… इस्तीफा देने के बाद आखिर कहां गायब हो गए हरक सिंह रावत?

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के देहरादून दौरे से ठीक दो दिन पहले, हरक सिंह रावत के इस्तीफे की खबर ने देहरादून से दिल्ली तक बीजेपी में हडकंप मचा दिया था. देर रात सियासी हलकों में चर्चा थी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने डॉ. हरक सिंह रावत से फोन पर बात की है.

मोबाइल फोन बंद कर, अंडरग्राउंड हुए हरक सिंह

हरक सिंह का पीछा करते हुए मीडियाकर्मियों ने उनके यमुना कॉलोनी स्थित सरकारी आवास पर डेरा जमाया, लेकिन हरक सिंह वहां नहीं पहुंचे. डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास में भी वह नहीं मिले. मीडिया को जहां-जहां भी उनके होने की संभावना थी, वहां-वहां सिर्फ निराशा ही हाथ लगी. कैबिनेट बैठक से बाहर निकलने के बाद हरक सिंह ने अपना मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर लिया था.

उनके करीबी माने जाने वाले विजय सिंह चौहान ने कहा था कि हरक सिंह ने इस्तीफा दे दिया है. कैबिनेट ब्रीफिंग में पहुंचे शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने हरक सिंह की नाराजगी की पुष्टि तो की, लेकिन इस्तीफे से जुड़े सवाल को वह टाल गए. इस विषय पर सरकार के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि उनके सम्मान में अगर कमी है तो हम उनका और भी सम्मान करेंगे. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इसे परिवार का मामला कहकर किनारा कर लिया.

तकनीकी तौर पर जिस मुद्दे को लेकर ये पूरा घमासान मचा, वो कोटद्वार के मेडिकल कॉलेज को लेकर है. गौरतलब है कि पौड़ी जिले के कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि वहां पहले से ही मेडिकल कॉलेज है और एक जिले में एक ही ऐसा कॉलेज नहीं हो सकता है. भारत सरकार के नियमों के अनुसार ही वहां कॉलेज बन सकता है. वो भी तब, जब नियमों में संशोधन किया जाए या फिर कोटद्वार को नया जिला घोषित किया जाए.

इसके अलावा एक और तरीका यह है कि राज्य सरकार अपने बजट से कॉलेज का निर्माण करे. मगर इसके लिए 500 करोड़ रुपयों की ज़रूरत होगी और पहले से ही कर्ज़ में दबी सरकार के लिये 500 करोड़ खर्च करना संभव नहीं है. वो भी एक मेडिकल कॉलेज के लिए, जो वहां पहले ही मौजूद है.

खैर डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा संगठन और सरकार दोनों लगी हुई हैं. अब राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये तो भविष्य में ही छुपा हुआ है.