नई दिल्ली। देश का अगला राष्ट्रपति कौन (New President of India) होगा इसके लिए चुनाव की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है। निर्वाचन आयोग (Election Commission, EC) के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 18 जुलाई को होगा जबकि अगले राष्ट्रपति के नाम की आधिकारिक घोषणा 21 जुलाई को होगी। मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा जो भी उम्मीदवार घोषित करेगी, वह आसानी से चुनाव जीत जाएगा। यही कारण है कि राजनीतिक पंडित और सियासी विश्लेषक भाजपा की ओर से घोषित किए जाने वाले उम्मीदवार के नाम का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
वैसे हर बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली ने देश के राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यचकित किया है। साल 2017 के राष्ट्रपति चुनाव पर नजर डालें तो पाते हैं कि तब पीएम मोदी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवार के रूप में उतार कर सभी को चौंका दिया था। पांच साल पहले कोविंद को शीर्ष संवैधानिक पद पर चुनकर, भाजपा ने देशभर के दलित समाज को बड़ा संदेश दिया था। इसके बाद देश में कई चुनाव हुई जिसमें भाजपा को इस पहलकदमी का फायदा भी मिला।
दरअसल मोदी शाह की जोड़ी अप्रत्याशित राजनीतिक निर्णय लेने के लिए जानी जाती है। 15 जून के आसपास भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक होने की संभावना है, जिसके बाद पार्टी उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर सकती है। इसी बैठक में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति दोनों उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा होने की संभावना है। वैसे मौजूदा वक्त में भाजपा राजनीतिक समीकरणों को ठीक करना चाहती है। हाल ही में 15 राज्यों की 57 से अधिक राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में, भाजपा ने 22 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है।
इससे पहले, राज्यसभा की इन 57 सीटों में से भाजपा के पास 25 से अधिक सीटें थीं। एनडीए गठबंधन के पास पहले 57 में से कुल 31 सीटें थीं, जिसमें अन्नाद्रमुक की तीन, जदयू की दो और एक निर्दलीय उम्मीदवार की सीट शामिल थी। हाल के राज्यसभा चुनावों में भाजपा के दोनों सहयोगी अन्नाद्रमुक और जदयू को एक-एक सीट गंवानी पड़ी है। उच्च सदन में भाजपा के सांसदों की संख्या में तीन की कमी आई है, लेकिन लोकसभा में 301 सांसदों के साथ, भाजपा विपक्षी दलों की तुलना में संख्या बल के मामले में अभी भी काफी आगे है।
भले ही राज्यसभा में भाजपा को तीन सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है फिर उच्च सदन में उसकी मौजूदा ताकत 2017 की तुलना में अधिक है। लोकसभा में 540 सांसदों (तीन सीटें खाली पड़ी) में से, भाजपा के 301 सदस्य हैं। दूसरी ओर राज्यसभा में वर्तमान 232 सदस्यों (सात मनोनीत सदस्यों को छोड़कर) में से, नव निर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के बाद भाजपा के पास 92 का संख्या बल होगा। यही नहीं 2017 की तुलना में, इस साल देश भर की विभिन्न विधानसभाओं में एनडीए के विधायकों की संख्या में गिरावट आई है।
फिर भी गैर-एनडीए और गैर-यूपीए क्षेत्रीय दलों के समर्थन के साथ, भाजपा को इस बात का भरोसा है कि उसका उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत जाएगा। भाजपा को उम्मीद है कि उड़ीसा की बीजू जनता दल (बीजद) और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करेगी। यदि भाजपा किसी आदिवासी नेता को मैदान में उतारती है, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन का नेतृत्व करने वाले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे विपक्षी नेता के लिए भी दुविधा पैदा हो सकती है।
सूत्रों का कहना है कि देश के राष्ट्रपति जैसे शीर्ष संवैधानिक पद के लिए भाजपा आम सहमति बनाने के लिए विपक्षी दलों से भी बातचीत करेगी। वैसे जो भी हो भाजपा के लिए राष्ट्रपति चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं हैं। सनद रहे साल 2002 एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) की उम्मीदवारी ने विपक्षी खेमे की गोलबंदी को छिन्न भिन्न कर दिया था। सवाल यह भी कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की राह पर चलेंगे…