फ्लोरिडा। नासा का एक रिटायर्ड सैटेलाइट 38 साल के बाद धरती पर लौटा है। बिना किसी को नुकसान पहुंचाए यह सैटेलाइट अलास्का में गिरा है। नासा की तरफ से सोमवार को इसकी आधिकारिक जानकारी दी गई। साल 1984 में यह सैटेलाइट रक्षा विभाग की तरफ से लॉन्च किया गया था। इस सैटेलाइट को अर्थ रेडिएशन बजट सैटेलाइट (ERBS) के तौर पर जाना गया था। इसे अंतरिक्षयान चैलेंजर के जरिए इसे अंतरिक्ष में भेजा गया था। अंतरिक्ष यात्री शैली राइड इसके साथ अंतरिक्ष रवाना हुई थीं।
क्यों किया गया लॉन्च
साल 2005 तक ईआरबीएस की मदद से रिसर्चर्स ने इस बात की जांच की कि कैसे धरती सूरज से ऊर्जा को ग्रहण करती है और फिर इसे वापस निकालती है। साथ ही उन्होंने धरती के वातावारण में ओजोन, भाप, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और एरोसोल सांद्रता को भी मापा। अमेरिकी रक्षा विभाग की तरफ से बताया गया है कि रविवार को स्थानीय समयानुसार सैटेलाइट दोबारा धरती के वातावरण में दाखिल हुआ है। अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल सकी है कि दोबारा दाखिल होने पर सैटेलाइट के कौन से हिस्सों को नुकसान पहुंचा है।
नहीं होगा कोई नुकसान
ज्यादातर सैटेलाइट जब दोबारा धरती में आते हैं तो पूरी तरह से जल जाते हैं। नासा ने सैटेलाइट के दोबारा धरती में दाखिल होने पर सभी बातों का अनुमान लगाया था। नासा का कहना था कि धरती के इस सैटेलाइट की वजह से ना के बराबर नुकसान होगा। सैटेलाइट ने अपने तय समय से कहीं ज्यादा समय तक कार्य किया। पिछले हफ्ते ही नासा की तरफ से कहा गया था कि इस सैटेलाइट के धरती पर दाखिल होने के बाद किसी को भी परेशान होने की जरूरत नहीं है।
यह पूरा मिशन नासा के लिए काफी एतिहासिक था। चैलेंजर की मदद से इस सैटेलाइट को भेजा गया तो पहली अमेरिकी महिला अंतरिक्ष यात्री के भी कदम अंतरिक्ष पर पड़े। ईआरबीएस पर एक उपकरण स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल एंड गैस एक्सपेरीमेंट II (SAGE II) ने डाटा हासिल किए। इसी उपकरण की मदद से जानकारी मिली थी कि दुनिया में ओजोन की परत कम होती जा रही है। इस सैटेलाइट की मदद से ही साल 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एग्रीमेंट साइन हुआ। एक दर्जन देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसका मकसद ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFSs) केमिकल्स के प्रयोग को कम करना था।
खत्म हो जाती ओजोन परत
इस समझौते के बाद ही इस केमिकल को बैन कर दिया गया था। अगर क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स पर बैन नहीं लगता तो फिर ओजोन की परत पूरी तरह से खत्म हो जाती। इसकी वजह से साल 2021 के अंत तक धरती का तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता और ग्लोबल वॉर्मिंग खतरे के स्तर पर पहुंच जाती। आज SAGE III अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर है और ओजोन परत के स्वास्थ्य पर रिसर्च कर रहा है।