नई दिल्ली। CBIvsCBI विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने कहा, सीबीआई निदेशक की नियुक्ति 2 साल के लिए फिक्स होती है. उससे पहले उसे बदला नहीं जा सकता. वहीं सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के वेणुगोपाल ने कहा, सरकार की सबसे बड़ी चिंता सीबीआई में लोगों के विश्वास को कायम करने की थी. CBI के दोनों बड़े अधिकारियो के बीच गंभीर टकराव चल रहा था. इसलिए सरकार को दख़ल देना पड़ा ताकि एजेंसी में लोगो के विश्वास को कायम रखा जा सके. इस मामले में अब अगली सुनवाई बुधवार 5 दिसंबर को होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने AG से पूछा कि सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर फैसला लेने से पहले राकेश अस्थाना के उन पर लगे आरोपों पर सरकार या कैबिनेट सेक्रेटरी ने गौर किया. इस पर AG ने जवाब दिया- सरकार को किसी A या B (किसी व्यक्ति विशेष) से कोई मतलब नहीं है. ट्रांसफर किए जाने के सवाल पर AG ने कहा, आलोक वर्मा दिल्ली में हैं. सभी सुविधाएं अभी भी उन्हें हासिल हैं. ऐसे में ये कैसे कहा जा सकता है कि उनका ट्रांसफर हुआ है.
केंद्र सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान कहा गया कि 3 सदस्यीय कमेटी का काम सिलेक्शन का होता है जबकि अपॉइंटमेंट का काम सरकार का होता है. यानी दो अलग अलग काम हैं. केंद्र सरकार ने कहा कमेटी पैनल चयन करके सरकार को भेजती है उसके बाद उसका काम खत्म हो जाता है.
सीबीआई vs बीआई :
सरकार की प्राथमिक चिंता थी सीबीआई में लोगों के विश्वास को बनाए रखना, जिस तरह से सीबीआई के शीर्ष के दो अधिकारियों ने एक-दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए, उससे जनता की राय नकारात्मक हो रही थी. यही वजह है कि सरकार ने सार्वजनिक हित में हस्तक्षेप करने का फैसला लिया ताकि सीबीआई का आत्मविश्वास बना रहे.
आलोक वर्मा के मामले में 5 दिसंबर को भी सुनवाई जारी रहेगी. कोर्ट ने कहा- हम अभी तक हमने सीवीसी रिपोर्ट को अपने कार्रवाई का हिस्सा नहीं बनाया है. अगर जरूरत पड़ी तो हम सरकार से इस पर जवाब मांगेंगे.