नई दिल्ली। वर्जिनिटी टेस्ट एक बार फिर सुर्खियों में है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान वर्जिनिटी टेस्ट को ‘सेक्सिस्ट‘ बताते हुए इसे महिलाओं के प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन बताया है। अदालत ने साफ किया कि किसी महिला आरोपी का वर्जिनिटी टेस्ट कराना असंवैधानिक है और ये संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने ये भी माना कि ये टेस्ट न आधुनिक है और न ही वैज्ञानिक है, बल्कि ये पुराने और अतार्किक हैं, इसलिए महिलाओं पर ऐसे टेस्ट को आधुनिक विज्ञान और मेडिकल क़ानून ने भी अपनी स्वीकृति नहीं दी है।
बता दें कि पिछले एक दशक में हमारी अदालतें दर्जनों बार यह बोल चुकी हैं कि वर्जिनिटी टेस्ट असंवैधानिक है, गलत है, लेकिन यह प्रैक्टिस आज भी देश में बदस्तूर जारी है। बीते साल अक्टूबर में ही सुप्रीम कोर्ट ने रेप के मामलों की जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले ”टू–फ़िंगर टेस्ट” को ”पितृसत्तातमक और अवैज्ञानिक” बताते हुए इसे मेडिकल की पढ़ाई से हटाने का आदेश दिया था।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्जिनिटी टेस्ट को जिस मामले में असंवैधानिक बताया है वो साल 1992 के सिस्टर अभया हत्या मामले में सिस्टर सेफ़ी की याचिका से जुड़ा हुआ है। इस मामले में सीबीआई ने अपनी जांच में सिस्टर अभया की मौत को हत्या बताते हुए तीन लोगों को इसका ज़िम्मेदार ठहराया, जिनमें दो फ़ादर और सिस्टर सेफ़ी का नाम लिया गया था।
सेफी के वकील ने मीडिया को बताया कि इस जांच टीम ने कहा था कि 1992 में जब एक दिन सुबह सिस्टर अभया जगीं, तो उन्होंने दोनों फादर और सिस्टर सेफ़ी को आपत्तिजनक स्थिति में देखा इसलिए सिस्टर अभया की हत्या हुई और 17 साल बाद सिस्टर सेफ़ी का वर्जिनिटी टेस्ट किया गया ताकि ये साबित किया जा सके कि इस मामले को छिपाने के मक़सद से हत्या हुई। इस टेस्ट के बाद पता चला कि सिस्टर वर्जिन थीं और उसके बाद सिस्टर सेफ़ी पर आरोप लगाया गया कि उनके वजाइना में स्क्रैच है, जिसका मतलब ये हुआ कि उन्होंने हाइमनोप्लास्टी करवाई है ताकि वो इस मामले में बच सकें।
इसके बाद सिस्टर सेफ़ी इस टेस्ट और आरोपों के खिलाफ अदालत पहुंची। उन्होंने साल 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका डाली और केस को यहां ट्रांसफर करने की मांग की। इस बार उनके सामने सीबीआई खड़ी थी, जो अपनी सफाई में पुलिस की धाराओं के हवाले से महिला अपराधी के वर्जिनिटी टेस्ट को जस्टिफाई करने की भरसक कोशिश कर रही थी। अदालत में कहा गया कि हत्या के मामले की सच्चाई जानने के लिए आरोपी सिस्टर सेफ़ी का वर्जिनिटी टेस्ट किया गया था। जवाब में कोर्ट ने कहा कि ऐसे टेस्ट यौन हिंसा की पीड़िता हो या ऐसी महिला जो हिरासत में हो, उनके लिए ये दर्दनाक होता है। साथ ही ऐसा टेस्ट किसी के भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।
हाइमन से जुड़े मिथक और वर्जिनिटी टेस्ट
ध्यान रहे कि यहां जिस वर्जिनिटी टेस्ट और हाइमनोप्लास्टी सर्जरी का जिक्र हो रहा है वो महिलाओं के हाइमन से जुड़ा है। हाइमन यानी योनि की झिल्ली या वजाइनल कोरोना, टिश्यू या ऊतक का एक छोटा सा हिस्सा होता है, जो योनि द्वार के पास ही पाया जाता है। किसी लड़की के हाइमन के ठीक होने पर पितृसत्तात्मक समाज में माना जाता है कि उन्होंने अब तक सेक्स नहीं किया है और उनका कौमार्य सुरक्षित है यानी वो वर्जिन हैं। हाइमन को लेकर ये मिथक न सिर्फ़ महिलाओं की सेक्सुअल सेहत और समानता के हक़ पर असर डालते हैं, बल्कि वो उनके इंसाफ़ हासिल करने की राह में भी बाधा बन सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने 2018 में कौमार्य जांचने के इस तरीक़े को मानवाधिकारों का उल्लंघन क़रार दिया था।
दुनिया के 42 फीसदी देशों में आज भी वर्जिनिटी टेस्ट धड़ल्ले से जारी
महिला अधिकार कार्यकर्ता ऋचा सिंह न्यूज़क्लिक को बताती हैं यूएन विमेन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ही नहीं दुनिया के 42 फीसदी देशों में आज भी वर्जिनिटी टेस्ट धड़ल्ले से जारी है। ये कभी नौकरी के नाम पर, कभी स्कॉलरशिप के नाम तो कभी शादी और जांच के नाम पर अलग–अलग तरीकों से किया जाता रहा है। हालांकि बीते कुछ समय में इंडोनेशिया दक्षिण अफ्रीका, तुर्की जैसे देशों ने कानून बनाकर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया है, लेकिन ज्यादातर देशों में इसे लेकर कोई ठोस कानून नहीं हैं।
ऋचा पेशे से पत्रकार भी हैं और वो ज़ोर देकर कहती हैं कि महिला आंदोलनों के लंबे संघर्ष के बाद भी अभी तक भारतीय दंड संहिता में ऐसी कोई स्पष्ट धारा नहीं है, जो वर्जिनिटी टेस्ट को असंवैधानिक और दंडनीय अपराध घोषित कर सके। अदालतें जरूर अलग–अलग मुकदमों के दौरान इसे बंद करने के निर्देश के साथ ही यह बात दोहराती रही हैं कि यह एक अवैज्ञानिक और बर्बर प्रैक्टिस है। लेकिन फिर भी हमारे देश में अभी इसे लेकर कोई कड़ा कानून नहीं है।
वकील आर्शी जैन न्यूज़क्लिक से कहती हैं कि ये सिस्टर सेफ़ी का मामला एक मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है, जहां अदालत ने साफ तौर से कहा है कि एक महिला चाहे आरोपी हो या दोषी उसके मौलिक और निजता के अधिकारों का उलल्घंन नहीं किया जा सकता। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि यौन संलिप्तता से जुड़ा जब भी कोई मामला प्रकाश में आता है तो एक महिला के चरित्र पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं और उसकी सच्चाई, उसकी प्रतिष्ठा को उसकी योनि से जोड़कर देखा जाने लगता है।
आर्शी बताती हैं कि यूएन विमेन की साल 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में हर साल 7 करोड़ से ज्यादा औरतें वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरती हैं और इस टेस्ट का आदेश और अनुमति डॉक्टर, हॉस्पिटल, आदालत और सरकारें देती हैं। इस मामले को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएन ह्यूमन राइट्स और यूएन विमेन जैसे कई संगठनों ने ग्लोबल अपील भी जारी की थी कि वर्जिनिटी टेस्ट महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन है और हर देश में कानून बनाकर इसे पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए।
हाइम्नोप्लास्टी सर्जरी का कारोबार
गौरतलब है कि ऐसे कई अध्ययन सामने आ चुके हैं जहां महिलाएं हाइमन के टूटने को लेकर ख़ौफ़ज़दा और तनाव में रहती हैं। आज भी पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों के कौमार्य को बहुत अहमियत दी जाती है और उनके यौन संबंध बनाने पर निगरानी रखी जाती है, शादी से पहले सेक्स को अपराध माना जाता है। हालांकि इस पूरे संदर्भ में वैज्ञानिक तर्क की कोई ख़ास गुंजाइश नहीं दिखती। लड़कियों का हाइमन बिना सेक्स के भी टूट सकता है, तो वहीं कईयों में ये होता भी नहीं है या सेक्स की उम्र आते–आते ये खुद ही खत्म हो जाता है। हालांकि इसे दोबारा दुरुस्त करने को लेकर हाइम्नोप्लास्टी सर्जरी एक पूरा कारोबार चल रहा है, जो इस मिथक को और बढ़ावा देने और लोगों को भरमाने के काम में लगे हुए हैं।
ऐसे में वर्जिनिटी टेस्ट पर प्रतिबंध के साथ ही उन डॉक्टरों पर भी रोक लगाने की जरूरत है जो हाइमन की मरम्मत के नाम पर पीढ़ी दर पीढ़ी न सिर्फ़ इसे बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि साइंस से ताल्लुक रखने के बावजूद ऐसे अवैज्ञानिक, अतार्किक काम कर रहे हैं। क्योंकि जब हाइमन खुद एक बड़े मथक से जुड़ा है, इसका कोई इस्तेमाल ही नहीं है, तो फिर सर्जरी करके उसे दुरुस्त करने का भला क्या फ़ायदा होगा?…