अनुपम कुमार सिंह
भाजपा ने कभी नहीं कहा कि नीरव मोदी और ललित मोदी OBC समाज से आते हैं। भाजपा ने राहुल गाँधी पर मुकदमा नहीं ठोका। भाजपा ने सिर्फ इतना कहा कि राहुल गाँधी ने पूरे मोदी समाज का नाम लेकर गलत किया, ये OBC समुदाय का अपमान है। चूँकि न्यायपालिका उन्हें इसी मामले में सज़ा सुना चुकी है, इसी मामले को लेकर उनकी संसद सदस्यता जा चुकी है और 19 सालों से वो लुटियंस दिल्ली में जिस सरकारी बँगले पर जमे बैठे हैं, उन्हें छोड़ना पड़ेगा – ऐसे में इसमें भाजपा कहाँ से आ गई?
एक तो हो गया एक अलग मामला। अब दूसरे मामले पर आते हैं। फूलपुर से एक बार सांसद और इलाहाबद पश्चिम से लगातार 5 बार विधायक रहा अतीक अहमद एक दुर्दांत अपराधी है। उस पर 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज रहे हैं। हाल ही में उसने अपने परिवार के साथ मिल कर उमेश पाल को मरवाया। वो राजू पाल हत्याकांड में गवाह थे, जिन्हें अतीक अहमद ने ही मरवाया था। वो जेल से ही अपराध जारी रखे था, जिस कारण उसे गुजरात के साबरमती जेल भेज दिया गया।
मीडिया ने ‘गाड़ी पलटेगी’ का हौव्वा बनाया और एनकाउंटर की चर्चाएँ चलने लगीं, क्योंकि उमेश पाल के अपहरण के 17 साल पुराने मामले में सज़ा सुनाए जाने को लेकर अतीक अहमद को यूपी पुलिस प्रयागराज लेकर आई। रास्ते भर मीडिया उसके पीछे लगी रही। पेशाब करते हुए भी उसका फोटो-वीडियो बना लिया। आमजनों ने इसे ‘मूत्रकारिता’ नाम दिया। अतीक अहमद 44 वर्षों के आपराधिक इतिहास में पहली बार दोषी करार हुआ है।
ऐसे में ‘The Wire’ मूत्रकारिता से भी आगे बढ़ कर ‘खच्चरकारिता’ लेकर आ गया। इस प्रोपेगंडा पोर्टल के बड़े चेहरों में से एक आरफा खानुम शेरवानी ने राहुल गाँधी के मामले को अतीक अहमद के मामले से जोड़ दिया। दोनों में दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन ये तो एजेंडाधारी मीडिया संस्थान हैं। इनका काम ही यही है। राहुल गाँधी की बदजुबानी पर उन्हें सज़ा और अपहरण-हत्या-रंगदारी-कब्जे के मामलों में संलिप्त रहे अतीक अहमद के मामले को ‘The Wire’ ने जोड़ दिया।
अब आरफा खानुम शेरवानी का कहना है कि अगर ललित मोदी और नीरव मोदी को कुछ कहने से मोदी समाज की भावनाएँ आहत होती हैं तो फिर अतीक अहमद को सज़ा दिए जाने से भी गद्दी समाज की भावनाएँ आहत होनी चाहिए। बता दें कि गद्दी समाज मुस्लिमों की एक जाति है। इसके अंदर भी कई बिरादर होते हैं। सामान्यतः, निकाह बिरादर के अंदर ही किया जाता है। सुन्नी समाज के ये मुस्लिम जानवरों के पालन का काम करते आ रहे हैं।
यहाँ दो बातें हैं। पहली तो ये कि नीरव मोदी और ललित मोदी की आलोचना से OBS समाज आहत है, ऐसे किस भाजपा नेता ने कहा? ‘The Wire’ की आरफा खानुम शेरवानी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। दूसरी बात, अतीक अहमद को अब न्यायपालिका ने दोषी ठहरा दिया है और प्रयागराज के लोग उसके खौफ के साक्षी हैं, ऐसे में एक अपराधी को सज़ा देना कैसे उसकी पूरी जाति पर प्रहार हो गया? ये ‘The Wire’ की ‘खच्चरकारिता’ नहीं तो और क्या है।
जिस तरह से दुर्दांत अपराधी अतीक अहमद का बचाव अरफ़ा खानुम शेरवानी ने वीडियो बना कर किया है, वैसे तो शायद उसके परिजन और वकील तक न कर पाएँ। अतीक अहमद का बेटा फरार है। सीसीटीवी में उसे गोली चलाते हुए साफ़ देखा गया है। उसकी बीवी उमेश पाल की हत्याकांड में शामिल है, वो भी फरार है। अतीक अहमद पर एक-दो या दर्जन नहीं बल्कि 100 मामले दर्ज हैं, ऐसे में इस व्यक्ति का कोई कैसे बचाव कर सकता है और क्यों?
‘The Wire’ की ‘खच्चरकारिता’ का आलम ये है कि उसे अतीक अहमद की चिंता उसके परिजनों से ज्यादा है। वो अतीक अहमद की पैरवी उसके वकीलों से भी ज्यादा मजबूती से कर रहा है। आरफा खानुम शेरवानी को इस बात से भी चिंता है कि मीडिया में अतीक अहमद को अपराधी क्यों बताया जा रहा है। क्या वो कहना चाहती हैं कि अतीक अहमद ही गद्दी समाज का इकलौता प्रतिनिधि है? वो जो कर रहा है, गद्दी समाज के सभी लोग वैसे ही अपराध करते हैं? ये सच तो नहीं ही हो सकता।
आरफा खानुम शेरवानी हों या ‘The Wire’, अपराधी या दंगाई अगर मुस्लिम हो तो उसे बचाने का लंबा इतिहास इनलोगों का रहा है, भले ही इसके लिए क्यों न पीड़ितों को ही गुंडा साबित करना पड़े। दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों से लेकर अतीक अहमद प्रकरण तक इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं। खच्चर और घोड़ों को बीच में लाकर अतीक अहमद का बचाव किया जा रहा है। ऐसा व्यक्ति, जो देवरिया के जेल में खुलेआम व्यापारियों को टाँग कर मँगवाता था और उन्हें पीटता था।
जहाँ तक बात नीरव मोदी और ललित मोदी की है, क्या आरफा खानुम शेरवानी ‘The Wire’ के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर के ये नहीं बताएँगी कि किस पार्टी के शासनकाल में इन दोनों के सबसे ज्यादा मजे थे? ललित मोदी 2008 में IPL का अध्यक्ष था, BCCI में सबसे ज्यादा हैसियत रखता था, किसकी सरकार थी केंद्र में तब? 2010 के आसपास के समय में जब नीरव मोदी अपनी अमीरी के शिखर पर था, जब केंद्र में कौन शासन कर रहा था?
ये सब दर्शकों को नहीं बताया जाएगा, क्योंकि इससे ‘खच्चरकारिता’ पर असर पड़ेगा। 2024 का लोकसभा चुनाव सामने है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष का कोई नेता टिकता हुआ नहीं दिख रहा है, ऐसे में मीडिया का वामपंथी वर्ग अब खच्चरों पर उतर आया है। राहुल गाँधी नहीं, खच्चर ही सही – कहीं तो उन्हें उम्मीद दिख रही है। वैसे भी, आतंकियों को ‘शिक्षक का बेटा’ बता कर उनका महिमामंडन करने वाले अतीक अहमद, जिसे सपा का खुला संरक्षण प्राप्त था, उसके लिए पैरवी करें तो इसमें आश्चर्य ही क्या!
सभार …………………