंगजेबी मस्जिदों को हटाकर पंथनिरपेक्षता हेतु शिवाला और कृष्ण मंदिर बनावाने की मुहिम कांग्रेस की सोनिया गांधी चलाये!! बहुसंख्यकों की आस्था का इस्लामी आक्रामकों द्वारा ऐतिहासिक दमन कांग्रेस अध्यक्ष खत्म करायें। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पुरोधा जनाब जफरियाब जिलानी साहब सेक्युलर सिद्धांतों के हित में मुस्लमानों के लिये जनसंख्या नियंत्रण कानून बनवाने, तीन तलाक और शरियत के अन्य प्रावधानों के स्थान पर समान संहिता की मांग खुद बुलंद करने लगे तो?
कुछ ऐसा ही अभियान कल से यहूदी राष्ट्र इस्राइल में ”संयुक्त अरब सूची” के 48—वर्षीय नेता जनाब मोहम्मद मंसूर अब्बास ने चलाने के संकेत दिये हैं। इतिहास में पहली बार इस कट्टर अरब मुस्लिम नेता ने अपने तीन निर्वाचित सांसदों के साथ अन्य यहूदी—पार्टियों से गले लगकर मिलीजुली सरकार बना ली है। पुराने दुश्मन बेंजामिन नेतनयाहू को 12 वर्षों बाद अपदस्थ करना ही इस वक्त इन अरब मुस्लिमों के रहनुमा का एकमात्र लक्ष्य है। इस्लामी दस्तूरों से भी कहीं ऊपर यह मकसद है। उधर फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) के अध्यक्ष तथा फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास हैं। अब इन दोनों अब्बासों में इस्राइली—अरब नेता मन्सूर और असली फिलिस्तीनी नेता महमूद में फर्क धुंधला सा पड़ गया है। मंसूर माने फतेह तथा महमूद मतलब मुबारक। किन्तु यहां न तो कोई फतह मिली, न कुछ मुबारक ही हुआ। इन दोनों अब्बासों के दृष्टिकोण ही भिन्न थे। पर लक्ष्य अब बदल गयें हैं।
इस्राइल के मंसूर अब्बास अब यहूदियों के यार बन गये है। होशियार हो गये। इस्राइल में कोई दलबदलू नियम तो बना नहीं। इस्लामी आस्था तजकर काफिरों से आशिकी पर कोई पाबंदी भी आयद नहीं है। हालांकि महमूद अब्बास अपनी जवानी में इस्राइल को नेस्तनाबूत कर पूरे वतन को फिलिस्तीन राष्ट्र बनाने के लिये मुजाहिद बना रहे थे। अपनी पार्टी का मकसद बदलने की वजह भी उन्होंने बतायी है। उनकी सरकार में शामिल होते ही अरब मुस्लमानों पर राजकोष से अधिक धन खर्च किया जायेगा। वे स्वयं यहूदी शासन में रहकर अपने स्वधर्मियों के उत्कर्ष में गति लायेंगे। यहूदी काबीना में उपमंत्री के पद से जनाब मंसूर अब्बास बजट में बदलाव लायेंगे। इस्राइली—इस्लामिस्टों के लिये ज्यादा सुख—सुविधा दिलवायेंगे। हालांकि मियां मंसूर की संयुक्त अरब लिस्ट में केवल चार सांसद हैं, पर नये यहूदी प्रधानमंत्री नफ्तालीन बैनेट को एक—एक वोट चाहिये। संसद (नेस्सेट) में उन्हें केवल साठ वोट मिले थे। विरोध में 59 मत पड़े थे। एक नेक मुस्लिम अरब ने विरोध में वोट नहीं डाला। उसे लगा कि यह भ्रष्टाचार होगा। अत: वह तटस्थ हो गया। इतना तो अनुमान स्पष्ट है कि बैनेट की यहूदी सरकार की अवधि कितनी होगी? यह बैनेट साहब पहले प्रधानमंत्री है जो यहूदी दुपल्ली जालीदार टोपी (किप्पाह) खुले आम धारण करेंगे। यह टोपी कट्टर यहूदीपन की पहचान है। वे अतिराष्ट्रवादी यहूदी यामीना पार्टी के सरबराह है, जो ईरान का खात्मा चाहते है।
आज के इस्राइल का राजनीतिक नजारा भारत के लिये अनजाना नहीं है। लोकसभा में भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक वोट से सोनिया—कांग्रेस ने गिरायी थी (17 अप्रैल 1999)। उड़ीशा के मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग ने भुवनेश्वर विधानसभा में वोट डाला था। तब तक सांसद के रुप वे लोकसभा में कांग्रेस सदस्य के नाते सोनिया गांधी की देखरेख में उन्होंने विश्वास प्रस्ताव के मतदान में भाग लिया। यह अवैध था। अनैतिक तो था ही। पर सोनिया गांधी को तो सत्ता पानी थी। सिद्धांत को धता बता दिया। इस्राइल में हूबहू ऐसा ही यहूदी बहुमत कर रहा है।
मगर मसला यहां ज्यादा गंभीर है। निष्ठुर और क्रूर आतंकवादी यासर अराफात (मोहम्मद अब्दुल रहमान जाइफ उल कुदवा अल—हुसैनी) दशकों तक भारतीय करदाताओं की राशि हथियाकर भूमंडल में यहूदियों की हत्या, खूरेंजी, डकैती और हाईजैक कराता रहा। इंदिरा गांधी ने उसे एयर इंडिया का जहाज दे दिया था, जिसे वह निजी टैक्सी की तरह लेकर सारी दुनिया घूमता था। क्या विडंबना है कि इसी आराफत का चेला और हमसफर मंसूर अब्बास अब यहूदियों की गोद में बैठ गया है।
कैसा मंजर है कि चांद—सितारे का हरा परचम लहरानेवाला अब्बास मंसूर अब ”स्टार आफ डेविड” (षडाकार श्वेत—आसमानी पताका) को लहरा रहा है : (देखें चित्र)। अरब मुसलमानों को कांग्रेस सरकार पचास साल तक खुश करती रही क्योंकि वह मानती थी कि भारत में अरबों के सहधर्मीजन अपनी समर्थक पार्टी की सरकार बनवाते रहेंगे। यही होता भी रहा। भारत विदेश नीति को अल्पसंख्यक वोटर निर्देशित करते रहे जबकि कश्मीर को सभी 56 मुस्लिम राष्ट्र इस्लामी पाकिस्तान का भूभाग मानते हैं। अब इन अल्पसंख्यकों को समझना पड़ेगा कि उनके भाई—बहन नील नदी के पूर्व में संगम तट पर बसते है। वे हिन्दू है। गंगा—जमुनी परंपरा वाले है।