नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली करारी शिकस्त के बाद अब संगठन 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया है. सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर (JDS) बीजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए इच्छुक है. इसके आसार इसलिए भी नजर आ रहे हैं, क्योंकि हाल के घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए तो कई बेहद जरूरी मुद्दों पर जेडीएस ने बीजेपी का साथ दिया है.
4 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है JDS
दरअसल, जेडीएस कर्नाटक लोकसभा की 28 सीटों में से चार पर चुनाव लड़ना चाहती है. ये चार सीटें हैं मांड्या, हासन, बैंगलुरु ग्रामीण और चिकबल्लापुर. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 में से 25 सीटें जीती थीं. मांडया से जीतने वाली सुमलता अंबरीष ने बाद में बीजेपी को समर्थन दे दिया था. इस चुनाव में जेडीएस सिर्फ एक सीट हासन ही जीत सकी थी. पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा तक चुनाव हार गए थे.
जेडीएस के लिए अस्तित्व बचाना बड़ी चुनौती!
2019 के लोकसभा चुनाव जेडीएस को 9.67 प्रतिशत वोट मिले थे. इस के बाद विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 13.29 प्रतिशत ही वोट मिले और पार्टी की सीटें घटकर 19 रह गईं. बीजेपी से जुड़े सूत्रों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में जमीन खिसकने के बाद अब जेडीएस के लिए अपने अस्तित्व को बचाना बड़ी चुनौती है. इसके लिए वह बीजेपी के कंधों पर लड़ाई लड़ना चाहती है.
जेडीएस के साथ दो बार अच्छे नहीं रहे हैं अनुभव
ऐसा नहीं है कि बीजेपी को जेडीएस की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है. बीजेपी के हाथ से कर्नाटक की सत्ता निकलने के बाद लोकसभा पार्टी के सामने 25 सीटों को बचाए रखना बड़ी चुनौती है. इसीलिए दोनों पार्टियों का मानना है कि एक साथ आने से वे कांग्रेस को ना सिर्फ चुनौती दे सकते हैं, बल्कि आसानी से पटखनी भी दी जा सकती है. हालांकि, बीजेपी के कई नेता गठबंधन के खिलाफ हैं. उनकी दलील है कि बीजेपी अकेले ही कर्नाटक में पिछला प्रदर्शन दोहरा सकती है. इससे पहले बीजेपी और जेडीएस दो बार साथ आ चुके हैं. बीजेपी एक बार एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवा चुकी है. लेकिन दोनों ही बार बीजेपी का अनुभव जेडीएस के साथ अच्छा नहीं रहा है.
पुराने के साथ-साथ नए सहयोगियों पर भी फोकस
मिशन 2024 के लिए बीजेपी जी-जान से जुट गई है. इसके लिए देशभर में गठबंधन के उन पुराने सहयोगियों से संपर्क साधा जा रहा है, जो एनडीए से बाहर चलें गए थे. इसके अलावा नए सहयोगी दलों के सामने भी हाथ आगे बढ़ाया जा रहा है. ये सहयोगी दल 2024 में बीजेपी की नैया पार लगाकर तीसरी बार फिर से केंद्र मोदी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
केरल में चल रही गठबंधन को लेकर बातचीत
कर्नाटक हाथ से निकलने के बाद अब बीजेपी सभी दक्षिण भारतीय राज्यों में गठबंधन करना चाहती है. तमिलनाडु में बीजेपी का गठबंधन एआईएडीएमके के साथ हो चुका है. सीटों के बंटवारे पर भी सहमति बन चुकी है. पुडुचेरी में बीजेपी पहले ही गठबंधन सरकार में शामिल है. बता दें कि पीएम मोदी ने त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के चुनावी नतीजों के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि केरल में भी बीजेपी सहयोगी दलों के साथ मिलकर अगली बार सरकार बनाएगी. उसी दिशा में आगे बढ़ते हुए केरल में कुछ छोटे दलों से गठबंधन की बातचीत चल रही हैं.
पिछले दिनों अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ टीडीपी अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन पर चर्चा हो चुकी है. बिहार में आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाह ने जेपी नड्डा और अमित शाह से मुलाकात की थी. बीजेपी ने चिराग पासवान और पशुपति पारस को पहले ही संदेश दे दिया है कि उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले एक हो जाना चाहिए. बिहार में वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश साहनी की सुरक्षा बढ़ाकर ये संदेश दिया जा चुका है कि जो कुछ हुआ उसे भूलकर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए आगे बढ़ना चाहिए.
यूपी में ओमप्रकाश राजभर भी बीजेपी के संपर्क में!
यूपी में बीजेपी के प्रदेश स्तरीय नेता सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से संपर्क में हैं. 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव में सीटों में तालमेल नहीं हो पाने के कारण राजभर ने गठबंधन तोड़ दिया था. उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था और चुनाव के बाद सपा से गठबंधन तोड़कर बाहर आ गए थे. सूत्रों की मानें तो ओमप्रकाश राजभर बीजेपी के साथ एक बार फिर से हाथ मिलाने के लिए तैयार है, लेकिन अंतिम फैसला बीजेपी आलाकमान को लेना है.
बीजेपी को लेकर पंजाब में सूत्रों का कहना है कि वहां बैक चैनल से गठबंधन को लेकर अकाली दल के साथ बातचीत चल रही है. अकाली दल एनडीए का सबसे पुराना सहयोगी दल था, लेकिन 2020 में कृषि संबंधित कानूनों को लेकर वह एनडीए से बाहर चला गया था, लेकिन 2022 में पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह अकाली दल और बीजेपी को सीटें मिलीं और पिछले दिनों जालंधर लोकसभा उप चुनाव में नतीजे सामने आए, उसने दोनों दलों को एक साथ आने के लिए मजबूर कर दिया है. इसकी झलक तब भी दिखी थी, जब अकाली दल के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल को श्रद्धांजलि देने के लिए पीएम मोदी चंडीगढ़ गए थे. इसके बाद जेपी नड्डा ने उनके पैतृक गांव लंबी जाकर गठबंधन के लिए हाथ आगे बढ़ाने का संकेत दिया था.
नेताओं के बयान से अलग है जमीनी हकीकत
भले ही बीजेपी के बड़े नेता यह कहते रहे हैं कि विपक्षी दलों के एक साथ आने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन बीजेपी आलाकमान को ये बात अच्छी तरह से पता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 की तरह नहीं है. इसलिए साथ छोड़ गए पुराने सहयोगी दलों और नए दलों के साथ गठबंधन करना जरूरी है.