लखनऊ। टाइम्स नाउ नवभारत के स्टिंग ऑपरेशन में साफ हो गया, कि किस तरह यूपी में चुनाव नजदीक आते ही छोटे दल मोल-भाव में लग गये हैं, उन्हें ऐसा लगता है कि यही वो समय है जब बड़े दलों और नेताओं को अपने साथ जोड़ने के लिये जरुरत से ज्यादा झुका सकते हैं, असल में उनको ये ताकत, उस वोट बैंक से मिलती है, जो किसी खास जाति या खास इलाके पर आधारित होता है, इन दलों की ताकत यही है, कि वो अपने जाति के वोटरों को इकट्ठा कर सकते हैं, जिस दल के साथ वो मिल जाते हैं, उस दल को उनका वोट मल्टीप्लायर के रुप में काम कर जाता है, इसलिये बड़ी पार्टियां भी उनको अपने साथ लेने के लिये लालायित रहती है।
बीजेपी ने 2017 विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन का प्रयोग किया था, उन्हें इसका फायदा भी मिला, बीजेपी मे चुनावों में सुभासपा को 8 और अपना दल को 11 सीटें दी थी, जबकि खुद 384 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, परिणाम आये तो रणनीति कारगर दिखी। बीजेपी को 312 को राजभर की पार्टी को 4 और अपना दल को 9 सीटें मिली, 2022 चुनावों में निषाद पार्टी के साथ बीजेपी के गठबंधन की बातें चल रही है।
बीजेपी की सफलता को देख अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी बड़े दलों से गठबंधन नहीं करने का ऐलान कर दिया है, 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद हार मिलने के बाद अब वो छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कह रहे हैं, इसी के तहत इस समय उन्होने राष्ट्रीय लोकदल, महान दल और अपना दल (के) के साथ गठबंधन कर रखा है।
यूपी राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 18 मान्यता प्राप्त दल, 3 अमान्यता प्राप्त और 91 तात्कालिक पंजीकरण के साथ चुनाव लड़ने वाले दल हैं, इनमें से बड़ी पार्टियों के अलावा 10-12 छोटे दल ऐसे हैं, जो चुनावों में असर डालते हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि यूपी में विधानसभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होता है, इन परिस्थितियों में 5-10 हजार वोट बहुत मायने रखते हैं, छोटे दलों की यही ताकत है, क्योंकि यूपी में अभी भी जाति आधारित चुनाव हकीकत है, सुहेलदेव भारतीय समजा पार्टी का ही उदाहरण लीजिए, ओपी राजभर इसके मुखिया हैं, पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में राजभर जाति का अच्छा खासा वोट है, उनका वोट बैंक अडिग है, इसी वजह से 2017 चुनाव में जीत के बाद बीजेपी ने उन्हें मंत्री बनाया था।
निषाद पार्टी
राजभर समुदाय की तरह ही निषाद समुदाय का भी पूर्वांचल में अच्छा खासा वोट बैंक है, निषाद समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि 22 उपजातियां आती हैं, निषाद पार्टी के मुखिया इस समय संजय निषाद हैं, उन्होने 2016 में बसपा का दामन छोड़ अलग पार्टी बनाई थी, 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी ऑफ इंडिया, अपना दल और जन अधिकार पार्टी जैसे दलों के साथ गठबंधन किया था, लेकिन पार्टी को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली।