नई दिल्ली। कर्नाटक हिजाब विवाद को लेकर मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई. बहस के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कई उदाहरणों के जरिए साबित करने का प्रयास किया कि हिजाब कोई आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. उनकी तरफ से यूनिफॉर्म और अनुशासन पर भी लंबी दलीलें दी गईं. कोर्ट के सवाल-जवाब भी आते रहे, लेकिन मेहता अपनी दलीलों पर कायम रहे.
धार्मिक पहचान वाली पोशाक स्कूल में नहीं- SG
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मान लीजिए कि किसी ने मेरे भाई को मार डाला और मेरा मानना है कि जब तक मैं बदला नहीं लेता तब तक वह शांति से नहीं रह सकता. इसका मतलब हत्या आवश्यक धार्मिक अभ्यास का जरूरी हिस्सा भी नहीं हो सकता है. मेरे लिए यह धर्म का मामला नहीं है, यह सभी छात्रों के बीच एक समान आचरण का मामला है. जब मैं धर्मनिरपेक्ष शिक्षा में हूं तो धार्मिक पहचान दिखाने वाली पोशाक नहीं हो सकती.
मेहता ने कहा कि वेदशाला और पाठशाला दोनो अलग हैं. वेदशाला में केसरिया पटका पहन सकते हैं, मदरसे में गोल टोपी. लेकिन धर्म निरपेक्ष स्कूल में यूनिफॉर्म का पालन करना अनुशासन है. अगर हम बच्चों की शिक्षा के लिए सेक्युलर इंस्टिट्यूट्स चुनते हैं तो हमे नियमों का पालन करना होगा. एसजी ने पुलिस बलों में दाढ़ी रखने या फिर बाल बढ़ाने पर प्रतिबंध के संबंध में एक अमेरिकी कोर्ट के फैसले को जिक्र किया. एक वकील टोपी पहनकर अदालत में यह कहते हुए आता है कि यह ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म का हिस्सा है, जज आपत्ति करता है. इस तरह के एक विनियमित मंच में कोर्ट द्वारा आयोजित प्रतिबंध को बरकरार रखा जाएगा यदि यह उचित है.
अनुशासन किसी संस्थान को देखकर नहीं आता- मेहता
एसजी तुषार मेहता ने कहा की कुछ वैसे ही जब कोविड संकट काल में वर्चुअल सुनवाई के समय जब कुछ वकील.बनियान पहनकर सुनवाई में बहस करने आए तो अदालत ने उनको यूनिफॉर्म और संस्थान की गरिमा के मुताबिक तय ड्रेसकोड फॉलो करने को कहा था. कोर्ट ने उनको थोड़ी छूट दी थी लेकिन अनुशासन की बात कही थी. अनुशासन किसी संस्थान को देखकर नहीं आता. बल्कि ये सार्वकालिक सार्वदेशिक होता है.
अब इन दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि फिर सर्दियों में छात्र मफलर पहनते हैं वो कहां यूनिफॉर्म में होता है? इस पर एसजी ने कहा कि ड्रेस का उद्देश्य क्या है? किसी को इस तरह सोचकर ड्रेस नहीं पहने चाहिए कि मैं हीन महसूस करता हूं. ड्रेस एकरूपता और समानता के लिए है. जब आप उस सीमा को पार करना चाहते हैं तो आपका परीक्षण भी उच्च सीमा पर होता है. याचिकाकर्ता ये साबित नहीं कर पाए कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक परम्परा है. कई इस्लामिक देश में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही है. मसलन ईरान में ये सामाजिक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है. इसलिए हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है. कुरान में सिर्फ हिजाब का उल्लेख होने मात्र से वो इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं हो जाता.
मफलर यूनिफॉर्म का हिस्सा या नहीं?
इस पर जस्टिस धूलिया ने फिर वहीं सवाल पूछा कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि उन्होंने वर्दी नहीं पहनी है. उदाहरण के लिए एक छात्र सर्दी में मफलर तो पहन ही सकता है. वे कह रहे हैं कि हम ड्रेस पहनेंगे. वे यह नहीं कह रहे हैं कि हम नहीं पहनेंगे. मान लीजिए कोई बच्चा मफलर पहनता है वैसे ही कोई छात्रा यूनिफॉर्म के रंग का हिजाब भी पहन सकती है. लेकिन तुषार मेहता ने इस तर्क का खंडन किया. उन्होंने साफ कहा कि यह मफलर धर्म की पहचान नहीं करता है लेकिन हिजाब करता है.
कल फिर होगी सुनवाई
तुषार मेहता ने इस बात पर भी जोर दिया कि धार्मिक परंपरा या प्रैक्टिस पचास साल या पच्चीस साल से जारी रहे वो नहीं है. रिलीजियस प्रैक्टिस वो होती है जो धर्म के शुरुआत से ही चल रही हो. वो अभिन्न हिस्सा होती है. उदाहरण देते हुए कहा गया कि तांडव नृत्य तो सनातन धर्म की प्राचीन अवधारणा है लेकिन कोई कहे कि सड़क पर तांडव करते हुए चलना हमारी धार्मिक परंपरा है ये कहना सही नहीं है. हिजाब मामले में बुधवार सुबह 10.45 बजे फिर सुनवाई होने वाली है.