प्रधानमंत्री क्यों चुप रहे
सीबीआई की साख की चौराहे पर हुई सरेआम नीलामी कांग्रेस के ‘मैनेजमेंट’ और भाजपा के ‘मिस-मैनेजमेंट’ का परिणाम है. खुद को संतरी बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाकारा बने बैठे रह गए. भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने वाली देश की इस अकेली केंद्रीय खुफिया एजेंसी की प्रासंगिकता और उसके औचित्य को नष्ट करने की तैयारी पिछले कई वर्ष से चल रही थी. इस तैयारी में लगी कांग्रेस के साथ कुछ पुराने भाजपाई भी शामिल हो गए थे. लेकिन सब की अपनी वजहें थीं और बचाव की पेशबंदी थी. सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच जो कुछ हुआ, उसमें ये दोनों अधिकारी महज मुहरे थे.
इन दो मुहरों का इस्तेमाल किया गया और कांग्रेस को इसमें कामयाबी मिली. इन दो मुहरों को लड़ा कर सीबीआई की साख और उसके औचित्य को धराशाई करने में कांग्रेसियों और उनका साथ दे रहे भाजपाइयों को सफलता मिली. अब सीबीआई कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, अहमद पटेल या पूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी पर कोई कार्रवाई भी करे तो अब उसकी उतनी धार नहीं रह जाएगी. ये जो चार नेताओं के नाम लिए गए, वो सामने के चेहरे हैं, इनके पीछे एक लंबी कतार है उन घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों की, जो सीबीआई के शिकंजे में आने वाले थे, लेकिन अब कुछ दिनों के लिए राहत पा गए हैं.
कांग्रेस इस मनोविज्ञान में है कि 2019 के चुनाव में केंद्र में अगर कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग की सत्ता नहीं भी आई तो भाजपा विरोधी ताकतें मिल कर सरकार बनाएंगी और कांग्रेस की उसमें अहम भूमिका रहेगी. यही वजह है कि न केवल सीबीआई, बल्कि तमाम ऐसी जांच एजेंसियों और संवेदनशील महकमों के अधिकारियों को यह प्रलोभन दिया जाने लगा है कि सत्ता बदलते ही उन्हें अहम ओहदों पर बिठाया जाएगा. सीबीआई में मची रार का सार यही है.
पिछले साल जुलाई और सितम्बर के दो संस्करणों में ‘चौथी दुनिया’ ने मीट कारोबारी से हवाला कारोबारी और मनी-लॉन्ड्रिंग के सरगना बने मोइन कुरैशी और सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के अंतरसम्बन्ध की अंतरगाथा प्रकाशित की थी. उस समय ही यह संकेत मिल गया था कि सीबीआई का अंदरूनी ढांचा विस्फोट के दहाने पर खड़ा है, कभी भी धमाका हो सकता है और किला बिखर सकता है. लेकिन केंद्र की सत्ता पर बैठे भाजपाइयों को तो केवल भांड-गायन पसंद है. नव-सत्ता-स्वादू भाजपाई आलोचना पसंद नहीं करते और न आगाह करने वाली खबरें पढ़ते हैं.
अगर उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ कर लिया होता तो आज यह किरकिरी नहीं हुई होती और न केंद्र सरकार को हड़बड़ाहट में कोई बेवकूफाना कदम उठाने की जरूरत पड़ती. एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाने का निर्णय केंद्र सरकार का बेवकूफाना फैसला ही तो है. भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों में घिरे एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाने का फैसला, भाजपा सरकार की ईमानदारी और पारदर्शिता के दावों की असलियत बताता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक मंचों से चाहे जितने दृढ़ शब्दों का इस्तेमाल करें, उसे कार्यरूप में उतारने में वे कमजोर साबित होते रहे हैं. प्रधानमंत्री के अधीन विभागों में केंद्रीय खुफिया एजेंसी सबसे अहम है, लेकिन सीबीआई में ‘कांग्रेसजकता’ की घुसपैठ रोकने में वे नाकाम रहे और यह खुफिया एजेंसी पूरी तरह अराजक हो गई. आलोक वर्मा या राकेश अस्थाना तो एपी सिंह, रंजीत सिन्हा, अरुण कुमार या जावीद अहमद जैसे अधिकारियों के बाद के ‘प्रोडक्ट’ हैं. पहले ही कीटाणु-नाशक का छिड़काव हो जाता तो कीड़ों की अगली जमात पैदा ही नहीं होती. लेकिन मोदी चूक गए. सीबीआई को सड़ाने के लिए ये सारे अधिकारी जिम्मेदार हैं, जो कांग्रेस के इशारे पर अपने मौलिक काम की शातिराना अनदेखी और लीपापोती करते रहे.
इस वजह से केवल मनी लॉन्ड्रिंग ही नहीं, बल्कि टू-जी स्कैम, एयरसेल-मैक्सिस स्कैम, स्टर्लिंग-बायोटेक-संदेसारा स्कैम, अगस्टा-वेस्टलैंड स्कैम, नेशनल हेराल्ड स्कैम, होटल लक्ष्मी विलास पैलेस बिक्री स्कैम समेत कई अहम मामले अंदरूनी अराजकता में फंसे रह गए. दूसरी तरफ सीबीआई भाजपा के इशारे पर कभी मायावती के भाई को पूछताछ के बहाने दो-दो दिन तक दफ्तर में बिठा कर दबाव बनाती रही तो कभी अलग-अलग घोटालों के नाम पर लालू-परिवार को हड़काती रही. इस तरह के राजनीति-प्रेरित आचरणों के कारण ही तीन मुख्य केंद्रीय खुफिया एजेंसियों में तनाव बढ़ा, मारपीट तक हुई और परस्पर वैमनस्यता बढ़ी. सीबीआई और आईबी का बैर सड़क तक आ गया. राजनीति और भ्रष्टाचार ने इन केंद्रीय एजेंसियों की साख का बंटाधार कर दिया.
केंद्रीय खुफिया एजेंसी से अंतरसम्बन्धित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर जैसे विभागों को भी सियासी-दीमकों ने खाया. करनैल सिंह और राजेश्वर सिंह जैसे कई विवादास्पद अधिकारियों ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ‘शोहरत’ चारों दिशाओं में फैलाई. यह सब जानते समझते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई रोकथाम नहीं की, केवल मंचों से बेहतर ‘गवर्नेंस’ पर भाषण देते रह गए.
सीबीआई की मौजूदा छीछालेदर मनी-लॉन्ड्रिंग सरगना मोइन अख्तर कुरैशी के कंधे पर रख कर की गई, इसलिए बात कुरैशी से ही शुरू करते हैं. असलियत यह है कि इस प्रकरण के केंद्र में कांग्रेस नेताओं की घबराहट है. मोइन कुरैशी के मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला धंधे की चपेट में यूपीए शासनकाल के दो मंत्री सीधे तौर पर फंस रहे हैं. आयकर विभाग ने इन नेताओं और कुरैशी के साथ बड़ी धनराशि के लेनदेन के लिंक पकड़े हैं. इन दोनों मंत्रियों के हवाला रैकेट में शामिल होने के सबूत मिले हैं. यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए 2-जी स्कैम में फंसी एक बड़ी कंपनी से ली गई 1,500 करोड़ रुपए की रिश्वत की रकम मोइन कुरैशी ने ही हवाला के जरिए बाहर भेजी थी.
पैसे का लेनदेन हांगकांग में हुआ था. छानबीन में यह बात भी सामने आई है कि मोइन कुरैशी ने हवाला के काम में केंद्रीय खुफिया एजेंसी के अधिकारी के रिश्तेदारों के हांगकांग के बैंक अकाउंट्स का भी इस्तेमाल किया था. इन दो पूर्व मंत्रियों के नाम आप खबर में आगे पाएंगे. कई और पूर्व मंत्रियों के नाम सामने आने की उम्मीद थी, लेकिन फिलहाल यह धुंधला गया है. यह आधिकारिक तौर पर पुष्ट हो चुका है कि मोइन कुरैशी शीर्ष सत्ता गलियारे में दलाली का नेटवर्क फैला कर मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला का कारोबार चमका रहा था. इस प्रकरण पर रायता फैलाने की सुनियोजित योजना के तहत मोइन कुरैशी के खास सतीश बाबू सना के जरिए सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को करोड़ों रुपए घूस दिए जाने का आरोप लगाया गया. बौखलाए अस्थाना ने सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सतीश सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया.
सतीश सना पर कुरैशी के साथ मिल कर मनी लॉन्ड्रिंग का धंधा करने और नेताओं-अफसरों को रिश्वत खिलाने के आरोप हैं. मोइन कुरैशी के सीबीआई के पूर्व निदेशक एपी सिंह और रंजीत सिन्हा से गहरे भ्रष्टाचारी-ताल्लुकात पहले उजागर हो चुके हैं. सतीश सना ने कहा है कि उसने मनोज प्रसाद नामक बिचौलिए को उसके दुबई स्थित ऑफिस में एक करोड़ रुपए दिए थे. उसके बाद सोमेश प्रसाद के कहने पर सुनील मित्तल को भी करीब दो करोड़ (1.95) रुपए दिए. सतीश सना के आदमी ने मित्तल को यह पैसा 13 दिसम्बर 2017 को दिल्ली प्रेस क्लब परिसर में दिया था. सतीश का कहना है कि उसके खिलाफ चल रही सीबीआई जांच को खत्म करने के लिए यह रिश्वत दी जा रही थी. सतीश सना ने राकेश अस्थाना को पिछले साल 10 महीने के अंतराल में करीब तीन करोड़ रुपए रिश्वत देने की बात कही.
दरअसल, मोइन कुरैशी के कीचड़ में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के साथ-साथ कई और अधिकारी सने हुए हैं. वर्मा ने अस्थाना पर घूस लेने का आरोप लगाया तो अस्थाना ने वर्मा पर. अस्थाना ने मुख्य सतर्कता आयुक्त और कैबिनेट सचिव को पत्र लिख कर कहा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा खुद को बचाने के लिए उन पर आरोप मढ़ रहे हैं. इस मामले में हैदराबाद के व्यवसायी और कुरैशी का करीबी सतीश बाबू सना मुख्य भूमिका निभा रहा है. उसने राकेश अस्थाना पर घूस लेने का आरोप लगाया और मंच से नेपथ्य में चला गया. कुरैशी के मनी लॉन्ड्रिंग सिंडिकेट की जांच राकेश अस्थाना के नेतृत्व में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम कर रही थी. सतीश सना के जरिए कुरैशी से घूस लेने के आरोप-प्रत्यारोप में तथ्यों को घालमेल करने का षडयंत्र समानान्तर तरीके से चलता रहा.
आप ध्यान दें… 25 सितंबर को सतीश सना ने हैदराबाद हवाई अड्डे से दुबई भागने की कोशिश की थी, लेकिन ‘लुक आउट सर्कुलर’ के कारण इमिग्रेशन अधिकारियों ने उसे रोक दिया. कुरैशी के मनी लॉन्ड्रिंग सिंडिकेट से जुड़े सतीश सना से पूछताछ करने के लिए राकेश अस्थाना ने निदेशक आलोक वर्मा से औपचारिक इजाजत मांगी थी. लेकिन वर्मा ने अस्थाना का प्रस्ताव चार दिनों तक रोके रखा और उसके बाद राकेश अस्थाना को बताए बगैर वह फाइल अभियोजन निदेशक (डायरेक्टर प्रॉजिक्यूशन) को भेज दी. यह सब हो जाने के बाद सतीश सना का प्रकरण अचानक उभर कर सामने आया और राकेश अस्थाना को घूस देने का आरोप उछल कर छा गया. सतीश सना के शिकायती-पत्र पर 15 अक्टूबर को सीबीआई ने राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी और निदेशक आलोक वर्मा ने आनन-फानन कुरैशी मामले की जांच एसआईटी से वापस भी ले ली. स्टेज सेट हो जाने के बाद बाहर घात लगाए बैठे सियासी-जीवों ने बवाल मचाना शुरू कर दिया.
यह भी बताते चलें कि सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके बेटे संदीप दीक्षित को भी भ्रष्टाचार के मामले में घेरे में लेने की कोशिश की थी, लेकिन वर्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था. स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार और काला धन सफेद करने (मनी लॉन्ड्रिंग) के आरोपी कांग्रेसी नेताओं को बचाने की कोशिशें चल रही थीं. आप गौर करें कि 15 सितम्बर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए कांग्रेस ने ‘भाजपा सरकार के सहयोग से’ 23 पूंजीपतियों के देश से भागने की बात कही, लेकिन जो लिस्ट प्रेस को सौंपी उसमें केवल 19 लोगों के नाम थे.
कांग्रेस ने बड़े शातिराना तरीके से तीन-चार नाम नहीं बताए. वे पूंजीपति थे स्टर्लिंग-बायोटेक कंपनी से जुड़े संदेसारा ग्रुप के कर्ताधर्ता नितिन संदेसारा, दीप्ति संदेसारा और चेतन संदेसारा. वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल से जुड़े इन पूंजीपतियों ने आंध्रा बैंक के साथ पांच हजार करोड़ का फ्रॉड किया और दुबई भाग गए. अब उनके नाइजीरिया में होने की सूचना है. संदेसारा परिवार और अहमद पटेल परिवार के सदस्यों पर मनी लॉन्ड्रिंग के भी गहरे और गंभीर आरोप हैं. कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से इन लोगों के नाम लिस्ट से हटा दिए. इस गोरखधंधे में पकड़े गए कुछ अन्य लोगों ने यह कबूल भी किया है कि उन लोगों ने कई खेप में अहमद पटेल के सरकारी आवास पर धन पहुंचाए.
अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल और दामाद इरफान सिद्दीकी का नाम तो सीबीआई की एफआईआर में भी है. कांग्रेस को सीबीआई की यह फाइल नहीं दिखी. सड़क पर कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करती दिख रही है, लेकिन चारित्रिक रूप से ठीक इसके उलट है. कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए भी हथियार कारोबारी संजय भंडारी का नाम नहीं लिया. भंडारी के राहुल के बहनोई स्वनामधन्य रॉबर्ट वाड्रा से गहरे कारोबारी ताल्लुकात हैं. संजय भंडारी सीबीआई और ईडी की पूछताछ में रॉबर्ड वाड्रा की अकूत सम्पत्ति के बारे में खुलासा कर चुका है. लंदन की एक आलीशान कोठी तो रॉबर्ट वाड्रा ने संजय भंडारी के नाम पर ही ले रखी है. अगस्टा से लेकर राफेल की सौदेबाजी में संजय भंडारी ने यूपीए-कालीन दलाली में अहम भूमिका अदा की थी. यूपीए काल में हथियारों की खरीद में भंडारी ने खूब दलाली खाई और कांग्रेस नेताओं और उनके रिश्तेदारों को खिलाई. संजय भंडारी भी देश से गुपचुप भाग गया, लेकिन कांग्रेस ने एक बार भी उसका नाम नहीं लिया.
स्टर्लिंग-बायोटेक और संदेसारा ग्रुप द्वारा किए गए पांच हजार करोड़ के बैंक फ्रॉड में गिरफ्तार हवाला कारोबारी रंजीत मलिक उर्फ जॉनी ने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में यह स्वीकार किया है कि उसने अपने कुरियर एजेंट राकेश चंद्रा के जरिए 25 लाख रुपए सीधे अहमद पटेल को उनके दिल्ली के 23, मदर टेरेसा क्रीसेंट स्थित आवास पर पहुंचवाए थे. मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी की पकड़ में आए संदेसारा ग्रुप के मुलाजिम सुनील यादव ने अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल के भी इस गोरखधंधे में शामिल होने की बात बताई. प्रवर्तन निदेशालय को सुनील यादव ने लिखित तौर पर बताया है कि संदेसारा ग्रुप के मालिक चेतन संदेसारा के निर्देश पर उसने फैसल पटेल के ड्राइवर के हाथों बड़ी धनराशि फैसल के लिए भेजी थी. इसके अतिरिक्त चेतन संदेसारा खुद अहमद पटेल के घर पर लगातार आया-जाया करते थे.
अब तक यह सवाल अनुत्तरित है कि स्टर्लिंग-बायोटेक कंपनी द्वारा किए गए पांच हजार करोड़ के फ्रॉड की सीबीआई या इन्फोर्समेंट निदेशालय ने जांच क्यों नहीं आगे बढ़ाई! पांच हजार करोड़ के फ्रॉड में आंध्रा बैंक के पूर्व निदेशक अनूप गर्ग की गिरफ्तारी के बाद से यह सवाल गहराया हुआ है कि स्टर्लिंग-बायोटेक कंपनी के अलमबरदारों और कंपनी से जुड़े कांग्रेस नेता अहमद पटेल से अब तक सीबीआई या ईडी ने पूछताछ क्यों नहीं की? जबकि अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल का नाम आयकर अधिकारियों को घूस देने के क्रम में सीबीआई की एफआईआर और ईडी की एफआईआर में आ चुका है. ईडी ने अहमद पटेल के खास गगन धवन के खिलाफ तो चार्जशीट भी दाखिल कर रखी है. गुजरात के वड़ोदरा स्थित स्टर्लिंग-बायोटेक ग्रुप द्वारा आयकर विभाग के आला अधिकारियों को भारी रिश्वत दिए जाते रहने का खुलासा हो चुका है.
अब आते हैं सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर. राकेश अस्थाना का बेटा अंकुश अस्थाना स्टर्लिंग बायोटेक कंपनी में 2010 से 2012 के बीच ऊंचे ओहदे और ऊंची सैलरी पर काम करता था. अस्थाना की बिटिया की नवम्बर 2016 में हुई आलीशान शादी स्टर्लिंग फार्म हाउस में ही हुई थी, जो काफी विवादों में रही. स्टर्लिंग-संदेसारा ग्रुप से घूस खाने वाले लोगों की सूची में राकेश अस्थाना का नाम भी शामिल रहा है. सीबीआई द्वारा बरामद की गई डायरी से यह खुलासा हुआ था कि वर्ष 2011 में अस्थाना को करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए कुछ किस्तों में दिए गए थे. उस समय अस्थाना सूरत के पुलिस कमिश्नर थे. सीबीआई ने तब इस मामले में दो एफआईआर भी दर्ज की थी. पहली एफआईआर कंपनी से घूस खाने वाले तीन आयकर आयुक्तों के खिलाफ थी और दूसरी एफआईआर बैंक के साथ पांच हजार करोड़ की धोखाधड़ी किए जाने के मामले से जुड़ी थी. आप देख रहे हैं न विचित्र सा घालमेल!
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना को तरक्की देकर सीबीआई का स्पेशल डायरेक्टर बनाने का विरोध किया था.लेकिन केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और केंद्र सरकार ने निदेशक की बात को टाल कर अस्थाना को त्वरित गति से प्रमोट कर दिया. जब राकेश अस्थाना के क्लोज-लिंक कांग्रेस नेता अहमद पटेल से थे, तब मोदी सरकार ने ऐसा क्यों किया? यह सियासत है, इसके पेचोखम आपस में इतने उलझे होते हैं कि आम आदमी क्या, कई खास लोगों को भी समझ में नहीं आते. पर्दे के पीछे का सच यह है कि गुजरात के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अहमद पटेल को लेकर कांग्रेस के साथ भाजपा की एक ‘समझदारी’ बन रही थी. कांग्रेस की सीटें भी कम थीं और भाजपा के लिए वह इज्जत से जुड़ा चुनाव था.
कांग्रेस भी भाजपा को अंदर-अंदर समझा रही थी कि अहमद पटेल की उम्मीदवारी कांग्रेस की सियासी तौर पर जरूरी है, जबकि उनकी हार सुनिश्चित है. इस ‘समझदारी’ के तहत भाजपा सरकार ने अहमद पटेल के खिलाफ सीबीआई जांच की गति मंद कर दी थी. भाजपा की तरफ से अमित शाह, स्मृति इरानी और बलवंत सिंह राजपूत प्रत्याशी थे. लेकिन कांग्रेस ने भाजपा को भ्रम में रख कर अंदरूनी तिकड़म ऐसी बनाई कि भाजपा के तिकड़मबाज धराशाई हो गए और मात्र 44 वोट पाकर भी अहमद पटेल राज्यसभा चुनाव जीत गए. इस खेल में कांग्रेस से झटका खाने के बाद भाजपा ने पैंतरा बदला और अहमद पटेल के खिलाफ सीबीआई जांच ने तेजी पकड़ ली. नौ अगस्त 2017 को अहमद पटेल ने राज्यसभा का चुनाव जीता और सीबीआई ने 30 अगस्त 2017 को एफआईआर दर्ज कर दी.
इसके बाद ताबड़तोड़ कई एफआईआर दर्ज हुईं. सीबीआई की एफआईआर में अहमद पटेल के दामाद इरफान भाई का नाम शामिल है, जिसने आयकर आयुक्तों को रिश्वत दी थी. धन के लेनदेन के सूत्र से अहमद पटेल के करीबी गगन धवन का नाम भी मजबूती से जुड़ा पाया गया है. सीबीआई ने एफआईआर में उन शीर्ष अधिकारियों को भी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अभियुक्त बनाया जिन्हें अहमद पटेल के दामाद ने रिश्वत दी थी. इनमें आईआरएस अफसर सुनील कुमार ओझा, डॉ. सुभाषचंद्र और मानस शंकर राय के नाम शामिल हैं. फिर से बताते चलें कि स्टर्लिंग बायोटेक और संदेसारा ग्रुप के कर्ताधर्ता नितिन संदेसारा और उसके भाई चेतन संदेसारा के अहमद पटेल से काफी नजदीकी सम्बन्ध हैं. सीबीआई की एफआईआर कहती है कि स्टर्लिंग-बायोटेक और संदेसारा ग्रुप के वड़ोदरा, मुंबई और ऊटी के ठिकानों पर की गई व्यापक छापामारी में वह डायरी और कम्प्यूटरी-ब्यौरे बरामद किए गए थे, जो नेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को रिश्वत देने का खुलासा करते हैं. इसी डायरी से पता चला कि अहमद पटेल के दामाद इरफान सिद्दीकी ने आईआरएस अधिकारी डॉ. सुभाषचंद्र को एक करोड़ रुपए रिश्वत के बतौर दिए थे. इसके अलावा भी इस आईआरएस अधिकारी को 75 लाख रुपए दिए जाने के दस्तावेजी प्रमाण मिले हैं. रिश्वत के ऐसे कई लेन-देन उजागर हुए हैं. इरफान सिद्दीकी अहमद पटेल की बिटिया मुमताज पटेल का पति है.
सीबीआई पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के इशारे पर सीबीआई के अधिकारियों ने ही सीबीआई का पूरा ढांचा चरमरा कर रख दिया. कांग्रेस को सीबीआई की अंदरूनी सूचनाएं मिल रही थीं. तभी राहुल गांधी के ट्वीट पर कांग्रेस के ही नेता शहजाद पूनावाला ने सवाल खड़े किए कि आखिर राहुल गांधी को कैसे पता कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा राफेल के दस्तावेज इकट्ठा कर रहे थे? राहुल ने ट्वीट कर कहा था कि राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज जुटाने में लगे होने के कारण आलोक वर्मा को हटाया गया. आलोक वर्मा की निगरानी में ही अगस्टा वेस्टलैंड मामले की जांच चल रही थी, जो आजतक निर्णायक कानूनी नतीजे तक नहीं पहुंची. उस मामले में चार्ज शीट भी दाखिल नहीं की गई और दुबई में पकड़े जाने के बावजूद अगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले के मुख्य आरोपी दलाल क्रिश्चियन मिशेल को भारत नहीं लाया जा सका. पी. चिदंबरम एयरसेल-मैक्सिस घोटाले से बचे रहे और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कानून के शिकंजे में नहीं आए. पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव आईआरसीटीसी रेल-होटल घोटाले से बचे रहे तो संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा बिकानेर जमीन घोटाले में बचे रह गए.
बचाव की पेशबंदी में शौरी के शौर्य का शोशा
हाल के दिनों में पूर्व भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी कुछ अधिक ही बौखलाए नजर आ रहे थे. राफेल के मसले पर शौरी के तीखे तेवर की असलियत लक्ष्मी विलास पैलेस होटल बिक्री घोटाले में फंसने की छटपटाहट थी. अब यह बात खुल कर सामने आ रही है कि इस मसले पर शौरी और सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की गोपनीय मुलाकात हुई थी. वर्ष 2002 में जब अरुण शौरी केंद्र में विनिवेश मंत्री हुआ करते थे, तब उदयपुर का आलीशान पांच सितारा लक्ष्मी विलास होटल बिका था. घाटे के उपक्रमों को बेचने के क्रम में भारी घोटाले हुए. 29 एकड़ में फैले लक्ष्मी विलास पैलेस होटल को महज 7.52 करोड़ रुपए में बेच डाला गया. जबकि उस समय होटल की कीमत सरकारी दर के हिसाब से डेढ़ सौ करोड़ रुपए से अधिक थी. यह तथ्य सीबीआई की प्राथमिक जांच (पीई) रिपोर्ट में दर्ज है. अरुण शौरी के विनिवेश मंत्रालय ने इसके साथ-साथ कई अन्य होटल भी कौड़ियों के भाव बेच डाले थे, जिनमें दिल्ली के कुतुब होटल और लोधी होटल भी शामिल थे. सीबीआई ने लक्ष्मी विलास पैलेस होटल बिक्री घोटाले की छानबीन शुरू की थी और शौरी के करीबी भरोसेमंद नौकरशाह प्रदीप बैजल के खिलाफ 29 अगस्त 2014 को केस दर्ज किया था. शौरी के ही कार्यकाल में मुंबई का सेंटूर एयरपोर्ट होटल 83 करोड़ में सहारा समूह को बेचा गया था. दिलचस्प यह है कि उसी होटल को सहारा समूह ने 115 करोड़ में बेच डाला. यह सरकार की बिक्री-प्रक्रिया पर करारे तमाचे की तरह था.
विवादास्पद नागेश्वर राव भाजपा का नया मोहरा
वर्मा-अस्थाना भिड़ंत के कारण हो रही फजीहत से बचने के लिए केंद्र सरकार ने आनन-फानन ऐसे अधिकारी को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बना दिया, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की और किरकिरी हो गई. मन्नम नागेश्वर राव काफी विवादित आईपीएस अफसर रहे हैं. भ्रष्टाचार-विधा में भी उनका काफी नाम है. उनकी खासियत यह है कि वे उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के खास और मुख्य सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी के निकटवर्ती हैं. चेन्नई के गिंडी (एचटीएल) जमीन घोटाले की जांच की लीपापोती करने में राव ने अहम भूमिका अदा की. उस समय नागेश्वर राव सीबीआई चेन्नई जोन के एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख थे. गिंडी भूमि घोटाले के जरिए उस समय सरकार को करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया गया था. उस घोटाले की जांच में घालमेल करके नागेश्वर राव ने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्य सचिव आर राममोहन राव, उनके करीबी निरंजन मार्डी आईएएस और सिडको के तत्कालीन अध्यक्ष हंसराज वर्मा आईएएस समेत घोटाले में शामिल रहे एसबीआई के उप महाप्रबंधक लियोन थेरटिल, चीफ मैनेजर एन रामदास, मेसर्स वीजीएन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डी प्रथीश और एचटीएल के सीओओ डीपी गुप्ता को बचाया. राव ने इस मामले में सीबीआई की जांच आगे नहीं बढ़ने दी और घोटाले के सबूत गायब कर दिए गए. सीबीआई ने वह दस्तावेज भी दबा दिया जिसमें विभिन्न नेताओं और अफसरों को घूस दिए जाने का ब्यौरा दर्ज था. राव का दुस्साहस यह रहा कि जमीन घोटाले की जांच का मामला उन्होंने अपनी मर्जी से इंडियन बैंक के अधिकारी वेलायुथम को दे दिया. तमाम शिकायतों के बावजूद ओड़ीशा कैडर के आईपीएस नागेश्वर राव की सीबीआई दिल्ली में तैनाती हो गई और आज उन्हें अंतरिम निदेशक के पद पर बैठा दिया गया. सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा नागेश्वर राव को सीबीआई से हटा कर वापस मूल कैडर में भेजने की कोशिशें करते रहे, लेकिन नाकाम रहे. आखिरकार वर्मा को ही हटना पड़ा. नागेश्वर राव की पत्नी मन्नम संध्या ने आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले में करीब 14 हजार वर्ग फीट जमीन खरीदी, जिसे कोलकाता की एक कागजी (शेल) कंपनी एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड से लोन लेकर खरीदा दिखाया गया. छानबीन की गई तो पता चला कि नागेश्वर राव की पत्नी एम. संध्या ने ही उक्त कंपनी को ही 38,27,141 रुपए कर्ज दे रखा है. दस्तावेजों पर एम. संध्या ने पति का नाम दर्ज कराने के बजाय अपने पिता चिन्नम विष्णु नारायणा लिखवाया हुआ है. एम. संध्या एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड की शेयर होल्डर हैं. नागेश्वर राव पर ओड़ीशा में वन भूमि खरीदने का मामला भी लंबित है.
सीबीआई के वकील भी हैं सब ‘गंगा-नहाए’
दो शीर्ष अधिकारियों की प्रायोजित कुश्ती में वकील भी दो खेमों में बंट गए और कई वकीलों के छद्म भी खुल गए. जब विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने के लिए अदालत में याचिका दाखिल की, तो सीबीआई को भी वकील की जरूरत पड़ी. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कहीं अन्यत्र खिसक लिए और सीबीआई के स्थायी वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण ने अस्थाना के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ने का बीड़ा उठा लिया. आखिरकार सीबीआई ने वकील कोंडुरी राघवचार्युलू को तैनात किया. राघवचार्युलु खुद सीबीआई की निगरानी में रहे हैं. ‘डायरी गेट’ प्रकरण में राघवचार्युलु का नाम था. सीबीआई के तत्कालीन निदेशक रंजीत सिन्हा के आधिकारिक आवास के प्रवेश-निकास लॉगबुक से खुलासा हुआ था कि राघवचार्युलु कम से कम 54 बार रंजीन सिन्हा से मिलने गए थे. कोंडुरी राघवचार्युलू कोल-खनन सरगना जनार्दन रेड्डी के वकील थे. सीबीआई ने फिर बीच में ही राघवाचार्युलु को हटा कर विक्रमजीत बनर्जी को अपना वकील बना लिया तो दोनों वकील ही आपस में भिड़ गए.