फर्ज़ी मार्कशीट पर सरकारी नौकरी मैनेज कैसे है: उच्च न्यायालय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम में क्षेत्रीय प्रबंधक सुभाष चंद्र पांडे द्वारा फर्जी मार्कशीट के आधार पर धोखाघड़ी से हथियाई नौकरी के संबंध में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, की लखनऊ खण्डपीठ ने सुभाष पांडे को नोटिस जारी करने का आदेश पारित किया है, सुनवाई के दौरान विद्वान न्यायाधीश ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहाँ कि आखिर कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद भी सरकारी नौकरी कैसे मैनेज है। न्यायालय द्वारा याचिका संख्या 9463/2022 में वादी द्वारा सुभाष चंद्र पांडे की शैक्षिक अहर्ता न होने पर भी भंडारण निगम में नौकरी किये जाने के गंभीर प्रकरण को देखते हुए दिनांक 10.01.23 को आदेश पारित किया है। उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत शासन, प्रशासन के कुम्भकर्णी नींद में सोए अधिकारी जाग उठे है और फर्ज़ी मामले की गंभीरता को न्यायालय के संज्ञान में।लेने के उपरांत भंडारण निगम में सुभाष चंद्र पांडे की लंबित जांच को निपटाने में जुट गए है।
एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कही जा रही है वहीं दूसरी तरफ शासन प्रशासन में बैठे अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर कृपा दृष्टि बनाई जा रही है। उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक सुभाष चंद्र पांडे के फर्जी अंक पत्रों की जानकारी होने के बाद भी प्रबंध निदेशक श्रीकांत गोस्वामी द्वारा जांच के नाम पर अनेक वर्षों से सुभाष चंद्र पांडे को न सिर्फ अभय दान दिया जा रहा है बल्कि अनेक महत्वपूर्ण कार्यो का निष्पादन सुभाष चंद्र पांडे के हाथों कराया जा रहा है जिसका नतीजा वर्ष 2022 में भंडार ग्रहों पर एक बड़ी लूट के रूप में देखने को मिला है।
उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम के इतिहास में सुभाष चंद पांडे के अधीनस्थ लखनऊ मंडल में लगभग 10 करोड़ का खाद्यान्न घोटाला करके एक नया कीर्तिमान बनाया है जिसकी भरपाई संभव नहीं है। श्रीकांत गोस्वामी द्वारा सुभाष चंद्र पांडे के जाली अंक पत्रों के सम्बंध में प्रमाणिकता का पत्र जारी करते हुए न सिर्फ फर्जी डिग्रीधारक के अपराधी को बचाने का प्रयास किया है बल्कि स्वयं सामिलित होकर बड़े अपराध को अंजाम दिया है । प्रबंध निदेशक द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी को कार्यालय रजिस्ट्रार, ई.आई.आई.एल.एम. विश्वविद्यालय, सिक्किम द्वारा फर्जी बताते हुये पत्र संख्या-439 को जाली बताया है और सुभाष चन्द्र पाण्डे नाम के किसी भी व्यक्ति को ई.आई.आई.एल.एम. विश्वविद्यालय, सिक्किम का वैध छात्र नही बताया है।
वादी मुक़दमे द्वारा बताया गया कि सुभाष चन्द्र पांडे द्वारा कूटरचित दस्तावेज और जाली डिग्री ऐसे विश्वविद्यालय की बनायी गयी है जो परास्नतक केमिस्ट्री विषय के कोर्स संचालन हेतु यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त ही नही है, परन्तु प्रबंध निदेशक द्वारा फर्जी डिग्री की जांच को लंबित करते हुये अनेक महत्वपूर्ण कार्य सुभाष पाण्डें के हस्ताक्षर से सम्पादित कराया जाना गम्भीर प्रकरण है। सुभाष चंद्र पांडे के फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र को कार्यालय के अन्य अधिकारियों द्वारा मिलीभगत कर सत्यापित करने का जो अपराध कारित किया गया है वो भारतीय दंड संहिता की अनेक धाराओं के अनुसार दंडनीय है। वादी द्वारा इस प्रकरण को अगली सुनवाई में न्यायालय के सम्मुख उठाये जाने पर अधिवक्ताओं से विचार करने की बात कही गयी है क्योंकि सुभाष चन्द्र पांडे के फर्ज़ी प्रमाण पत्रों पर कार्यवाही न करके कानून से लगातार बचाने का जो प्रयास क्या गया है उसके परिणामस्वरूप निगम को करोड़ो रूपये की धनराशि का खाद्यान्न घोटाला सामने आया है जिसमे प्रबंध निदेशक की भूमिका को नज़र अंदाज़ नही किया जा सकता।
अति विचारनीय तथ्य है कि न्यायालय के सम्मुख प्रेषित याचिका में वादी द्वारा उल्लिखित किया गया है कि मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, सहकारिता विभाग, चेयरमैन, राज्य भंडारण निगम, प्रबंध निदेशक को अनेक पत्रों के माध्यम से इस फर्जीवाड़े के सबंध में अवगत कराया गया परंतु कोई कार्यवाही नही की गई जिसके चलते न्याय हित में न्यायालय के सम्मुख आना पड़ा है। जबकि फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र के संबंध में भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा सुभाष चंद्र पांडे की ई.आई.आई.एल.एम. विश्वविद्यालय, सिक्किम की परास्नातक, रसायन विज्ञान का अंक पत्र फर्जी होने के संबंध में स्पष्ट जानकारी दी गयी थी वहीं संयुक्त निदेशक, उच्च शिक्षा विभाग, सिक्किम सरकार, गंगकटोक द्वारा प्रमाणित किया गया कि यू.जी.सी. द्वारा रसायन विज्ञान हेतु ई.आई.आई.एल.एम. विश्वविद्यालय, सिक्किम को न तो अधिकृत किया गया और न ही मान्यता दी गयी है, अतः सुभाष चंद्र पांडे की डिग्री कूटरचित एवं फर्जी है। उच्च अधिकारियों के सम्मुख समस्त जानकारी होने के बाद भी ऐसे भ्रष्टाचारियों को किसके संरक्षण में अभयदान दिया जाता है इसकी जांच ज़रूरी है जबकि ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्यवाही किया जाना चाहिये एवं नौकरी के पहले ही दिन से सेवाएं शून्य मानते हुए सेवाकाल के दौरान लिए गए वेतन व भत्तों की वसूली किया जाना चाहिये ताकि भविष्य में फर्ज़ी डिग्री पर सरकारी नौकरी हथियाने वालो पर लगाम लगाई जा सके।