मुंबई। असली शिवसेना कौन सी है? फिलहाल इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका है और भारत निर्वाचन आयोग में भी प्रक्रिया जारी है। इसी बीच शिवसेना के अध्यक्ष रहे उद्धव ठाकरे का कार्यकाल 23 जनवरी को समाप्त हो चुकी है। अब मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की वजह से बने हालात के बाद चुनाव आयोग में फंसे पेंच के चलते उन्हें दोबारा अध्यक्ष चुने जाने की अनुमति नहीं है।
30 जनवरी 2003 में को उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने महाबलेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ और यहां मुहर लग गई कि उद्धव ही बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी होंगे। हालांकि, बाद में उद्धव और राज के बीच पार्टी पर नियंत्रण को लेकर जमकर तनातनी हुई।
नतीजा यह हुआ कि साल 2005 में उन्होंने दल से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। वहीं, साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष बनाया गया।
EC का एंगल समझें
सीएम शिंदे ने बीते साल जून में शिवसेना में बगावत कर दी थी और करीब 40 विधायकों ने उनका साथ दिया था। कहा जा रहा है कि इसके साथ ही उद्धव ने सबसे मुश्किल चुनौती का सामना किया। नतीजा यह हुआ कि जुलाई में शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी।
फिलहाल, आयोग ने उद्धव की अगुवाई वाले गुट को राष्ट्रीय कार्यकारिणी गठित करने और उन्हें दोबारा अध्यक्ष चुनने की अनुमति नहीं दी है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि आयोग 30 जनवरी को मामले की सुनवाई कर सकता है, जिसका अंतिम आदेश फरवरी में जारी हो सकता है।
क्या कहती है पार्टी?
उद्धव के करीबी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद संजय राउत का कहना है कि मौजूदा अध्यक्ष ही पार्टी प्रमुख बने रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘यह तकनीकी परेशानी है। उद्धव ठाकरे जी पार्टी के प्रमुख हैं और उनका पद पर बने रहना जारी रहेगा।’ जानकार भी कहते हैं कि उद्धव ही चुनाव होने तक पार्टी की कमान संभालते रहेंगे।