हसनंबा मंदिर: जलता दीपक, ताजे फूल और प्रसाद… 1 साल बाद भी उसी रूप में… चमत्कार जो खटक रहे क्रिश्चियन मिशनरी को

चमत्कार अक्सर तर्कों और तथ्यों से परे होते हैं। ये भक्तों के विश्वास और उनकी आस्था का जीता-जागता प्रमाण हैं। भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जो अपनी चमत्कारी प्रवृत्ति और अविश्वसनीय मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक स्थान कर्नाटक के हासन जिले में है, जो अपने चमत्कारों के लिए ही पूरे भारत में विख्यात है। इस मंदिर में श्रृद्धालुओं की भक्ति इतनी प्रगाढ़ है कि क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा किए गए लगातार प्रयासों के बाद भी भक्तों का विश्वास उसी तरह बना हुआ है, जैसे सदियों पहले था। हम बात कर रहे हैं हसनंबा मंदिर की जो दीपावली के समय खुलता है और फिर एक साल के लिए फिर बंद हो जाता है।

मंदिर का इतिहास

मंदिर के विषय में पौराणिक मान्यता कई युगों पहले भगवान शिव से जुड़ी हुई है। एक राक्षस था, अंधकासुर नाम का। इसने भीषण तपस्या करके ब्रह्मा जी से अदृश्य होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। ऐसा वरदान पाकर अंधकासुर ने चारों ओर अत्याचार मचा दिया। ऐसे में भगवान शिव ने अंधकासुर का अंत करने का बीड़ा उठाया। लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण उन्हें अंधकासुर से कड़ा संघर्ष करना पड़ा। तब भगवान शिव ने अपनी शक्तियों से योगेश्वरी को उत्पन्न किया, जिन्होंने अंधकासुर का नाश कर दिया।

योगेश्वरी के साथ आईं थीं 7 देवियाँ, जिन्हें सप्तमातृका कहा गया। ये सप्तमातृकाएँ थीं, ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी और चामुण्डी। ये सातों देवियाँ दक्षिणी भाग से काशी की ओर आ रही थीं लेकिन मार्ग में उन्हें एक स्थान इतना सुंदर लगा कि उन्होंने वहीं निवास करने का निर्णय लिया। यही स्थान हासन है। इन सातों देवियों में से वैष्णवी, महेश्वरी और कौमारी ने चींटियों की बाम्बी में रहना पसंद किया। चामुंडी, वाराही और इंद्राणी पास ही स्थित कुंड में रहने लगीं और ब्राह्मी केंच्चम्मना होसकोटे में।

मंदिर के निर्माण और गर्भगृह में मूर्ति स्थापना के विषय में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन जिस प्रकार की मंदिर की संरचना और वास्तुकला है, उससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि हसनंबा मंदिर होयसल वंश के राजाओं द्वारा 12वीं शताब्दी में बनवाया गया। हालाँकि मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित गोपुरम 12वीं शताब्दी के बाद बनाया गया है।

हसनंबा मंदिर से जुड़ी प्रथा और उसका चमत्कार

यह मंदिर अपनी रोचक प्रथाओं के लिए जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक अश्विन मास के पहले गुरुवार को यह मंदिर एक सप्ताह के लिए ही श्रृद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इस दौरान हसनंबा जात्रा महोत्सव मनाया जाता है। मंदिर के कपाट खुलने पर देश के कोने-कोने से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं। इसके बाद आखिरी दो दिनों में मंदिर में विशेष अनुष्ठान का आयोजन होता है, जिस दौरान मंदिर आम श्रृद्धालुओं के लिए बंद रहता है।

हासन जिले में स्थित हसनंबा मंदिर जिस कारण से प्रसिद्ध है, वह है यहाँ होने वाला चमत्कार। दरअसल जब मंदिर के कपाट फिर से बंद किए जाते हैं, तब यहाँ एक दीप जलाया जाता है, माता को ताजे पुष्प अर्पित किए जाते हैं और प्रसाद चढ़ाया जाता है। साल भर बाद जब पुनः इस मंदिर के पट खुलते हैं, तब भी दीपक जलता हुआ ही पाया जाता है। माता को अर्पित किए गए पुष्प ताजी अवस्था में मिलते हैं और प्रसाद के रूप में अर्पित किया गया पकाया चावल भी पवित्र रूप में मिलता है।

माता हसनंबा के भक्त इसे चमत्कार ही मानते हैं लेकिन कई प्रगतिवादी और सुधारवादी समाजसेवी चाहते हैं कि मंदिर के चमत्कारों का सच सामने लाया जाए। इसके लिए समय-समय पर प्रयास होता रहता है। दलित संघर्ष समिति के प्रतिनिधि, सीपीएम नेताओं के साथ मिलकर मंदिर के रहस्यों को साबित करने के लिए प्रशासन का सहयोग चाहते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर भक्तों का यह मानना है कि क्रिश्चियन मिशनरियाँ मंदिर के महत्व को समाप्त करने के लिए उसकी प्रथाओं को निशाना बना रही हैं। लेकिन भक्तों की आस्था भी अडिग है और संसार में सबको जीता जा सकता है लेकिन एक भक्त के विश्वास को नहीं।

कैसे पहुँचें?

हासन पहुँचने के लिए नजदीकी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बेंगलुरु है जो यहाँ से लगभग 207 किलोमीटर (किमी) दूर है। इसके अलावा मैसूर हवाईअड्डा मंदिर से लगभग 127 किमी की दूरी है।

हासन रेलमार्ग से बेंगलुरु, मंगलौर, शिवमोग्गा और मैसूर जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है। हासन जंक्शन से मंदिर की दूरी मात्र 2.6 किमी है। इसके अलावा सड़क मार्ग से हासन कर्नाटक के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।